स्त्रियों द्वारा भगवान की मूर्ति का अभिषेक करने के लिए दिए जाने वाले कुतर्कों का आगम प्रमाण एवं तर्क सहित खण्डन

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शंका  1 जब स्त्रियाँ महाराज जी को शुद्धि पूर्वक आहार दे सकती है तो अभिषेक में अशुद्ध क्यों हो जाती है ❓

➡समाधान

उसका समाधान है कि अभिषेक की क्रिया एक पूर्णतया शुद्धिकरण की क्रिया है जहाँ रंच मात्र भी अशुद्धि नहीं होनी चाहिए और आहार की क्रिया से उसकी तुलना नहीं होनी चाहिए क्योंकि आहार अतिथि संविभाग व्रत का पालन है जिसमे गृहस्थ स्वयं के लिए जो भोजन बनाता है उसमे से महाराज के लिए आहार दान करता है जो महाराज जी के तप संयम साधना में सहायक है न कि उनकी शुद्धि करने का उपाय।

आदिपुराण के पर्व १६ श्लोक २१९ में अभिषेक क्यों करते है उसके विषय में कहा है कि यद्यपि भगवान का शरीर पवित्र था तो भी इंद्र द्वारा अभिषेक से वो और पवित्र हो गया था।

अर्थात अभिषेक एक पवित्र करने की क्रिया है जिसमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की शुद्धि अनिवार्य है।

जो लोग आहार की क्रिया और अभिषेक की क्रिया में तुलना करते हैं कि जब स्त्री आहार दे सकती है तो अभिषेक क्यों नहीं कर सकती वो ये भूल जाते हैं कि भगवान का मल, मूत्र और निगोदिया जीवों से रहित परम शुद्ध परम औदारिक शरीर होता है जिसके अभिषेक की क्रियाओं में परम शुद्धि अनिवार्य है। उससे मुनियों के मल, मूत्र और त्रस जीवों सहित औदारिक शरीर से तुलना करना उचित नहीं है❗

आहार के वक़्त यदि महिलाएं साधु को बिना स्पर्श किए आहार देती है तो साधुओं के ब्रह्मचर्य महाव्रत में कोई दोष नहीं लगता

शंका – 2 जब भगवान को जन्म एक स्त्री देती है तो वो भगवान को स्पर्श और अभिषेक क्यों नहीं कर सकती❓

➡समाधान

आदिपुराण पर्व १२ श्लोक संख्या १६६

जब भगवान गर्भ में आते हैं उसके बाद षट्कुमारी देवियां माता की परिचर्या करते समय सबसे पहले स्वर्गसे लाए हुए पवित्र पदार्थों के द्वारा माता का गर्भ शोधन (सफाई/शुद्धि) करती हैं।

इस आगम प्रमाण से यह स्पष्ट है कि माता का गर्भाशय देवियों द्वारा स्वच्छ किया जाता है। अगर स्त्री का शरीर पहले से शुद्ध है तो इस गर्भ शोधन की क्या आवश्यकता थी ❓

शास्त्रों में यह वर्णन आया है कि बालक भगवान को शचि इंद्राणी इन्द्र से भी पहले प्रसूति गृह में जाकर हाथ में लेती है। यही इंद्राणी बालक का सुमेरु पर्वत पर अभिषेक के उपरांत अंग पोछती है और उसे वस्त्राभूषण पहनाती है। अब इसी का अनुसरण करते हुए पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में जो भी महिला शचि इंद्राणी बनती है उसको यह सब कार्य करने की अनुमति मिलती है क्योंकि तब तक भगवान की मूर्ति पर दीक्षा कल्याणक के संस्कार करके ब्रह्मचर्य महाव्रत का आरोपण नहीं किया होता। लेकिन जैसे ही प्रतिष्ठा महोत्सव में भगवान पर दीक्षा कल्याणक के संस्कार करके ब्रह्मचर्य महाव्रत का आरोपण किया जाता है उसके उपरांत महिलाओं को भगवान को छूना वर्जित किया जाता है क्योंकि ब्रह्मचर्य महाव्रत के संस्कार के उपरांत भगवान के किसी भी स्त्री के स्पर्श का निषेध है।

बस यही बात बहुत सी पंथवादी महिलाएं नहीं समझती और ब्रह्मचर्य महाव्रत और १८००० शील व्रतों से संस्कारित भगवान को स्पर्श करती है और अभिषेक के वक़्त उनके पूर्ण शरीर पर चंदन लगाती है और अभिषेक के बाद भगवान का पूर्ण अंग पोछती है। ऐसी महिलाओं को निम्नलिखित मुद्दों पर शांत दिमाग से पंथवाद को बाजू रखकर सोचना चाहिए

