परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री 108 सुधासागर जी महाराज ने आज (11-2-21) बिजौलिया के पार्श्वनाथ तपोदय तीर्थक्षेत्र में प्रवचनों में कही कि-
पश्चात्य सभ्यता ज्यादा से ज्यादा भोग करने में लगी हैं, प्रकृति का दोहन भी ज्यादा। दुनियां में बहुत सारी शक्तियां आत्मा की प्रकट की मगर या तो वे नष्ट हो गई या फिर पतन को प्राप्त हुई की संस्कृति को
भारत में महावीर ने उस धर्म को खोजा जिससे कोई भी व्यक्ति पुजारी से पूज्य बन सकता है। पूज्य बनने की प्रक्रिया मात्र भारत में है। महावीर ने कहा की जैन दर्शन भक्ति पर ही खत्म नही होता बल्कि प्रजातंत्रवादी है। राजतंत्र होता है एक के हाथ में बागडोर और प्रजातंत्र में प्रत्येक व्यक्ति अधिकारी होता है। जैसे देश में कोई व्यक्ति जन्म लेता है तो उसे कोई भी पद लेने का अधिकार होता है। इसी तरह जैन धर्म प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार देता है कि वह भक्त से भगवान बन सकता है और उसी प्रक्रिया के तहत पंचकल्याणक महोत्सव होते हैं। ये महोत्सव मात्र पूजा के लिये नही है, मात्र भक्ति के लिये नही है, भगवान पूजने के लिये नही है बल्कि नर से नरायण, पशु से परमेश्वर, पतित से पावन बनने व सिखाने की प्रक्रिया है। जैसे राष्ट्र की गद्दी किसी एक की नही होती कोई भी उम्मीदवार बन सकता है, इसी तरह भगवान का पद किसी एक का नही बल्कि कोई भी योग्यता से उसे पा सकता है। आज ध्वजारोहण हुआ जो की पंचकल्याणक की शुरुआत है। ध्वजा सारे पण्डाल की
ऊर्जा को एकत्रित करके पूरे विश्व में फैलाता है। विश्व में कोई भी बोधिशिला नही है वह सिर्फ है बिजौलिय के रेला नदी तट पर जहां पर लगभग 2600 वर्ष पहले भगवान पार्श्वनाथ ने बोधि प्राप्त की थी। और 1226 सं वर्ष में लोगों ने शिखर पुराण नामक 300 श्लोकों से लिखकर पूज्य बना दिया। पहले भी बहुत बार यहां पर पंचकल्याणक हुये पर इस बार बोधिशिला पर चर्तुमुखी प्रतिमा में विराजित होंगें।
संकलन: भूपेश जैन