जीवन की धारा है, उसे चिन्ता में लगाओगे तो जल जाओगे और चिन्तन करोगे तो चमक जाओगे : आचार्य रत्न विशुद्ध सागर जी

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मस्तिष्क का प्रयोग शरीर के लिए होने लगा, तो तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट होना प्रारंभ हो गई । मस्तिष्क जैसे – जैसे सूखेगा वैसे वैसे चेहरा विकृत होता जायेगा
यदि बुद्धि को सुरक्षित रखना है , तो वीर्य की रक्षा करो , संयम का पालन करो । संयम नष्ट होते ही चिंताएँ घेर लेती हैं ,व्याधियाँ घेर लेती हैं ।
विद्युत की धारा को आप फ्रिज में लगा दो, तो वह जमा देती है और उसी धारा को हीटर में जोड़ दो, तो जला देगी ।
बिजली की धारा हीटर में प्रयोग करोगे तो जलायेगी , झुलसायेगी और उसी धारा को फ्रिज में प्रयोग करो, तो शीतलता देगी ।
ऐसे ही चिंता करोगे तो झुलस जाओगे और चिंतन करोगे तो चमक जाओगे । जीवन की धारा है , उसे चिन्ता में लगाओगे तो जल जाओगे और चिन्तन करोगे तो चमक जाओगे ।
:— आचार्य रत्न विशुद्ध सागर जी महाराज