- तीर्थंकर 1008 शुभ लक्षणों से सहित होतें हैं।
- तीर्थंकर का शरीर मल- मूत्र से रहित होता है।
- तीर्थंकर के शरीर में पाया जाने वाला रक्त श्वेत होता है।
- तीर्थंकर ‘ नम: सिद्धेभ्य: ‘ कहकर स्वयं दीक्षित होते हैं।
- तीर्थंकर के गर्भ- जन्मादि के काल में देवतागण महोत्सव मनाते वह ही कल्याणक कहलाते हैं।
- तीर्थंकर जन्म से ही मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान के धारी होते हैं।
- तीर्थंकर के भोजन , वस्त्र , आभूषण , आदि की पूर्ति सौधर्म इन्द्र आदि देवों के द्वारा की जाती है।
8. सभी तीर्थंकर आठ वर्ष की उम्र में देशव्रतीवत् हो जाते हैं।
- तीर्थंकर सर्वांग सुन्दर होते हैं। उनकी सुन्दरता रागवर्द्धक नहीं, वैराग्य वर्द्धक होती है।
- जन्म के समय नरक के नारकीयों को भी एक समय के लिए सुख की अनुभूति होती है।
- तीर्थंकर को दीक्षा के उपरांत ही विपुलमति मन:पर्ययज्ञान की प्राप्ति होती है।
- तीर्थंकर अपनी माता की इकलोती संतान होते हैं।
- तीर्थंकर का रुप हमेशा कुमारावस्था जैसा होता है, उन्हें कभी बुढ़ापा नहीं आता है।
- तीर्थंकर दीक्षा के उपरांत केवलज्ञान होने तक मौन रहते हैं।
- केवलज्ञान होने के बाद तीर्थंकर का उपदेश मुख से होता है परन्तु उनके मुख,और ओंठ आदि चलायमान नहीं होते । उनके द्वारा नि:सृत वाणी दिव्यध्वनि कहलाती है।
- तीर्थंकर से अधिक जगत् के किसी भी प्राणी में गुण, रुप, वैभव नहीं पाया जाता है।
- तीर्थंकरों के पसीना नहीं आता एवं दाढ़ी-मूंछ नही होती है।
- तीर्थंकर का पद सोलह कारण भावनाओं को भाने से होता है।
दिव्यध्वनि
* तीर्थंकर की दिव्यध्वनि सभी आनंद देनी वाली होती है।
* दिव्यध्वनि समस्त संदेह को दूर करने वालीं होती है।
* दिव्यध्वनि ग्रहस्थ एवं मुनि धर्म को समझाने वालीं होती है।
* दिव्यध्वनि तत्त्व को उद्घाटित करने वाली होती है।
* दिव्यध्वनि सभी जीवों को अपनी-अपनी भाषा में समझ में आ जाती है
* दिव्यध्वनि हित – मित और प्रिय होती है।
* तीर्थंकर भगवान की वाणी लोगों का अज्ञानरुपी अंधकार दूर करके उन्हें सम्यग्ज्ञान का बोध कराती है।
* दिव्यध्वनि चारों दिशाओं में एक-एक योजन तक सुनाई देती है। (1योजन = 12 कि.मी.)
बाल ब्रम्हचारी राजेश चैतन्य अहमदाबाद