ब्रह्मचर्य महाव्रत और १८००० शील व्रतों से संस्कारित भगवान को स्पर्श करना, चंदन लेपन करना और उनके सभी अंग पोछने से क्या भगवान के ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष नहीं लगेगा ❓ यदि दोष लगेगा तो इसके महापाप का बंध उस महिला को नहीं होगा ❓

बालक भगवान को प्रतिष्ठा के वक़्त महिलाएं छूती है जैसे शचि इंद्राणी ने साक्षात भगवान को छुआ था लेकिन क्या उस वक़्त बालक भगवान के ब्रह्मचर्य महाव्रत था जो महिला के छूने से खंडित हो जाता❓ बालक भगवान के ब्रह्मचर्य महाव्रत और १८००० शील व्रत के संस्कार आरोपित नहीं होने से ही महिलाएं प्रतिष्ठा महोत्सव में भी बालक भगवान की मूर्ति को छुए तो कोई दोष नहीं लगता लेकिन दीक्षा कल्याणक के संस्कार में ब्रह्मचर्य महाव्रत के संस्कार के बाद यदि कोई महिला भगवान की मूर्ति को छूती है तो निश्चित ही वो भगवान के ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष लगाती है जिसके भयंकर परिणाम उसी महिला को भोगने पड़ेंगे!

लोक व्यवहार में क्या कोई महिला अपने पुत्र को जवान होने के बाद नग्न अवस्था में नहलाती है? अगर लोक व्यवहार में बड़े लड़के को उसकी माँ द्वारा नहलाना गलत माना गया है तो ब्रह्मचर्य महाव्रत धारी भगवान जो कि पूर्ण युवावस्था को प्राप्त हो चुके है उनके सभी अंगों का स्पर्श करके उनका अभिषेक करते हुए महिलाओं को लज्जा क्यों नहीं आती? क्या ऐसी महिलाएं भगवान की मूर्ति को केवल एक पुतला समझती है जिसको कही भी स्पर्श किया तो कोई दोष नहीं लगता?

शंका  3 जब महिलाएं अभिषेक के लिए अशुद्ध है तो वो दीक्षा के लिए शुद्ध कैसे हो सकती है।

➡समाधान

महिलाओं को दीक्षा देने का कार्य उन्हें बिना स्पर्श किए भी किया जा सकता है जिससे दीक्षा देने वाले आचार्य महाराज के ब्रह्मचर्य महाव्रत में कोई दोष नहीं लगता। जहां दीक्षा की कुछ विधियां स्पर्श करके ही संभव है वहां गणिनी आर्यिका माताजी यह काम कर सकती हैं।

मूलाचार की गाथा संख्या १९५ में स्पष्ट उल्लेख है कि

आर्यिकाएं

➡ आचार्य को पांच हाथ से दूर रहकर

➡ उपाध्याय को छह हाथ से दूर रहकर

➡ साधु को सात हाथ से दूर रहकर

गवासन से ही वंदना करती हैं

सामान्य महिलाएं तो आर्यिकाओं से तुलना की अपेक्षा निश्चित ही व्रत, संयम और भावों की शुद्धि में कम ही होती है फिर यदि आर्यिकाओं तक को साधुओं के पैर छूकर नमस्कार करने की अनुमति मूलाचार में नहीं दी है तो सामान्य महिलाओं को तो अवश्य ही दूर से साधुओं को नमस्कार आदि करना चाहिए

जब साधुओं को छूना भी आर्यिकाओं के लिए निषेध किया गया है तब भगवान को कोई सामान्य महिला कैसे स्पर्श कर सकती है?

शंका  4  जब महिलाएं साधुओं के पाद प्रक्षालन कर सकती है तो भगवान का अभिषेक क्यों नहीं कर सकती ❓

➡समाधान

जब महिलाएं साधुओं को आहार देती है तो नवदा भक्ति में पाद प्रक्षालन यह एक अनिवार्य विधि है जिसका आगम ग्रंथों में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। यह सब श्रावक के अतिथि संविभाग व्रत जो कि चौथा शिक्षा व्रत है उसका अंग है।

यदि महिलाओं द्वारा साधुओं का पाद प्रक्षालन वर्जित किया जाएगा तो नवदा भक्ति में भी पाद प्रक्षालन को प्रतिबंधित करने का प्रसंग उपस्थित होगा जिस वजह से नवदा भक्ति पूर्ण नही मानी जाएगी।

जब नवदा भक्ति में स्त्रियों को साधुओं के पाद प्रक्षालन का अधिकार दिया गया है तो अन्य समय भी यदि स्त्रियां साधुओं का पाद प्रक्षालन करें तो यह कोई आगम विपरीत क्रिया या फिर साधुओं के ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष लगाने वाली क्रिया नहीं मानी जा सकती

