शिखरजी से आई खुशखबरी : मकर संक्रांति मेले का नाम नहीं हुआ पार्श्वनाथ महोत्सव- ॰ 15 को चढ़े डेढ़ लाख

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॰ तीर्थक्षेत्र कमेटी की मेहनत रंग लाई
॰ सैर सपाटा के बीच आस्था का बीजारोपण
॰ पहली बार माइक से घोषणायें और पारस टोंक का परिक्रमा पथ व छत को भी बंद रखा

16 जनवरी 2025/ माघ कृष्ण तृतीया/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन /
14 अक्टूबर 2024 को उपायुक्त आर जिला पर्यटन विकास संवर्धन परिषद के अध्यक्ष ने झारखण्ड पर्यटन विभाग को जानकारी भेज दी कि मधुबन में दो दशकों से हो रहे तीन दिवसीय मकर संक्रांति मेले का नाम पारसनाथ महोत्सव रखा जाये। इसकी जानकारी दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में तब सार्वजनिक हुई, जब गिरिडीह के विधायक और वर्तमान में राज्य सरकार के पर्यटन, कला-संस्कृति मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने स्पष्ट कर दिया कि इस मकर संक्रांति मेले को राजकीय दर्जा देने के साथ पारसनाथ महोत्सव के रूप में मनाया जाएगा।

झारखण्ड सरकार के पर्यटन विभाग ज्ञाप संख्या 1391 दिनांक 22 अक्टूबर 2018 द्वारा पार्श्वनाथ सम्मेदशिखरजी पर्वत को जैन धर्मावलंबियों का विश्व प्रसिद्ध पवित्र एवं पूजनीय तीर्थस्थल माना गया है। तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं, उनके नाम पर किसी अन्य समाज के किसी आयोजन का नामकरण उचित नहीं है। तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ मोक्ष कल्याणक पर जैन समाज के द्वारा सैकड़ों वर्ष पूर्व से ही श्री पार्श्वनाथ महोत्सव का भव्य आयोजन किया जा रहा है, जिससे देश-विदेश से लाखों जैन यात्री यहां मोक्ष कल्याणक मनाने आते हैं।

इस बात पर भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबू जम्बू प्रसाद जैन जी सबसे पहले पहल करते हुए झारखण्ड सरकार के सभी संबंधित विभागों से पत्राचार शुरू किया। उन्हीं के कहने पर चैनल महालक्ष्मी ने जैन श्वेताम्बर सोसायटी के रामपुरिया जी को इस पर एक होकर विरोध की पहल की। दो दिन बाद सोनू मंत्री जी भोमिया जी में दर्शन करने आये, तो दोनों ने अपने पत्र सौंपे। पर्यटन मंत्री के साथ पर्यटन विभाग के सचिव और निदेशक को भी जैन समाज विचारों से अवगत कराया।


कहा जाता है हर प्रयास पर सफलता मिले, यह तो पक्का नहीं, पर हर सफलता प्रयास करने पर ही मिलती है। तब इस मेले से ठीक 48 घंटे पहले यह निर्णय सामने आ गया कि नाम पर विवाद के कारण इस वर्ष भी मकर संक्रांति मेला ही नाम रहेगा, यानि उसका नाम पारसनाथ महोत्सव नहीं होगा।

यह भारतवर्षीय दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी की अच्छी पहल रही। मकर संक्रांति मेले के लिये तैयार तीर्थक्षेत्र कमेटी चैनल महालक्ष्मी ने मधुबन में तीर्थक्षेत्र कमेटी से लगातार सम्पर्क रखा। पारस टोंक के पीछे की कमजोर रेलिंग के कारण उस परिक्रमा पथ को रोकने की अपील की। बेरेकेटिंग करके उसे रोक दिया। साथ ही कमरों के ऊपर की छत पर जाने से रोकना पूरी तरह सफल रहा। यहां पहली बार तीर्थक्षेत्र कमेटी ने माइक से लगातार घोषणायें की, वहीं हर वर्ष की तरह बैनर भी लगाये गये। अंदर पारस चरण पर गर्भगृह में प्रवेश बंद रखा गया।

पारस टोंक पर कोई जूते-चप्पल ना ले जाये, और उन डेढ़ लाख जैनेतर समाज को जागरूक करने के लिये सीढ़ियों पर ही गार्ड खड़े किये। लोग ऊपर बोतल ना खरीदे, जिससे पर्वत गंदा ना हो, इसके लिये छह जगह जल की व्यवस्था शुरू कर दी। जैनेत्तर लोगों की भीड़ 20 जनवरी तक होती है।

पहले दिन 13 जनवरी को चंद हजार ही थे, फिर मकर संक्रांति पर 14 जनवरी को 30-40 हजार थे। 15 जनवरी को सर्वाधिक डेढ़ लाख थे। पिछली बार की तरह पुलिस उतनी मुस्तैद नहीं दिखाई दी, वहीं वन विभाग ने जरूर तलाशी अभियान जारी रखा। पिछली बार से इस बार नियंत्रण बेहतर रहा।

सबसे बड़ी बात जो देखने को मिली कि इस सैर सपाटे – पर्यटन के बीच आस्था का बीजारोपण हो रहा है। 14 जनवरी को रात्रि साढ़े नौ बजे बीसपंथी कोठी से वंदना की ओर बढ़ते तीन परिवार पति-पत्नी-बेटे जब लाठी थाम बढ़ रहे थे, तीर्थक्षेत्र कमेटी के वहां खड़े अधिकारी ने कहा कि इतनी रात में ऊपर क्यों जा रहे हैं, कल दिन में जाना। उनका कहना था कि हम धनबाद के तेल्लुमारी से आये हैं, हमने सुना है जैन लोग रात में ही ऊपर चढ़ते हैं, हम भी रात में दर्शन कर जल्द लौट आयेंगे। ऐसे अनेक चेहरे 15 को देखने को मिले। तीर्थक्षेत्र कमेटी द्वारा पारस टोंक पर परिक्रमा पथ और साथ की धर्मशाला की छत पर जाने का रास्ता रोक दिये जाने से किसी दुर्घटना की आशंका को, भीड़ को नियंत्रित रखने में सफलता मिली। पुलिस उतनी सजग नहीं दिखी, रास्ते में भी अर्द्धसैनिक बल नहीं दिखाई दिये। हां, गंदगी खूब हुई, जिस पर तीर्थक्षेत्र कमेटी ने आश्वासन दिया कि शीघ्र पर्वत पर सफाई अभियान शुरू किया जाएगा। मनोरंजन वाले, मस्ती करती टोलियां खूब दिखी, पर सबकुछ शांति से बीत गया, यह अच्छी बात रही।

पूर्ण जानकारी चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड न. 3100 में देख सकते हैं।