अरिटापट्टी – सबकी आवाज रंग लाई – आदेश वापस, बच गई जैन संस्कृति

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11 फरवरी 2025/ माघ शुक्ल चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन /
॰ दो हजार वर्ष प्राचीन रॉक बेड्स 1200 वर्ष प्राचीन जैन मंदिर, 2000 प्राचीन तमिल-ब्राह्मी लिपि के शिलालेख अब बच जाएंगे

तमिलनाडु के हरे-भरे परिदृश्य में मदुरै जिले के अरिटापट्टी प्राचीन जैन स्मारकों और सुंदर दृश्यों के खजानों से परिपूर्ण है। नवम्बर 2024 में केंद्र सरकार ने वेदांता ग्रुप को यहां की सात पहाड़ियों को पत्थर निकालने के लिये दे दिया। जबकि यह क्षेत्र महान जैन संस्कृति के साथ 72 झीलों, 200 प्राकृतिक झरनों व तीन चैक डेम से परिपूर्ण यानि 193.22 हेक्टेयर भूमि जैव विवधता अधिनियम के तहत 2002 में जैव विविधता विरासत स्थल घोषित किया। सरकार की नजर में धार्मिक, प्राकृतिक महत्व की बजाय सात बंजर ग्रेनाइट की पहाड़ी श्रृंखला नोट की गर्मी में फीका पड़ गया था। इसके बाद विरोध में वहां के 52 गांव आ गये, जैन समाज द्वारा प्रदर्शन, अनेक कमेटियों द्वारा पत्र, सब का लगातार दबाव काम कर गया और 24 जनवरी को केन्द्र सरकार ने अपना आर्डर निरस्त कर दिया।

अरिटापट्टी के मुकुट में सबसे प्रमुख रत्नों में समनार हिल्स का जैन गुफा मंदिर है, जो प्राकृतिक चट्टान संरचना से बना एक शानदार अभयारण्य है। 8वीं सदी का यह जैन मंदिर प्राचीन तीर्थंकर प्रतिमाओं व नक्काशी का अपूर्व भण्डार है। इसे जैन संतों ने निर्मित करवाया, जिन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में ध्यान और वंदन के लिये एकांत जगह की तलाश थी। मंदिर की कला और जटिल शिल्पकला सभी को अचंभित करती है। पहाड़ी के पूर्वी भाग में एक गुफा है, जिसमें दूसरी-पहली सदी ईसा पूर्व के ब्राह्मी शिलालेख हैं। पंच पांडवर गुफा यहां एक चट्टान को काटकर बनाई गई है, जो मुनिराजों के लिये रॉक बेड्स के साथ तीर्थंकरों की मूर्तियां, तमिल और ब्राह्मी लिपि के शिलालेख स्पष्ट कहते हैं कि यह क्षेत्र किस तरह अमूल्य जैन संस्कृति का वैभव दर्शाता है।

निश्चित ही सभी तरफ से विरोध केन्द्र सरकार को अपने निर्णय को बदलने में कारगर हुआ। बच गई अनमोल जैन संस्कृति। धन्यवाद किसको दें, विरोध करने वालों लोगों की हिम्मत को या फिर केन्द्र सरकार को।

खैर, सभी धन्यवाद के पात्र हैं। इस पर पूरी जानकारी के लिये चैनल महालक्ष्मी के दो एपिसोड 3066 और 3128 में देख सकते हैं।

चैनल महालक्ष्मी चिंतन :
अरिटापट्टी जैनों की प्राचीन धरोहर है। ऐसी कई विरासतें, नष्ट होने के कागार पर हैं। हर जगह स्थानीय समाज आगे नहीं आयेगा। स्वयं ही उनकी सुरक्षा व संरक्षण करना होगा।