कर्नाटक सरकार ने हटाई, जैन धर्म की पढ़ाई- जैनो से क्यों बेवफाई

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सान्ध्य महालक्ष्मी / 23 फरवरी
अभी तक छठी कक्षा में पढ़ाई जा रही जैन धर्म की शिक्षाओं व विकास वाले पाठ को कर्नाटक सरकार ने तत्काल प्रभाव से हटा दिया है।
17 फरवरी को इस संबंध में एक सर्कुलर जारी किया गया है कि कक्षा 6 के सामाजिक विषय के पाठ सात को भविष्य में नहीं पढ़ाया जाये, यही नहीं, वर्तमान अकादमिक वर्ष में भी इस पाठ को मूल्यांकन से अलग रखने को कहा है।

दो माह पूर्व ब्राह्मण विकास बोर्ड मुख्यमंत्री बी. एस. यदियुरप्पा से मिला और इस पाठ पर विरोध जताया। और सरकार ने तत्काल कार्यवाही कर इतिहास के पन्नों से जैन और बौद्ध धर्म के विकास संबंधित पाठ को हटाकर इतिहास के एक पहलू को मिटाने की शुरूआत कर दी है। कर्नाटक राजकीय शिक्षा बोर्ड की प्राइमरी की पाठ्य पुस्तकें छापने वाले कर्नाटक पाठ्य पुस्तक सोसायटी को पाठ से उस भाग को हटाने के निर्देश दे दिये हैं, जिनमें जैन और बौद्ध धर्म के विकास का उल्लेख है, निश्चय ही यह दोनों धर्मों के इतिहास को मिटाने की सरकारी कोशिश है। अब 2020-21 शैक्षणिक वर्ष से कक्षा 6 के सामाजिक विज्ञान के पाठ-7 – ‘नये धर्मों का विकास’ में 82 व 83 पेराग्राफ को निकालने के लिए सोसायटी को आदेश दे दिये गये हैं।
इन दोनों पेराग्राफ में 1500 से 600 ईसा पूर्व काल का उल्लेख है कि तब वैदिक काल में महंगे हवन और यज्ञ में पशु बलि के चलते लोग दूरी करने लगे। हवन में बड़ी मात्रा में अन्न, दूध, घी के साथ अन्य वस्तुओं के प्रचुर मात्रा में प्रयोग होने से महंगे हो गये थे, वहीं यज्ञों में पशुओं की बलि दी जाती थी। पाठ में स्पष्ट किया है कि वैदिक धर्म में मुक्ति पाने का एकमात्र उपाय ये महंगे हवन और बलि वाले यज्ञ ही विकल्प है। आम आदमी न तो इतने मंहगे हवन करवाने का सामर्थ्य रखते और न ही उनका मन, यज्ञों में पशुओं की बलि को स्वीकारता। वहीं कठिन संस्कृत भाषा में मंत्र केवल पंडित ही जानते। जैन और बौद्ध धर्म, मुक्ति का सरल मार्ग बताते और लोग उनकी ओर आकर्षित हो जाते।
शिक्षाविदों ने इसे अलोकतांत्रिक और मनमाना कदम कहा है। विशेषज्ञों ने काफी अनुसंधान के बाद इस विषय को जोड़ा था और बच्चों को राज्य की सामाजिक व सांस्कृतिक इतिहास को जानने का अधिकार है कि अतीत में क्या हुआ और कैसे अन्य धर्मों का विकास हुआ। अब उनसे यह छीना जा रहा है, और शिक्षाविदों से इस बारे में ना पूछा जाना, प्रकृति व न्याय का विरोध मानते हैं। जैन और बौद्ध, दोनों ही अल्पसंख्यक हैं और उनकी संस्कृति की सुरक्षा की जिम्मेदारी के वहन की  बजाय, मिटाना अन्याय पूर्ण कदम है।
जैन समाज के संस्थानों कौ बौद्ध कमेटियों के साथ मिलकर आवाज उठाने की तुरंत आवश्यकता है।