शिखर जी में मकर संक्राति मेले का नाम पारसनाथ महोत्सव रखने पर जैनों में रोष, तीर्थक्षेत्र कमेटी ने ली अगुवाई, विभिन्न मंचों पर विरोध

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पारसनाथ जी जैनों के 23 वें तीर्थंकर मकर संक्राति से कोई लेना देना नहीं
2022 में किये गये वादों से क्यों मुख मोड़ रही राज्य सरकार
26 दिसंबर 2024/ पौष कृष्ण एकादिशि /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन /

गिरिडीह के उपायुक्त और साथ ही जिला पर्यटन संर्वधन परिषद के सह अध्यक्ष नमन प्रियेश लाकड़ा जी के पत्र संख्या 427 दिनांक 14 अक्टूबर 2024 के माध्यम से मधुबन में प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर डेढ़ दो लाख अजैन लोगों के भाग लेने वाले मकर संक्राति मेला को पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पारसनाथ महोत्सव के रूप में मनाने की घोषणा करने और पर्यटन कला संस्कृति मंत्री श्री सुदिव्य कुमार जी द्वारा इसकी अनुमति देने से जैन समाज में अत्यधिक रोष है।

ध्यान रहे 2022 की शुरूआत में जैन समाज ने यहां पर अपवित्रता के विरोध में एक बड़ा जन आंदोलन किया था। तब केन्द्र व राज्य सरकार ने इसे पर्यटन क्षेत्र की बजाय जैन धार्मिक स्थल के रूप में जारी रखने पर स्वीकारा था। इससे पूर्व झारखण्ड सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा विभागीय कार्यालय ज्ञाप संख्या 1391 दिनांक 22-10-2018 के द्वारा पार्श्वनाथ सम्मेद शिखर जी पर्वत को जैन धर्मालंबियों का विश्व प्रसिद्ध पवित्र एवं पूजनीय तीर्थस्थल माना था। तीर्थंकर श्री पारसनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर हैं, उनके नाम पर किसी अन्य समाज के किसी आयोजन का नामकरण किसी भी रूप में ना उचित है, ना स्वीकार्य है। तीर्थंकर श्री पारसनाथ मोक्ष कल्याणक पर जैन समाज के द्वारा सैकड़ों वर्ष पूर्व से ही श्री पार्श्वनाथ महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें देश-विदेश से लाखों जैन यात्री यहां मोक्ष कल्याणक श्रावण शुक्ल सप्तमी को मनाते आते हैं।

अब मकर संक्राति मेले का पार्श्वनाथ महोत्सव नाम देने से जैन धर्म के लाखों अनुुयायियों में तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी के सम्मान-गरिमा पर ठेस पहुंचेगी। जैसा सभी जानते हैं कि मकर संक्रांति, न जैनों का पर्व है, न उत्सव है। अब 13-14-15 जनवरी को मकर सक्रांति मेला, जो इसी नाम से मनाया जाता है, उसके नाम को बदलकर पार्श्वनाथ महोत्सव करने का विरोध करने के लिये भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी ने महत्वपूर्ण पहल की है। (स्पष्ट कर दें प्रशासन-सरकार पार्श्वनाथ महोत्सव मनाये, वो पारस प्रभु से जुड़ा हो, वर्ना पावापुरी आदि की तरह मधुबन महोत्सव नाम रखा जा सकता है। पारस प्रभु के नाम पर महोत्सव में जैनों की भागीदारी होनी चाहिये। अभक्ष्य, अपवित्रता न हो, अहिंसा का संदेश हो, पर्यटन के लिये नहीं, धर्म का रूप हो।)

राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबू जम्बू प्रसाद जैन ने इस बारे में केन्द्र सरकार अल्पसंख्यक आयोग व राज्य सरकार के विभिन विभागों और मंत्रालयों से विरोध जताने के लिये कड़ा रुख लिया है। उनके ही आदेश पर चैनल महालक्ष्मी ने अगुवाई कर झारखण्ड सरकार के पर्यटन मंत्री, उपायुक्त, सचिव पर्यटन विभाग व निदेशक पर्यटन विभाग को पत्र लिखने के बाद राष्ट्रीय अल्पसख्ंयक आयोग व केन्द्रीय मंत्रियों को भी इस नाम बदलने पर रोक के लिये तत्काल प्रभावी कदम उठाने के लिये सम्पर्क किया है।

इस विषय पर चैनल महालक्ष्मी ने जैनों से एक होकर विरोध करने के उददेश्य से जैन श्वेताम्बर सोसाइटी से शिखरजी में प्रमुख रामपुरिया जी से भी इस बात पर विरोध की अपील की और उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। तीर्थक्षेत्र कमेटी व जेएसएस द्वारा सामूहिक रूप से 21 दिसम्बर को पर्यटन मंत्री के शिखरजी दर्शन के दौरान विरोध पत्र उनको सौंपे गये।
इस बारे में पूरा विवरण चैनल महालक्ष्मी के एपीसोड नं. 3046 व 3054में देख सकते हैं।