अरिहंत देव – वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी – कौन से क्षुधादि अठारह दोषों से रहित

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ज्ञानावरणादि कर्मो का तथा दोषों का जिनमें अभाव पाया जाये वे देव हैं | अरिहंत देव क्षुधादि अठारह दोषों से रहित ,वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी होतें हैं | अरिहंत देव में अठारह दोष नही होते हैं|

(1) क्षुधा रहित – आहारादि की इच्छा, भूख का अभाव

(2) तृषा रहित – पानी की इच्छा, प्यास का अभाव

(3) भय रहित – किसी भी प्रकार का डर उत्पन्न नही होना

(4) राग रहित – प्रेम , स्नेह ,प्रीती रुप परिणामों का अभाव होना

(5) द्वेष रहित – द्वेष ,शत्रुता रुप परिणामों का अभाव

(6) मोह रहित – गाफिलता , विपरीत ग्रहण करने रुप भावों का अभाव

(7) चिन्ता रहित – मानसिक तनाव का नही होना

(8) जरा रहित – दीर्घ काल तक जीवित रहने पर भी बुढापा नही आना

(९) रोग रहित – शारीरिक व्याधियों का अभाव

(10) मृत्यु रहित – पुनर्जन्म कराने वाले मरण का अभाव

(11) खेद रहित – मानसिक पीडा/ पश्चाताप का नही होना

(12) स्वेद रहित – पसीना आदि मलों का अभाव

(13) मद रहित – अंहकारपने का अभाव , गर्व घमंड रहितता

(14) अरति रहित – किसी प्रकार की पीडा/ दु:ख का अभाव

(15) जन्म रहित – पुनर्जन्म , जीवन धारण नही करना

(16) निद्रा रहित – प्रमाद थकान जन्य शिथिलता का (नींद) न होना

(17) विस्मय रहित – आश्चर्य रुप भावों का नही होना

(18) विषाद रहित – उदासता रुप भावों का अभाव