परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने (10-2-21) बिजौलिया के पार्श्वनाथ तपोदय तीर्थक्षेत्र में प्रवचनों में कही कि-
संसार की सब निंदा करते हैं लेकिन संसार निंदनीय नही है, संसारी निंदनीय है। संसार द्रव्यों की क्यारी है, संसार तत्वों की खेती है, संसार पद्धाथों से भरा हुआ फल का बगीचा है, द्र्व्यों से तत्व निकलता है, बीज से अंकुल निकलता है, जिससे सृष्टि चलती है इसलिये बीज को भोगा नही जाता बल्कि बोया जाता है, द्रव्य को जाना जाता है भोगा नही जाता। जैसे किसान बीज को अपनी पूरी जान लगाकर सुरक्षित रखता है, इसी तरह हम द्रव्यों को भोगने के लिये नही, वह तो त्रैकालिक सत्ता है वह जानना। वह भोग्य नही बल्कि भोक्ता है। यदि हम किसी का भी भोग करगें वह नष्ट होने वाली होती है। जैसे गेहू के दो रुप एक बीज रुप और एक रोटी रुप और रोटी ही भोग्य है क्योंकि रोटी का और कोई रुप नही होता। ऐसी ही द्रव्य बीज है वह आनंद दे नही सकता। इसलिये आचार्यों ने तत्वों पर श्रद्धान के लिये कहा है क्योंकि तत्व रुप में ही आनंद है। जैसे भूखे को रोटी दी जाती है इसी तरह दुखी व्यक्ति को तत्व ही सुख में पहुंचाने वाला है। तत्व है पर्याय रुप जो हमारे सामने मिट जाये जैसे रोटी खाने में मिट जाती है।
द्रव्य उपादन शक्ति है जिसे निमित्त मिलने पर उत्पन्न होता है। मगर तत्व को जैसा निमित्त मिलता है वह उत्पन्न हो जाता है, इसलिये वह निमित के काम आता है। द्रव्य अविनाशी, मुक्त उपादान, शक्तिशाली है और आज ऋषभदेव ने मोक्ष तत्व प्राप्त किया। द्रव्य तो वह स्वयं है। मोक्ष तत्व द्रव्य से ही निकलता है। द्रव्य मोक्ष तत्व नही और मोक्ष तत्व द्रव्य नही लेकिन दोनों एक दूसरे के बिना नही। मोक्ष के बिना द्रव्य रह सकता है लेकिन द्रव्य के बिना मोक्ष नही रहता जैसे गेहूं के बिना रोटी नही हो सकती। हमने बहुत बार तत्व को जाना, पहचाना, सम्यकदृष्टि व ज्ञानी भी हुये मगर मोक्ष तत्व प्राप्त नही कर पाये उसे हम पदार्थ में नही बदल पाये जैसे हर बीज फल नही देता। आज ऋषभदेव भगवान ने तत्व को प्राप्त करते करते पदार्थ बन गये, मोक्ष पद को पा लिया। मोक्ष तत्व का अनुभव तो हो सकता है मगर मोक्ष पद पर नही आ सकते क्योंकि वह शरीर रहित होता है। तत्व भावनात्मक होता है।