सारे जगत् में अनेक रूप हो सकते हैं , अनेक भेष हो सकते हैं , ज्ञानियो ! ध्यान रखना , नाटक में अनेक पात्र
पर ज्ञानियो ! जब सारे जगत् के नाना रूप बदल जाते हैं , तब नहीं बदलने वाला एक ही रूप होता है । उसका नाम जिन रूप होता है , उसका नाम निर्ग्रन्थ रूप है ।
रूपों की प्राप्ति के लिये तो नाना रूप हैं, लेकिन स्वरूप की प्राप्ति के लिये मात्र एक दिगम्बर रूप है ।
जगत् के जितने रूप हैं, जितने भेष हैं , वे सारे – के – सारे भेष स्वरूप प्राप्ति के लिये अकिंचित्कर हैं । जगत् में जितने भेष हैं , जितनी मुद्रायें हैं , वे निर्वाण प्राप्ति के लिये अकिंचित्कर हैं ।
ज्ञानियो! निर्वाण प्राप्ति में कोई कार्यकारी है, उसका नाम जिन रूप है । ” नग्नं पश्यत वादिनो जगदिदं जैनेन्द्र मुद्रांकितम् ” नग्नता ही भगवान् जिनेन्द्र की मुद्रा है , वही निर्वाण प्राप्ति का रूप है । यदि निर्वाण मिलेगा तो दिगम्बर मुद्रा से ही मिलेगा ।
– आचार्य रत्न विशुद्ध सागर जी महाराज