व्यक्ति के वाणी कि नहीं उस व्यक्ति के प्रभाव की वाणी का महत्व होता है : आचार्य विशुद्ध सागर जी

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2002

झुमरीतिलैया( कोडरमा) गुरुवर की मंगल वाणी बड़ा मंदिर सरस्वती भवन के पंडाल की धर्म सभा मे जैन संत आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर जी महाराज ने अपने अमृतमय प्रवचन में कहां की इस दुनिया में अज्ञानता के कारण ही दुख है क्लैश है सदबोध के बाद दुख समाप्त हो जाता है आज मनुष्य के पास जो चीज उसकी अपनी नहीं है मनुष्य उसी वस्तु को सत्य मानकर खोज रहा है व्यक्ति का स्वभाव है धन खत्म होने के बाद वह दुखी होता है और आने पर वह सुखी होता है धर्म के मर्म को जानने के लिए अज्ञानता उतारने की आवश्यकता है मनुष्य अपने भूल को सुधार कर ज्ञान को प्राप्त कर सकता है व्यक्ति की स्मृति थक जाती है परंतु स्मरण नहीं थकता है इच्छाओं का नष्ट होना ही मोक्ष मार्ग है समय को देख कर काम करना चाहिए बच्चे को हर समय डांटना नहीं चाहिए बच्चे को प्रशंसा करके भी समझाया जा सकता है और उसकी अज्ञानता को दूर किया जा सकता है
पूज्य गुरुदेव आचार्य विशुद्ध सागर जी ने कहा कि पंडित और विद्वान वही है जिससे के पास अपेक्षा है हमें प्रतिदिन जिनवाणी धार्मिक पुस्तकें का स्वाध्याय कर ज्ञान अर्जन अवश्य करना चाहिए इसमें प्रमाद नहीं करना चाहिए धर्म का सार समझना चाहिए
उपयोग पवित्र हो तो योग हाथ जोड़ लेता है सरल हो जाता है मुद्रा भावों को बताती है इसलिए जहां योग है वह नियम से उपयोग है गुरुदेव ने कहा कि व्यक्ति के वाणी कि नहीं उस व्यक्ति के प्रभाव की वाणी का महत्व होता है विशुद्ध वाणी ही जिनवाणी है उसी का अनुसरण करके जीवन प्रकाशमय बन सकता है हमेशा प्रभु की वाणी के सूत्र गूंजे मुख में जिन वचन हो ऐसा ही भक्ति संदेश लोगों को देना चाहिए प्रवचन के पूर्व बड़ा मंदिर में गुरुदेव के सानिध्य में पारसनाथ भगवान की शांति धारा जयकुमार जैन मनीष जैन गंगवाल के परिवार के द्वारा किया गयाऔर भक्तजनों के द्वारा कलश पूजन पाठ किया गया सरस्वती भवन के पंडाल में
महाराष्ट्र राजस्थान मध्य प्रदेश से आए भक्तों नेआचार्य विराग सागर जी गुरुदेव के चित्र का अनावरण किया दीप प्रज्वलित किया अतिथियों के साथ समाज के पदाधिकारी सुशील जैन छाबड़ा किशोर जैन पंड्या दिल्ली ने शास्त्र पुस्तक का विमोचन किया