16 सितंबर 2024/ भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
कुलचाराम में आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी ने कहा कि धर्म की, तीर्थों की रक्षा मुनिराजों से है, श्रावक तो केवल संरक्षण करते हैं, देखरेख करते हैं। एक भी श्रावक बता दें कि किसी श्रावक ने फलाना तीर्थ बनाया हो। जिस तीर्थ पर संत विराजमन हो जाते हैं, वो तीर्थ शिखर की ऊंचाईयों पर पहुंच जाते हैं। इस बारे में चैनल महालक्ष्मी साधु-संतों से लगातार बड़ी विनम्रता से अपील करती है कि अब साधु-संतों को अपने चातुर्मास शहर – मंदिरों की बजाय उन क्षेत्रों पर करने चाहिए, जहां तीर्थ अधूरे पड़े हैं, जीर्ण हालत में हैं।
चैनल महालक्ष्मी के बारे में हमेशा से एक बात बोलता हूं कि हमारे देश में डॉ. नेमीचंद जी थे, जो लिखने में बहुत सशक्त थे, कोई भी विषय हो, साधु हो या आचार्य कभी पीछे नहीं हटते, दो-टूक लिखते थे, वो गये। फिर लिखना शुरू किया डॉ. चिरंजी लाल बगड़ा ने, वो भी निर्भीकता के साथ, बिना लोभ-लालच के अच्छा हो या बुरा, कलम खोल कर लिखते थे। वो साइलेंट हुये तो अब वर्तमान में चल रहा है चैनल महालक्ष्मी, अच्छाइयों को प्रकाशित करने वाले, बुराइयों को दूर करने वाले, जिनका फिलहार एक ही फोकस चल रहा है, सम्पूर्ण तीर्थक्षेत्रों का संरक्षण कैसे किया जाये। मैं सोचता हूं, जितना सुनता हूं, जितना देखता हूं कि जितना वो तीर्थक्षेत्रों के लिये चिंतित हैं, उतना यदि कमेटियां-समितियां चिंतित हो जायें और उनके विचारों को यदि फॉलो करें, तो आने वाले समय में एक भी दिगंबर क्षेत्र दूसरे हाथ में नहीं जा सकते हैं। जैसा वो कहते-लिखते रहते हैं कि यदि दिगंबर साधु संत प्रत्येक क्षेत्र पर एक-एक संघ, एक-एक साधु चातुर्मास करने की विचारधारणा बना ले, तो हमारे भारत देश के सम्पूर्ण अधमरे क्षेत्र वर्तमान में जिंदा हो सकते हैं। पर जिन साधुओं को पब्लिक चाहिए, प्रोजेक्ट चाहिए, पंडाल चाहिये, उनको कहां तीर्थक्षेत्र रास आते हैं। क्षेत्र पर चातुर्मास करने में तीर्थ की प्रभावना होती है, विकास होता है। नये-नये यात्रियों को क्षेत्र के दर्शन का सौभाग्य मिलता है।
उन्होंने कहा कि मैं सोचता हूं जो मुहिम चैनल महालक्ष्मी लेकर चल रहा है, उस मुहिम की, उनकी भावनाओं का समादर सम्मान करता हूं। बस उनकी मुहिम में कमेटियां जुड़े, यही मैं मन से चाहता हूं।