॰ गिरनार पर अदालत का इंकार ॰ विधर्मी की धमकी, पुलिस प्रशासन की केवल जैनों की अपराधी की तरह तलाशी ॰ बाऊंसरों की कड़ी नजर ॰ झुकने तक की मनाही, जयकारा नहीं, मुंह भी नहीं खोलना
17 जुलाई 2024// आषाढ़ शुक्ल एकादिशि//चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
कई बरस बाद देखा गुजरात के जूनागढ़ में गिरनार शिखर को, पूरी तरह जैनमय था, दिन था आषाढ़ शुक्ल सप्तमी, अंग्रेजी तिथि से 13 जुलाई। साढ़े तीन हजार जैन चढ़ रहे थे। हां, रोपवे भी दो दिन से बंद कर दिया था, दो दिन आगे तक के लिये कोई साजिश थी क्या?
हर तरह की परीक्षा ली गई, चढ़ों पूरी 9,999 सीढ़ियां। जैन समाज भिखारी बना रहा, गिड़गिड़ाता रहा। भरत चक्रवर्ती के भारत देश में एक नया इतिहास लिखा गया, जब अपने ही मंदिर तथा तीर्थ में जाने के लिये वो हाथ जोड़े खड़ा था, अदालत, प्रशासन, पुलिस, अन्य सम्प्रदाय के भाई, किसके आगे नाक नहीं रगड़ी और सबने दुत्कारा जैसे चौराहे पर भिखारी को कहते हैं – आगे जाओ।
सबसे पहला झटका लगा गुजरात सरकार से और हमें (चैनल महालक्ष्मी) जैन धर्म संरक्षण महासंघ की ओर से राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को दिये गये लगातार आवेदनों को एक स्वर से ठुकरा दिया गुजरात सरकार ने, सरकार ने स्पष्ट कह दिया कि जैनों को निर्वाण लाडू चढ़ाने की अनुमति देने से वहां विवाद हो सकता है, कानून की स्थिति बिगड़ सकती है। आयोग 25 लोगों की अनुमति मांग रहा था, यानि 25 विवाद करेंगे या दूसरी तरफ विवाद का रूप दिया जाएगा। हर कोई जानता है। अपने तीर्थ पर पूजा, त्यौहार मनाने के लिये कोई और नहीं, हम ही गिड़गिड़ाये थे। कोई सहायता नहीं, जब दूसरे सम्प्रदाय का पर्व आता है, तो लाखों को आमंत्रित किया जाता है जैनों की लगभग एंट्री बंद होती है, सरकार – पुलिस – प्रशासन सब हाथ जोड़कर सेवा में लगे रहते हैं, पर जैनों से सौतेला व्यवहार क्यों? इसका जवाब हर किसी को मालूम है।
॰ अदालत द्वारा अनुमति से इंकार
17 फरवरी 2005 के अन्तरिम आदेश के अनुपालन के लिए श्री सुधीर बज जैन ने गुजरात हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, 09 जुलाई 2024 को सुनवाई हुई पर अदालत द्वारा निर्वाण लाडू के लिये आदेश देने से इंकार कर दिया और कहा कि मूल केस में इस आवेदन को जोड़ कर सुनवाई की जायेगी – यहां से भी दरवाजे बंद। और हां, सुधीर बज को तो वहां ठहरने के लिए धर्मशाला में जगह देने से भी मना कर दिया गया।
॰ एक दिन पूर्व डीसी आये, इशारों में मानो सब समझा गये
12 जुलाई को 2000 से ज्यादा जैनों ने तलहटी में शोभायात्रा में भाग लिया और उसमें डीसी भी आये, दर्शन किये नीचे। अपुष्ट सूत्र बताते हैं उन्होंने कमेटी को इशारे ही इशारे में कह दिया कि आज ही सबको बता दें – कल कोई ऊपर निर्वाण लाडू चढ़ाने 5वीं टोंक पर नहीं जाये, सिर्फ पहली पर ही और गजब, कमेटी ने भी सबके सामने कह दिया, कोई 5वीं टोंक पर लाडू चढ़ाने नहीं जाये।
रोपवे दो दिन पहले बंद, दो दिन बाद तक और डोली 20 हजार में