अब कोई पंथवादी विद्वान तर्क दे सकते है कि जब साधुओं के पाद प्रक्षालन का विधान किया गया है तो भगवान के भी पाद प्रक्षालन का अधिकार महिलाओं को होना चाहिए तो उसका समाधान यह है कि साधुओं के आहार की नवदा भक्ति में पाद प्रक्षालन और भगवान के अभिषेक में सर्वांग का प्रक्षालन इसमें जमीन आसमान का भेद है। अभिषेक में अंग पोछना एक अनिवार्य क्रिया होती है और आहार के वक़्त पाद प्रक्षालन के बाद पैर पोछने की क्रिया का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसलिए जहां स्पर्श किए बिना क्रिया सम्पन्न होती है वहां ब्रह्मचर्य महाव्रत में कोई दोष नहीं लगता

 

सभी श्रावक श्राविकाओं द्वारा आहार से पहले नवदा भक्ति में पाद प्रक्षालन की विधि का उल्लेख तो मूलसंघ के ग्रंथों में मिलता है लेकिन महिलाओं द्वारा भगवान के अभिषेक करने का वर्णन मूलसंघ के किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलता।

अर्श मार्ग में अभिषेक की क्रिया में भगवान को उठाकर पांडुक शिला पर विराजमान करना, अभिषेक के समय भगवान के सर्वाङ्गो को चंदन लेपन करना एवं अभिषेक के बाद भगवान के सर्वाङ्गो को पोछने की क्रियाएं होती है जिनके बिना अभिषेक पूर्ण नहीं होता लेकिन साधुओं के पाद प्रक्षालन के समय यह क्रियाएं नहीं होती अतः अभिषेक और पाद प्रक्षालन की क्रियाओं में भेद है क्योंकि अभिषेक में स्त्रियों द्वारा भगवान को छूने से उनका ब्रह्मचर्य महाव्रत दूषित होता है लेकिन पाद प्रक्षालन में साधु को छूए बिना क्रिया सम्पन्न हो जाती है अतः पाद प्रक्षालन में कोई दोष नहीं लगता

शंका  -5  अगर महिलाएं भगवान के अभिषेक के लिए अशुद्ध है तो मंदिर में प्रवेश करना और पूजन करने के लिए भी अशुद्ध है

➡समाधान

अभिषेक यह एक अति शुद्ध प्रक्रिया है जिसमें अभिषेक करने वाले को भगवान को छूना ही पड़ता है। यह छूने की प्रक्रिया निम्नलिखित अवसरों पर होती है

भगवान को पांडुक शिला पर (अभिषेक की चौकी पर) विराजमान करते समय भगवान की मूर्ति को उठाना पड़ता है

अभिषेक से पहले सूखे कपड़े से मार्जन करते समय भी भगवान को छूना पड़ता है

अभिषेक के बाद गंधोदक इकट्ठा करते समय भी भगवान को छूने की आवश्यकता पड़ती है ताकि मूर्ति के नीचे अवशेष गंधोदक भी इकट्ठा किया जा सके

अभिषेक के बाद भगवान को सूखे कपड़े से मार्जन करने के लिए भी भगवान को छूना पड़ता है

फिर अभिषेक प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद भगवान को वेदी पर पुनः विराजमान करने के लिए उठाना पड़ता है

अर्श मार्गियों को तो अभिषेक के समय भगवान के सर्वाङ्गो पर चंदन लेपन भी करना पड़ता है।

इतनी सब अभिषेक की प्रक्रियाओं में जब भगवान को छूना पड़ता है और मार्जन करना पड़ता है तब भगवान के सर्वाङ्गों को छूना पड़ता है। अब यह विचारणीय है कि जिन भगवान का ब्रह्मचर्य महाव्रत होता है उनके सभी अंगों को यदि महिलाएं छुएं तो भगवान के ब्रह्मचर्य महाव्रत में बड़ा दोष लगता है जिसका महापाप उन सभी महिलाओं को लगेगा जो भगवान को छूती है

अब मंदिर आने और पूजन करने में भगवान को छूने का प्रसंग ही नहीं आता अथवा भगवान को छूने की जरूरत ही नहीं पड़ती इसलिए भगवान के ब्रह्मचर्य महाव्रत में कोई दोष लगने की कोई संभावना नहीं होती। यद्यपि प्रकृति से महिलाओं के शरीर में अशुद्धि रहती है तो भी मन्दिर प्रवेश और पूजन से उस अशुद्धि का भगवान की मूर्ति और उनकी प्रतिष्ठा पर कोई असर नहीं पड़ता और इसलिए मंदिर प्रवेश और पूजन में महिलाओं को कोई दोष नहीं लगता

