आदर्श प्रसंग- परीषहों के आगे समय नही बदला जाता अपितु शरीर व आत्म भेद विज्ञान की ताकत बढाई जाती है- महातपोमार्तण्ड श्री सन्मति सागर जी ऋषिराज

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युगश्रेष्ठ आचार्य शिरोमणि द्वारा अपने सुशिष्यो को मेहनती किसान के प्रबल पुरुषार्थ का मिसाल पूर्वक श्रेष्ठ सन्देश-

पंचमकाल में पूर्वाचार्यो की तरह श्रेष्ठतम साधको में से एक युगाचार्य रत्न महातपोमार्तण्ड श्री सन्मति सागर जी ऋषिराज संघ सहित सन 2000 में भारी शीतलहर के मध्य उत्तरप्रदेश के बनारस जिले में विहार रत थे।

सर्दी इतनी तेज की लोगो को दो तीन स्वेटर पर भी राहत नही लेकिन ऐसे मौसम में भी आचार्य श्री प्रातः दूर तक शौच हेतु निकल जाते थे। जिनके साथ नित्य प्रायः भ्रमण में दाये व बाए युगल भ्राता सम विख्यात रहे युवा मुनि श्री सुनील सागर व मुनि श्री सुंदर सागर जी रहते थे।

अत्यधिक शीत वातावरण में भी सवेरे सवेरे आचार्य श्री का खुले भृमण में निकलना द्वय मुनियो को आश्चर्य व थोड़ा कठिन लग रहा था। इसलिए गुरु के प्रति स्नेहशील हो या अपने लिए ही सही मुनि श्री सुनील सागर जी अपने कठोर तपस्वी गुरु को बोल पड़े कि गुरुदेव ठंड बहुत तेज है इसलिए इस मौसम में थोडी देर से निकले तो शरीर के लिए उचित रहेगा।

कहते है विज्ञ दक्ष गुरु के सामने हर विषय को बहुत ही सोच समझ कर रखना चाहिए क्या पता सामान्य प्रश्न का भी कभी कितना गहन उत्तर मिल जाए और विद्वान हमेशा किसी भी प्रश्न का उचित समय पर जवाब देते है।

इसलिए आचार्य श्री तब तो मौन रहे लेकिन अगले दिन उससे भी आधा घण्टे पहले शौच भृमण हेतु निकल पड़े,साथ मे दाये- बाये भारी ठंड के बीच कपकपाते वही द्वय युवा मुनि।

इसबार आचार्य श्री एक खेत की ओर चल दिये,द्वय मुनि थोड़ा विस्मय में पड़ गए कि आज रोज से जल्दी भी ओर वो भी एक खेत की तरफ आखिर क्या माजरा है?

तभी आचार्य श्री घुटनो तक पानी से भरे एक धान के खेत की तरफ इशारा करते हुए द्वय मुनियो को सम्बोधन पूर्वक बोले-महाराज देखो उस खेत को जिसमे घुटनो तक पानी है फिर भी एक पति-पत्नी जिसमे उसकी पत्नी के कमर पर बच्चा बंधा हुआ है और वे सिर्फ दो वक्त की रोटी के लिए,अपना घर चलाने के लिए इतनी अत्यधिक ठंड में भी भारी कठिनाइयों को सहन करते हुए मेहनत कर रहे है। तो महाराज हमे तो मोक्ष तक कि यात्रा करनी है तो सोचो हमे कितनी मेहनत व परीषह सहन करना पड़ेगा।

परीषहों के आगे समय नही बदला जाता अपितु शरीर व आत्म भेद विज्ञान की ताकत बढाई जाती है।

आचार्य श्री सन्मति सागर जी ऋषिराज द्वारा अपने द्वय युवा शिष्यो को दिया गया ये मिसाल पूर्वक सन्देश दोनों मुनियो के अंतर्मन को छूते हुए जीवन पर्यंतय तक का गहन बोध दे गया।जो समस्त साधको की कठोर साधना का अभिन्न अंग है।

यही युगल आपसी भ्राता सम वात्सल्य स्नेही मुनि आज चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनील सागर जी व आचार्य श्री सुंदर सागर जी गुरूराज के रूप में जग विख्यात है।जो अपने महान गुरु की प्रभावना को जन जन तक पहुँचा रहे है।

-शाह मधोक जैन चितरी