इत्तफाक या संयोग, प्रशासन ने चार दिन पहले ही 11 से 15 जुलाई के लिये रोपवे बंद कर दिया। कहा गया कि उन दिनों मौसम सही नहीं होगा। इसलिये पूर्वानुमान पर बंद रोपवे… क्या कहें इसे। अजय जैन जी हमें एक साजिश का हिस्सा बताते हैं यानि वृद्धों व बच्चों को तो पहले ही रोक दिया और डोली का दाम तीन गुना यानि 6-7 हजार वाली 18 से 20 हजार में। सब प्रशासन की नाकामी नीचे।
जैन पहले भिखारी, अब अपराधी
13 जुलाई 2024 की सुबह से जैन कारवां बनाते शांति से बढ़ते रहे, पुलिस का चौकस इंतजाम, महिला पुलिस भी। पुलिस का जबर्दस्त तलाशी अभियान, हर जैन की तलाशी, और जो जैन नहीं, वो पूरे बैग के साथ यूं ही जाये, पूरी छूट। विश्व श्रमण संस्कृति श्री संघ के राष्ट्रीय महामंत्री सुदीप जैन ने इस भेदभाव का खुलासा करते हुए बताया कि लाडू ना चढ़ाने के लिये विधर्मियों ने प्रशासन पर दबाव बनाया, इसे अधिकारिक रूप से जारी नहीं किया, पर उनसे जो सलूक किया गया, उसे जानकर हर जैन का सिर शर्म से झुक जाएगा। न्यायालय के आदेश की अवमानना, मौलिक अधिकारों का हनन है। उन्होंने बताया कि ऊपर शासन-प्रशासन पूरा मुस्तैद था, कि 5वीं टोंक पर लाडू नहीं चढ़ाया जाये।
5वीं टोंक पर प्रवेश से पहले सिर्फ जैनों की तलाशी हो रही थी, चावल को ऐसे देखा जा रहा था, जैसे कोई आरडीएक्स लेकर जा रहा हो, बादाम को गोली की तरह देखा जा रहा था, गोले को बारूद की तरह। ये काम पुलिस वाले कर रहे थे, धर्मनिरपेक्ष भारत के लिये यह कलंकित दिवस रहा। आज कानून व्यवस्था के नाम पर निर्वाण लाडू चढ़ाने से अहिंसक जैन समाज को रोका गया। चावल नहीं गये, वही नीचे बिखरते गये, वो फूलमाला ले गये, वो चढ़ते गये।
जैन को आंतकी समझा, पुलिस प्रशासन के साथ बाउंसर भी खड़े विरोध में
महेश गिरी के वक्तव्य को प्रशासन पुलिस ने पूरा कर दिया। इसी श्रीसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेश जैन ने बताया कि वहां जैन समाज का अस्तित्व ही नहीं समझा जाता। इस बार तो पांचवीं टोंक से पहले जैन श्रद्धालुओं को चोर, आतंकी की तरह पुलिस ने व्यवहार किया। पुलिस केवल जैनों को ही निशाना बना रही थी। जैनों को वहां नीचे झुकने की मनाही थी। जयकारों का, मुंह खोलने की मनाही थी। पुलिस प्रशासन द्वारा वहां कुछ चढ़ाने और जयकारा बोलने तक का अपना मुगलिया फरमान हर को सुनाकर ही जाने दिया। नीचे जैन बंधु भय के वातावरण में जी रहे हैं, वो ही कहते हैं ऊपर कुछ मत करना, वरना हमारे लिये मुसीबत होगी। णमोकार मंत्र की ध्वनि को नॉयज पोल्यूशन समझा गया। वहां बाउंसर खड़े थे, ऊपर से जैनों पर नजर। कोई नीचे बाहर ही जयकारा बोले तो ऊपर से धमकी शुरू, जाओ नीचे।
जैन पुरातत्व की अवहेलना करते दबाया जा रहा, जैन धर्म की प्राचीनता को नष्ट किया जा रहा। अब भी जैन यूं ही रहा, तो वह दिन दूर नहीं, जब जैन धर्म का अस्तित्व ही खत्म कर दिया जाये और केवल हिंदू ही इस भारत में रह जायें।
इसकी पूरी जानकारी यू-ट्यूब चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 2732 में देख सकते है।