जैसे यदि हम किसी बच्चे को मंदिर ले जाते है और वो मंदिर में लघुशंका आदि कर देता है तो विधिपूर्वक मंदिर की शुद्धि सम्भव है उसी प्रकार यदि महिला द्वारा मंदिर में कोई अशुद्धि हो जाती है तो उसकी भी शुद्धि सम्भव है। लेकिन भगवान का अभिषेक करते वक़्त यदि महिलाओं की अशुद्धि हो जाए तो भगवान की प्रतिष्ठा ही भंग हो सकती है और महिलाओं के निरंतर स्राव से भी ऐसी ही स्थिति बन सकती है।

मंदिर प्रवेश और पूजन यह देव दर्शन और आराधना के उद्देश्य से की जाने वाली क्रियाएं हैं जिसमें यथासंभव शुद्धि रखनी जरूरी है लेकिन जब महिलाएं प्राकृतिक रूप से अशुद्ध होती है तो भी मंदिर प्रवेश और पूजन के लिए यथासंभव शुद्धि रखकर क्रियाएं करे तो दोष नहीं लगेगा क्योंकि उनकी उस प्राकृतिक अशुद्धि से भगवान की मूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

भगवान के समवसरण में जैसे सभी महिलाएं प्रवेश करती है अथवा नंदीश्वर द्वीप के मंदिरों में देवियां प्रवेश कर सकती हैं उसी प्रकार मंदिर में प्रवेश करके पूजन आराधना करने में भी कोई दोष नहीं लगेगा क्योंकि मंदिर भी समवसरण का ही प्रतिरूप है।

 

शंका  6 भगवान का अभिषेक किए बिना पूजन अधूरी रहती है क्योंकि अभिषेक यह पूजन का अनिवार्य अंग है

➡समाधान

जो भी पूज्यनीय मुनि अथवा श्रावक यह कहते हैं कि अभिषेक पूजन का एक अनिवार्य अंग है और जो स्त्रियां भगवान का अभिषेक नहीं करती उनकी पूजन अधूरी है उनकी जानकारी के लिए बता दे कि 📖रत्नकरंडक श्रावकाचार के श्लोक ११९ पर पंडित सदासुखदास जी की हिंदी टीका में पूजन के केवल ५ अंग ही बताए हैं जो निम्नलिखित हैं

१ आह्वान

२ स्थापना

३ सन्निधिकरण

४ पूजन

५ विसर्जन

➡यही प्रमाण जिनेन्द्र सिद्धांत कोष भाग ३ पूजा शीर्षक के अंतर्गत उल्लेखित किया गया है

इन पांच अंगों से ही पूजन पूर्ण मानी जाती है जिसमें अभिषेक यह पूजन का अंग नहीं लिखा गया है

इसलिए यह भ्रांति फैलाना छोड़ दें कि अभिषेक पूजन का अनिवार्य अंग है जिसके बिना पूजन अधूरी है

यदि आपके पास ऐसा कोई प्रामाणिक मूलसंघ का आगम प्रमाण हो जिसमें लिखा हो कि अभिषेक पूजन का अनिवार्य अंग है जिसके बिना पूजन अधूरी है तो उस आगम प्रमाण को अवश्य भेजे

शंका -7 भगवान तो वीतरागी हैं उनको महिलाएं छुएं तो भी भगवान के ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष नहीं लग सकता

➡समाधान

महिलाओं के छूने से भगवान में विकार उत्पन्न होगा यह असंभव है लेकिन उनके ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष इसलिए लगेगा क्योंकि ब्रह्मचर्य महाव्रत में स्त्री द्वारा स्पर्श का पूर्ण निषेध है

मूल तो यह विचार करें कि भगवान के ब्रह्मचर्य महाव्रत को दूषित करने पर उस महिला को कितना बड़ा दोष लगता होगा और कितने निधत्ति निकाचित कर्मों का बंध होता होगा

श्रेणिक राजा ने भी केवल मुनि के गले में मृत सर्प डाला था तो उस उपसर्ग के फल स्वरूप श्रेणिक को नरक का बंध हो गया❗ ठीक उसी प्रकार जब कोई स्त्री भगवान को छूकर उनके ब्रह्मचर्य महाव्रत में दोष लगाती है तो यह भी भगवान पर एक बड़ा उपसर्ग ही करती है जिसका फल कितना भयंकर होगा कितनी बार नरक में जाना पड़ेगा यह विचारणीय है❗ एक सामान्य साधु पर उपसर्ग से जब श्रेणिक राजा नरक गए तो भगवान पर उपसर्ग से कितनी बार दुर्गति होगी इसका अनुमान लगा सकते हैं!

किसी भी महिला को बुरा लगे तो उत्तम क्षमा लेकिन जो प्राकृतिक व्यवस्थाएं हैं उनको चाहकर भी बदला नहीं जा सकता