माघ चतुर्दशी कृष्ण की मोक्ष गए भगवान, भवि जीवों को बोधके पहुचे शिवपुर थान

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1886

श्री 1008 आदिनाथ भगवान तीसरे काल में जन्म लेकर तीसरे काल में ही मोक्ष चले गए ऐसा हुंडावसर्पिणी काल के कारण हुआ, 149 चौबीसी बीतने के बाद इक हुंडावसर्पिणी काल आता है
आदिनाथ भगवान की आयु 84 लाख पूर्व वर्ष की थी
84 लाख वर्ष का 1 पूर्वांग होता है
84 लाख पूर्वांग का 1 पूर्व होता है
अतः वर्षों में कुल आयु होगी
84लाख X 84लाख X 84लाख
इस प्रकार जो संख्या आएगी उतने वर्ष
20 लाख पूर्ववर्ष तक कुमारकाल
63 लाख पूर्ववर्ष तक राज्य
1 लाख पूर्व वर्ष मुनिदीक्षा एवं समवशरण विहार
5 भरत क्षेत्र और 5 ऐरावत इन 10 क्षेत्रों में छःकाल का परिवर्तन होता रहता है अवसर्पिणी के पहला दूसरा तीसरे काल में यही पर भोगभूमि रहती है।फिर कर्मभूमि 4-5-6 वे काल में रहती हैं चौथे काल चालु होने के पहले कर्मभूमि की व्यवस्था समझाने के लिए 14 कुलकर होते हैं।
श्री आदिनाथ भगवान अंतिम चौदहवे कुलकर श्री नाभिराजा और मरुदेवी जी के पुत्र थे।
तीर्थंकर की पुत्रियां नही होती किन्तु हुंडावसर्पिणी काल दोष से आदिनाथ भगवान की 2 पुत्रियां हुई
नंदा महारानी जी से ब्राम्हणी और सुनंदा महारानी जी से सुंदरी। इन दोनों ने शादी नही की बाल ब्रम्हचर्य व्रत लिया था।
19 तीर्थंकरों ने जन्मदिन के दिन दीक्षा ली थी आदिनाथ जी ने भी चैत वदी नवमी को दीक्षा ली थी।
1008 श्री आदिनाथ भगवान का समवशरण 12 योजन विस्तार का था यानि 48 कोस का था।
श्री अजितनाथ का आधा योजन कम यानी 11.5 योजन का था ऐसे कम होते हुए श्री 1008 भगवान महावीर स्वामी जी का 1 योजनप्रमान था।
आदिनाथ भगवान के 101 पुत्रों में से किसने कब दीक्षा ली❓❓
नंदा महारानी जी के भरत चक्रवर्ती आदि 100 पुत्र थे और सुंनंदा महारानी जी के बाहुबली ऐसे कुल 101 पुत्र थे।
अनंतवीर्य जी सहदीक्षित हुए थे और इस अवसर्पिणी के प्रथम मोक्षप्राप्तकर्ता बने
भरत चक्रवर्ती द्वारा आधीनता स्वीकार करने का संदेश मिलने पर शेष 98 सगे भाइयों ने मुनिदीक्षा ले ली थी।
भरत जी को 3 युद्ध में परास्त करने के बाद बाहुबली जी ने भी दीक्षा ले ली थी।
यानि 6 खण्ड के निष्कंटक राज्यसुख को भोगने के लिए भरत चक्रवर्ती अकेले बचे थे ये ही संसार और वैराग्य की परस्पर विसंगति है।
आदिनाथ भगवान के पिछले 10 जन्मों की कथा को अपने जीवन में 1 बार अवश्य पढना चाहिए परिणामो में कमाल की विशुद्धि आती है। राजा वज्रजंघ से प्रारम्भ होती है।
प्रथम तीर्थंकर नाम – आदिनाथ जी
चिन्ह – वृषभ
द्वीप का नाम – जम्बूदीप
क्षैत्र – पूर्व विदेह
देश प्रांत – पुष्कलावती
नगर – पुंडरीकिनी
वहाँ का नाम – वज्रनाभि (ऋषभदेव का जीव तो चक्रवर्ती 11 अंग 14 पूर्व का वेत्ता था।)
वहाँ के गुरु – वज्रसेन
कहां से आये – सर्वार्थ सिद्धि विमान
जन्म भूमि – अयोध्या (साकेत पुरृ)
वंश – इक्ष्वाकु वंश
पिता – नाभिराज जी
माता – मरुदेवी
गर्भ तिथि – आषाढ़ कृष्णा दूज
गर्भ नक्षत्र – उत्तराषाढ़ा
जन्म तिथि – चैत्र कृष्णा नवमी
जन्म नक्षत्र – अभिजित
जन्म राशि – धनु
शरीर वर्ण – तपा हुआ स्वर्ण
शरीर की ऊंचाई – 500 धनुष
कुमार काल – 20 लाख पूर्व वर्ष
राजभोग काल – 63 लाख पूर्व
केवली काल – एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व वर्ष
पूर्ण आयु – 84 लाख पूर्व वर्ष
दीक्षा तिथि – चैत्र कृष्णा 9
दीक्षा समय , नक्षत्र – अपरान्ह , उत्तराषाढ़ा
दीक्षा पालकी – सुदर्शन
दीक्षा नगर ,वन – प्रयाग , सिद्धार्थ वन
दीक्षा वृक्ष ,वृक्ष ऊंचाई – वट वृक्ष , 6000 धनुष
वैराग्य निमित्त – नीलांजना की मृत्यु
दीक्षा उपवास नियम – 6 माह का उपवास
कितने दिनों के बाद आहार – 13 माह 9 दिन बाद
प्रथम आहार – इक्षुरस
आहार दाता – श्रेयांस राजा
पारणा नगर – हस्तिनापुर
दीक्षित राजा – चार हजार
केवलज्ञान तिथि – फाल्गुन कृष्ण 11
केवलज्ञान समय ,नक्षत्र – पूर्वान्ह उत्तराषाढ़ा
केवलज्ञान वन ,वृक्ष – शकटावन , वटवृक्ष
समोशरण विस्तार – 12 योजन
कुल गणधर – 84
मुख्य गणधर – वृषभसेन
समवशरण में सामान्य केवली- 20000 हजार
पूर्वधारी – 4750
शिक्षक – 4150
विपुलमति मन: पर्यय ज्ञानी – 12705
विक्रिया ऋद्धिधारी – 20600
अवधिज्ञानी – 9000
वादियों की संख्या – 12750
मुख्य गणिनी – ब्राम्ही
मुख्य श्रोता – भरत
श्रावक – तीन लाख
श्राविका – 5 लाख
यक्ष – गोमुख (वृषभ)
यक्षिणी – चक्रश्वरी
योग निरोध – 14 दिन पहले
मोक्ष तिथि – माघ कृष्ण चौदस
मोक्ष समय , नक्षत्र – पूर्वान्ह उत्तराषाढ़ा
मोक्षस्थली – कैलाश पर्वत
मोक्ष आसन – पद्मासन
ऋषभनाथ तीर्थ प्रवर्तन काल- 50 लाख करोड़ सागरोपम + 1 पूर्वांग
नंदन जैन छिंदवाड़ा म.प्र.