घर तो पशु पक्षी भी वना लिया करते हें, लेकिन बड़े बड़े महलों का, मंदिरों का निर्माण मनुष्यों ने ही किया है “दुनिया की वहूत बड़ी बड़ी संस्थायें जंहा मानव सेवा के लिये वड़े वड़े कार्य कर रहे है, वंही मानवता को शर्मसार करने वाले लोग भी मनुष्यों के ही रुप में मौजूद है, मनुष्यों का महत्व जंहा एक और निर्माण के लिये याद किया जाता है तो, वंही विध्वंस और आतंकवाद फैलाने के लिये भी याद किया जाता है,जंहा सृजन की सामर्थता तुम्हारे पास है, तो इस हरी भरी धरती को आग लगाने वाले भी इसी धरती पर मौजूद है, उपरोक्त उदगार मुनि श्री समतासागर जी महाराज ने इन्द्र प्रस्तथ कालौनी में स्थित श्री वासूपूज्य जिनालय में आयोजित प्रातःकालीन प्रवचन सभा में व्यक्त किये*
उन्होंने कहा कि पहले मकान छोटे होते थे, लेकिन उसमें रहने वाले लोगों के दिल वहूत बडे़ हुआ करते थे। संयुक्त परिवार था,एक ही परिवार में कई सदस्य होंने के वावजूद भी परिवार के सभी सदस्य शुद्ध भोजन किया करते थे, पहले के लोग खेती किसानी का कार्य और व्यापार किया करते थे, भले ही पूरी क्रिकेट टीम हो जाऐ लेकिन सभी को पाल लिया करते थे, मौटा खाना और तंदुरूस्ती अच्छी हुआ करती थी, लेकिन आजकल एक या दो वच्चे,और एकल परिवार है,उन वच्चों को पड़ाने और उनको ऊंची ऊंची डिगरियां दिलाने का क्रेज चल पड़ा है, जिसमें ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ता है, फिर जो वच्चे एक वार पड़ने के लिये बाहर निकले तो उनका वापिस आना नहीं होता है,और वह वंही के होकर रह जाते है। आज बड़े वड़े महलनुमा मकान तो है, लेकिन उन मकानों में रहने वाले लोग ही नहीं वचे। उन्होंने इन्द्र प्रस्तथ कालौनी के इस भव्य जिनालय की प्रशंसा करते हुये कहा कि मंदिर और जिनालय वनाने का काम इन जीवधारियों में मनुष्यों ने ही किया है, और आजकल तो एक क्रेज भी चल पड़ा है, कि कंही भी कोई नई कालौनी कटी तो सवसे पहले वह मंदिर निर्माण कर देता है, और जंहा पर मंदिर निर्माण हुआ तो फिर उस कालौनी का भी क्रैज अपने आप वड़ ही जाता है। उन्होंने स्वर्ग और नर्क की चर्चा करते हुये कहा कि मरते हुये वच्चों को जीवनदान दैनै वाले भी इंसान ही रहे है, और हंसते खेलते वच्चों को गोलिओं से भूनने वाले भी इंसान ही रहे है,व्यक्ती की मानसिकता ही स्वर्ग और नरक वनाती है, दुनिया की वहूत बड़ी बड़ी संस्थायें जंहा मानव सेवा के लिये वड़े वड़े कार्य कर रहे है, वंही मानवीयता को शर्मसार करने वाले लोग और आतंकवादी घटनाओं को जन्म दैनै वाले मनुष्य भी इसी धरती पर है। उन्होंने कहा कि एक सम्यक् दृष्टि कभी भी किसी का अहित नहीं करता वह इस वात का ध्यान रखता है कि मेरी किसी क्रिया से किसी जीव का अहित न हो जाऐ। आज
सिद्ध भगवान तो हमारी पकड़ में है नही,और अरिहंत भगवान भी इस पंचम काल में मिल नहीं सकते भले ही चतुर्थ काल नहीं हो, लेकिन जो 28 मूलगुणों के साथ जो चर्या मुनिओं की चलती थी,वही मुनिचर्या वर्तमान में साक्षात आप सभी को देखने को मिल रही है, यह भी किसी चमत्कार से कम नहीं है।
उन्होंने विदिशा नगर के शीतलधाम की चर्चा करते हुये कहा कि वंहा की धरती और भू गर्भ से निकली उस प्रतिमा का चमत्कार ही कहो कि इतना समय वंहा पर हो गया लेकिन कभी भी वोरियत या अकेले पन का अहसास नहीं हुआ भले ही हम प्रवचन करने और आहार करने के लिये विदिशा की विभिन्न कालोनियों या मुहल्लों में गये लेकिन दौपहर होते होते वापिस मन शीतलधाम की और हो ही जाता है। उन्होंने विदिशा नगर के नागरिकों की तारीफ करते हुये कहा कि यह भगवान शीतलनाथ की नगरी का ही प्रभाव है, कि निर्गन्थ जैन मुनि और पिच्छीधारी यदि कंही भी निकल जाते है, तो रास्ते में चलने वाले जैन तो जैन जैनैत्तर समाज भी पूरा वहुमान देती है, और जिस धरती पर साधुओं का सम्मान और वहुमान होता रहा हो वह नगर और वंहा के रहने वाले लोगों पर देवताओं की भी नजर रहती है।
आप लोगों ने कुछ दिन का प्रवास यंहीं मांगा है,करुणा और भावनाओं से तो आप गुरु को वांध सकते है, लेकिन व्यवस्थाओं से गुरु को नहीं वांधा जा सकता आगे जैसी व्यवस्था वनेगी वैसा आप लोगों को जानकारी मिल जाऐगी।
(अविनाश जैन विदिशा)