हजार वर्ष प्राचीन जैन मूर्तियां मिलीं ॰ क्या बड़ा तीर्थ दबा है यहां? ॰ अपनी संस्कृति, विरासतों के प्रति लापरवाह क्यों हैं हम?

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॰ क्या जैनों को अपने म्यूजियम बनाने चाहिए

22 जनवरी 2025/ माघ कृष्ण अष्टमी चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
आजादी के 78 साल बाद भी और 75वां गणतंत्र दिवस मनाते हुये, आज भी जैन समाज वैसे तो भव्यता के साथ नित नये तीर्थों का निर्माण करने में लगा हुआ है, पर अपनी प्राचीन संस्कृति-विरासत के संरक्षण और संवर्धन के प्रति इतना क्यों उदासीन है? यह समझ से बाहर है। जहां बहुसंख्यक समाज मस्जिदों के नीचे स्वस्तिक और कमल तक ढूंढने के लिये खुदाई करता है, प्रशासन साथ देता है, वहीं अल्पसंख्यक जैन समाज की विरासतें इस तरह फैली पड़ी, क्षरण हो रही हैं, उनके संरक्षण के लिए कोई गंभीर नहीं दिखता।

पिछले 10 सालों में आन्ध्र प्रदेश और तेलांगना के 800 से ज्यादा गांवों में प्राचीन भारतीय संस्कृति की खोज में लगे ‘प्लीच इण्डिया फाउण्डेशन’ के सीईओ डॉ. एमाती शिवनमी रेड्डी ने एक बार फिर बिखरी पड़ी प्राचीन जैन संस्कृति को खोज निकाला है। तेलंगाना के विकाराबद जिले के पुदूर मंडल के कंकल गांव में बादामी चालुक्य, राष्ट्रकूट, कल्याणी चालुक्य और काकतीय राजवंशों के काल की अनेक जैन प्रतिमाओं की पहचान की है, जो गांव के विभिन्न स्थानों पर बिखरी पड़ी हैं, यानि 8वीं से 11वीं सदी की प्राचीन मूर्तियां। 9वीं सदी की राष्ट्रकूट काल की तीर्थंकर पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में प्रतिमा है, जिसका सिर, ऊपर फणों के साथ खंडित है। ब्लैक ग्रेनाइट के महावीर और यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियां निकली हैं। कुछ सड़क किनारे, कुछ पेड़ के नीचे, कई मस्जिद के पास बरसों से ऐसे ही पड़ी होना, हैरत का विषय है।

यहां खुदाई में प्राचीन समृद्ध संस्कृति के अवशेष दबें हों, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने पुरातत्व विभाग से कंकल को विरासत गांव घोषित करने तथा एक पर्यटक स्थल के रूप में घोषित करने का भी अनुरोध किया। उन्होंने इनको एक सुरक्षित स्थान पर सही लेबलिंग के साथ रखने की मांग की, जिससे आगे आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति को देख सके। इसकी पूरी जानकारी चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 3104 में देखें।

सान्ध्य महालक्ष्मी चिंतन –
जैन समाज को हर नवनिर्माण के साथ एक प्राचीन तीर्थ को गोद लेने का भी संकल्प लेना चाहिये, इसकी जिम्मेदारी कार्यक्रम में मौजूद वंदनीय साधु-संत तथा प्रतिष्ठाचार्य को चिह्नित करने में पहल करनी चाहिए।

॰ जितना फण्ड हम निर्माण, पंचकल्याणकों, जयन्ती आदि धार्मिक समारोहों में खर्च करते हैं, उनमें से 10 फीसदी प्राचीन तीर्थों के लिए संरक्षण के लिये अलग करने की एक नियम के रूप में पहल करनी चाहिए।

॰ जैन समाज अपनी बिखरी विरासतों को संरक्षित करने के लिये एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाये और उनको व्यवस्थित म्यूजियमों में रखें। यही धरोहर हमारी प्राचीनता की पहचान है, वर्ना जैन संस्कृति को महावीर से शुरू बताने वाले तो प्रशासन और जनता में अनेक हैं।