ज्ञानियो ! जब ब्रह्माण्ड में लोग धर्म से शून्य होने लगते हैं आचरण का विघात होने लगता है, मिथ्यात्व की बृद्धि होने लगती है और वीतराग मार्ग पर लोगों को ग्लानि भाव उत्पन्न होने लगता है, ऐसे काल में भगवान् जिनेन्द्रदेव का जन्म होता है
हर युग में, हर काल में जहाँ पुष्प होता है, वहाँ काँटे भी होते हैं। फूल की पहचान करानेवाला काँटा ही है । काँटा लोगों को न चुभे, तो पुष्प की मृदुलता / कोमलता भी लोगों को समझ में न आये ।
यही कारण है कि लोक में जब राम ने जन्म लिया, तब रावण ने भी जन्म लिया । राम की पहचान करानेवाला रावण है । यदि कृष्णा ने जन्म लिया , तो उसी समय कंस ने जन्म लिया । चन्द्रनखा, जिसको लोक में सूर्पनखा कहा जाता है , न होती तो सीता की भी कीमत न होती । सीता की’ कीमत को चन्द्रनखा ने बढ़ाया है ।
इस लोक में जब – जब महापुरुषों ने जन्म लिया है, तो उनसे जलने वाले लोगों ने भी जन्म लिया है । यह लोक की रीति है ।
साधु को पैसा देना पाप है जो मागे उनसे कहना शास्त्र में लिखा क्या कही*
आगम का उपदेश यही है, इसमें नही चलता है कि आप के यहां आहार हो गए और लिखाओ, यह कही नही लिखा ,यह ओर कोई परम्परा नही है यह दिगम्बर परम्परा है
तीव्र कर्म का उदय चल रहा है उनका जो रात्रि भोजन को त्याग करने के भाव नही आते
पंचमकाल में कोई धोती दुपट्टा भी पहने यह बहुत बड़ी बात है टी शर्ट तो छोड