परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री 108 सुधासागर जी महाराज ने आज
व्यक्ति बहुत असंमजस में रहता है कि वह जो कुछ कर रहा है वह अच्छा है या बुरा। वह विचारते पूरी जिंदगी भी लगा देता है फिर भी हित है या नही निर्णय नही कर पाता। धर्मात्मा भी संदेह में रहते हैं। सारे परिषहों में चारित्र मोहनीय कर्म की मुख्यता रहती है लेकिन यह दर्शन मोहनीय कर्म के उदय से होता है अर्थात यहां मिथ्यात्व नही बल्कि क्षयोपशम सम्यकदर्शन। अदर्शन परिषह मिथ्यात्व के उदय में लेकिन नही फिर गुणस्थान ही नही रहेगा। दर्शन मोहनीय की तीन प्रकृतियों में एक है सम्यक्व प्रकृति यह क्षयोपशम सम्यकदृष्टि को यह परिषह होता है, भावलिंगी साधु को भी हो सकता है, शास्त्र पढ़ते-पढ़ते संशय भी हो जाता है।
जो लिखा होता है वह बुद्धि और अनुभव से परे होता है। अर्थात जिसमें रस न हो उसमें रस लेने को कहा जाये तो कैसे हो। आत्मा के उस स्वरुप को देखो जिसका रुप नही है। लिंग नही है तो भी पहचानो, गंध भी नही तो गंध जानो। जीव तो लक्षण वाला ज्ञान, दर्शन जानने में आता है लेकिन आत्मा को कैसे पहचाने। जीव का आकार भी है लेकिन आत्मा का। संतोष इसलिये है कि यह भगवान की वाणी है जो परम वीतरागी है। त्रिलोक के सभी गृह लटके रहते है, सूर्य अंनतकाल से चमक रहा है, स्वर्ग और नरकों की कल्पना से परे वह अकाल मारने से भी नही मरता, इत्यादि संशय चलते रहते है। समंतभ्रद स्वामि ने कहा यह समझने का कोई फायदा नही और जीवन थोड़ा है , इस जिनवाणी का समझने के लिये, सृष्टि के किनारे का कोई अंत नही होता। लेकिन हम किनारे के लिये कूद जाते है क्योकि अंहकार होता है। हम भगवान को बुद्धू समझते हैं और मंदिर के बाहर आते ही मचलना शुरु और सारे अविवेक कार्य शुरु कर देता है कि अब वह हमें नही देख रहा। हर व्यक्ति को अपने ज्ञान का अंहकार होता है जो पतन का कारण बनता है। ज्ञान को धोखे के लिये इस्तेमाल करता है, बच्चे से लेकर बड़े लोगों तक, माता – पिता से झूठ, गुरु और भगवानों से छिपाना तो और अपशकुन समझना। सब अपने गिरेबान में झांको और अपनी कमियां को पहचानो, उस भूल को किसी से नही कहा। दुश्मन, अपरिचित से तो छिपालो पर जो तुम्हारे हितकारी है, पूज्यों से, उपकारियों से छिपाने वाले को प्रकृति माफ नही करती।
देखो यदि हम अपने उपकारी से प्रकट करते हैं तो वह उससे बचाने का प्रयास ही करेगें देखो मां थप्पड़ मार सकती है, लेकिन अंदर से बचाने की ही हमेशा सोचती रहेगी, माला करेगी, तुम्हारे अपराध को मां क्षमा करती है, अपना भला नही सोचती। मां किडनी एक क्षण में दे देगी मगर बेटा नही देगा क्योंकि उसे मां की उपयोगिता उसकी आंखों में नही रहती। ऐसा बेटा आगे के भव में अनाथ रहेगा और क्या कष्ट नही भोगेगा। सभी बच्चों को कहता हूं तुम द्श्मन से भय रहित नही हो पाओगे, उनसे सावधान रहना, लेकिन निकट वर्ति लोगों से तो भय मुक्त रहो, उनसे झूठ मत बोलो, छिपाओ मत। मकानमालिक अपने घर का नही मालूम की चोर कहां से आ सकता है लेकिन चोर को मालूम है क्योंकि चोर का उपयोग वक्रता में लगा रहता है। 3 कोस का मनुष्य, विक्रीय, बाहुबली की एक साल की आडिग तपस्या, 56 करोड़ यदुवंशी बरात में, मुनियों को घानि में पेल दिया, शास्त्रों में बहुत से बातें हैं वह संशय-सत्य की श्रृंखला प्रवचनों में आगे इस रहस्य के बारे में बतायेगें।
संकलन: भूपेश जैन