देशनोदय चवलेश्वर में निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव मनोज्ञ 108 श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
जो अपनी व्यथा सुनाता है वह दरीद्री होता जाता है जो दूसरे की व्यथा सुनता है वह मालामाल होता जाता हैं
1.दान- प्रतिदिन कुछ देने की सोचे देने वाला मालिक होता है लेने वाला कर्जदार है हमने सोचा पेड़ देखा अच्छा लगा उसका भोग किया कर्जदार हो गए जब जब आपको किसी को देखकर आप अच्छा लगे समझ लेना हमारी दृष्टि कर्जे में जा रही है हमारी दृष्टि नेत्र हीन होने वाले हैं शक्तिहीन होने वाले है।
2.ज्ञाता –जब जब किसी को देख कर तुम्हे अच्छा लगे तुम पतन कि ओर जा रहे है,ज्ञानी व्यक्ति की आंखे झूकती है , स्वाभिमानी व्यक्ति अपने पैरो पर खडा होना चाहता है ज्ञानी कहता है मेरी आंख को दुसरा सुखी करे मै इतना दरीद्री नही हू।
3.विचारधारा-दो विचारधाराएं चलती आई एक विचारधारा जोगी को मैं तो देती है जो गे संसार कुमार तो देता है दूसरी विचारधारा हो गया था कुछ नाचे देती है ज्ञाता जो मालिक जो अपना अपना शक्ति है उसको मैं तो देते हैं
4.भोग-दुनिया विज्ञान की तरफ जाता है तो उसको भोग करो।पेड़ चल पहाड़ आदि मे शक्ति क्या है उस शक्ति का भोग करने के लिए जो है उसको निकालो भोग कि ताकत देना ज्ञेय हैं
5.आप चाहते है जितनी शक्ति है इस संसार मे हम उनसे लाभ ले सके पानी से परमाणु बम बना लिया 1लाख लिटर पानी समाप्त होता है तो एक लिटर परमाणु का पानी बनता है यदि उसकी 1 बूंद भी पेट मे चली जाये तो व्यक्ति मर जाता हो
शिक्षा- लेने वाला कर्जदार होता है , देने वाला साहुकार होता है