सुख कहीं से प्रकट नहीं होता है, सुख का अर्थ निर्भय होना मे है यदि आपको को कोई भय है तो सुख का आनंद नहीं आएगा: मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
बचा हुआ भिखारी को दिया जाता है खाने के पहले भिक्षु को दिया जाता हैं
1.किसान-मन से याचना नहीं करना याचना से मंदिर नहीं बनाना,बीज को किसान जब उसके पास कुछ भी नहीं था तब खेत में बीज को डालता है तब फसल लहराती है इसलिए किसान का दान का दान नींव का दान हैं।
2.कर्म की मार-कर्म के कारण तो बहुत भुखे रहे,श्रावक धर्म के कारण भुखा रहता है हमारे तो गुरु जी ने ले लिया हम धन्य हो गए श्रावक नाचता है कर्म की मार के कारण मैं भूखा नहीं रहूंगा मैं धर्म के लिए भुखा रहूंगा।
3.भय रहित-जब तक भय है तब तक सुख नहीं यह फार्मूला हैं सुख कहीं से प्रकट नहीं होता है, सुख का अर्थ निर्भय होना मे है यदि आपको को कोई भय है तो सुख का आनंद नहीं आएगा, यह भय रहित हो जाओ सुखी होने के लिए।
4.थोड़ी देर के लिए दुख जिंदगी भर के लिए,सुख के आनंद के बाद का दुख बहुत है अपनी जिंदगी बचाने के लिए आदमी दुख भी सहन करने को तैयार हैं।
5.दुख मे शरण-दुख के दिनों में भगवान धर्म गुरु याद आते हैं दुख के दिनों में सत्य का दर्शन होता है दुख के दिनों में किसकी शरण में जाना चाहिए।
6.जिन्होंने क्षेत्र बनाने के लिए भुदान किया भुदान से अनन्तगुणा पुण्य अपना बढाने के लिए होता हैं।
शिक्षा-चवलेश्वर के लिए दिया गया भूदान अनंतगुना फलेगा।
सकंलन ब्र महावीर