गिरनार : जहां श्रीकृष्णजी परिजनों का नाम लेना भी गुनाह हो गया ॰ श्रीकृष्णजी के चचेरे भाई, पुत्र या पोते के नाम लेने पर होती पिटाई-गाली गलौज

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॰ यदुवंशियों के तीर्थ को कौन मिटा रहा
॰ हिंदू हिंसा नहीं करता, गिरनार पर हिंसा करने वाले कौन?
11 जुलाई 2024// आषाढ़ शुक्ल पंचमी//चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /

विश्वास नहीं होगा, पर सत्य है, गुजरात के जूनागढ़ के गिरनार में आज यदुवंशी कुल में जन्मे श्रीकृष्ण जी के परिजनों का नाम लेना, उनका गुणगान करना, जय बोलना भी मानो गुनाह हो गया है। यह भी अभी हाल में पिछले 25-30 साल से, उनके चचेरे भाई, पुत्र, पोते के नामोनिशान मिटाने की जैसे कोई साजिश चल रही है।

सही कहा है कि हिंदू कभी हिंसक नहीं होते, न थे, न है, न होंगे। पर गिरनार की पांचवीं टोंक पर आप श्रीकृष्ण जी के चचेरे भाई श्री नेमिनाथ जी का नाम बोलो, गुणगान करो, आपकी बुरी तरह पिटाई होगी, गाली गलौज, डंडे-तलवार-चिमटे निकल आएंगे। सबकुछ पुलिसवाले की मौजूदगी में होगा? इसी जगह से उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया, श्री कृष्ण जी अपने भाई का पूरा आदर करते थे और आज निरादर कर रहे, जैसे श्रीकृष्ण जी को मानते हैं, पर उनके परिवार को नहीं। यहां उनके चरण हैं, उनकी प्रतिमा उकेरी हुई हजार वर्षों से। उन्हें मिटाया जा रहा, घिसा जा रहा, उस प्रतिमा को शंकराचार्य बनाया जा रहा और स्थान को दत्तात्रेय। यानि श्रीकृष्णजी के चचेरे भाई का सबकुछ मिटाया जा रहा, जबकि गुजरात सरकार के प्रमाणों में, वीडियो में 1964 तक वहां कुछ भी ऐसा नहीं था। 2003 में बदलने की कोशिशें शुरू हुई। क्यों श्रीकृष्ण जी के परिजनों का इतना विरोध? क्या कारण? अदालत तक ने कहा दर्शन-पूजा सब करें, अपनी-अपनी पद्धति से, पर ऐसा करने ही नहीं दिया जाता।



हां, यह जरूर है शंकर जी के साथ त्रिशूल है, श्रीराम जी के साथ धनुष, विष्णु जी – श्रीकृष्ण जी के साथ चक्र, पर ये हर किसी पर नहीं उठाते, चाहे आप उनको मानने वाले हो या नहीं। केवल आताताई, धर्म का विनाश करने वालों, पर ही उठते हैं। सभी के द्वारा प्रेम, अहिंसा, मैत्री का ही संदेश दिया गया है, पर गिरनार पर आपको तलवार, डंडे, चिमटे उठाकर मारने दौड़ते आते, एक साधू को चाकू तक मार दिया, कितने यात्रियों पर डंडे पड़े, पीटे गये, सिर फटे। क्या ये हिंसा कहलाने वाले हिंदू कहला सकते हैं?

आज मानो हिंदू ही हिंदू के विरोध में खड़ा हो गया है, एक श्रीकृष्ण जी के परिनजों के तीर्थ, पहचान को गिरनार से मिटा रहा है, तो वहीं एक समुदाय बचाने में लगा है, जो प्रमुखत: जैन हैं।

चौथी टोंक श्रीकृष्णजी – रुक्मणि के पुत्र प्रद्युम्न जी की है व पहले तो वहां जाना ही मुश्किल है, दूसरे वहां उनके चरण हैं, पदमासन भगवान की मूर्ति भी है, पर आप नहीं बोल सकते प्रद्युम्न स्वामी की जय। उसको बदला जा रहा है अधोर बाबा में, कैसा अंधेर हैं।

तीसरी टोंक, जहां से श्रीकृष्ण जी के बेटे शम्भू जी ने निर्वाण प्राप्त किया, के चरण बने हैं, हजारों वर्षों से। पर क्या मजाल अब वहां आप शम्भू जी की जय बोल दें। उनका गुणगान कर लें। डंडा बरस जाएगा। आपको श्रीकृष्ण जी के पुत्र के नाम की बजाय गोरखनाथ बोलना होगा, सबकुछ बदल दिया।

नीचे दूसरी टोंक श्री कृष्ण जी के पोते अनिरुद्ध जी (प्रद्युम्न जी के बेटे) की है। यहीं से उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया, पर यहां भी बदलने की कोशिशें जारी हैं, आप अनिरुद्धजी की जय बोलेंगे, तो मानो आपको खाने के लिये दौड़ पड़ेंगे।

ऐसा क्यों है कि कि गिरनार से श्रीकृष्ण जी के परिनजों के इतिहास को हिंदुओं का ही एक वर्ग मिटाने को आतुर है, उनका नाम तक बोलने नहीं देता। क्या अब भारत में किसी भगवान का जयकारा लगाना भी गुनाह हो गया है?