पुरुष या स्त्री पर्याय- तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ पहुंचे सिद्धालय स्टेशन : 18 मार्च

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55 हजार वर्ष की उम्र वाले 19वें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी की आयु का जब एक माह शेष रह गया, तो उन्हें पता चल गया कि अब यह समोशरण में धर्म प्रभावना पर विराम का समय आ गया है। इस जन्म-मरण के चक्कर से दूर होने का समय निकट आ रहा है। अजर-अमर आत्मा, जो अब परमात्मा बन गई है, से इस नश्वर शरीर को सदा छोड़ने का समय निकट आ रहा है, बस अब जाना होगा, शाश्वत अनादि निधन पावन धरा पर, जिसे आज पूरा विश्व श्री सम्मेदशिखरजी के नाम से जानता है।

एक माह का भोग निवृत्ति काल और पंहुच गये पावन श्री सम्मेदशिखरजी पर उसी जगह, जिसे हम लोग संवल कूट के नाम से जानते हैं और यहीं से एक समय में, यानि सैकेंड के अरबवें समय के भीतर पहुंच गये सिद्धालय में सदा के लिये विराजमान होने के लिये। अब कहीं और नहीं जाना, हर जीव का यही है अन्तिम ठिकाना, अन्तिम लक्ष्य, 84 लाख योनियां का चक्कर, झंझट खत्म। वह दिन था फाल्गुन शुक्ल पंचमी, जो इस बार 18 मार्च को है। आपके साथ 500 महामुनिराज और उसी समय मोक्ष पधारे, वैसे 6 माह 8 समय में 608 जीव सिद्धालय पहुंचते हैं।

श्वेताम्बर जैन संप्रदाय, तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी को महिला रूप में मानता है, यानी उनके अनुसार स्त्री पर्याय से भी मोक्ष जा सकते हैं, यह तो अपना-अपना विषय है पूजने का, बोलिये तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी की जय, जय, जय

इसी कूट से 96 करोड़ मुनिराज मोक्ष गये हैं। यह कूट गौतम गणधर फिर कुंथुनाथ जी, नमिनाथजी, अरहनाथजी की टोंक के बाद आती है। इस टोंक की भाव सहित वंदना करने से एक करोड़ प्रोषध उपवास का फल मिलता है।