यह कैसी कमेटी और कैसा दबाव, काशी मंदिर को दान दी जमीन, कौड़ियों में मुस्लिमों को ॰ काशी (भदैनी) सुपार्श्व जन्मस्थली मंदिर के पास जो जैन मौहल्ला बनता, उसे मुस्लिम मौहल्ला बनवा दिया

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19 जून 2024// जयेष्ठ शुक्ल त्रयोदशी //चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
॰ साहू शांति प्रसाद जी ने खरीदकर पॉश इलाके में 5 बीघा जमीन मंदिर को दान दी और कमेटी ने लगभग 20 साल पहले उसे मुसलमानों को कौड़ियों में बेच दिया, आज उसका अरबों में मूल्य
॰ जैन तीर्थों के साथ भेदभाव क्यों? तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ जी की जन्मस्थली से निकलनी थी यात्रा, 36 घंटे पहले तक वो संकरा रास्ता खोदकर बना दिया अवरोधक, फिर कैसे करवाया सान्ध्य महालक्ष्मी ने साफ !

काशी के प्राचीन जैन घाट पर स्थित, भैदनी में, 7वें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथजी की जन्मस्थली और 115 वर्ष प्राचीन श्री स्याद्वाद महाविद्यालय तक पहुंचने वाली एकमात्र संकरी गली को सीवर लाइन के कार्यक्रम के चलते महापौर द्वारा फरवरी में शुरूआत करने से अब तक पूरी तरह खुदी हुई, कि कोई पैदल भी मुश्किल से चल सके। महज 48 घंटे बाद 18 जून को प्रात: 6 बजे रथयात्रा चलकर यहां पहुंचनी थी, वह क्षण थे तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ जी का जन्म-तप कल्याणक के।

स्याद्वाद महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अमित जैन ने सान्ध्य महालक्ष्मी को शनिवार 15 जून को यह जानकारी दी और कहा कि नगर निगम के जलकल विभाग के जीएम मौर्य जी से इस बारे में तत्काल कार्यवाही की अपील करें, वे अपने स्तर पर लगातार कोशिशें कर रहे हैं।

तीर्थंकर का जन्म-तप कल्याणक के अवसर पर ऐसा, तुरंत सान्ध्य महालक्ष्मी ने सम्पर्क साधा जीएम मौर्य जी से, उनसे कहा कि जो कार्य फरवरी में शुरू होकर मार्च अंत तक पूरा होना था, वो अब तक अधूरा और अब तो वहां आना-जाना भी दूभर है। हैरानगी हुई जब उन्हें वर्तमान स्थिति का पता ही नहीं था, उन्होंने वहां के एक्स ई एन अवतार शर्मा से सम्पर्क करने का अनुरोध किया।

उन्होंने सान्ध्य महालक्ष्मी को भरोसा दिलाया कि आज रात में ही ठेकेदार से वहां सफाई करवा देंगे। हमने यह भी कहा कि वहां लगे शिलापट्ट के अनुसार सीवर लाइन का काम जैन मंदिर से हनुमान मंदिर तक 150-200 मीटर होना है, पर हो रहा है महज 40-50 मीटर, उसका भी एक माह की बजाय चार माह में भी काम पूरा नहीं। उन्होंने तर्क दिया कि सीवर लाइन का शेष काम पीछे किया जा रहा है, गजब जो इस गली में होना था, वह पिछली गली में। कागजों में जैन के नाम पर, हकीकत में अन्य को लाभ! खैर, उन्होंने रात ही रात में सफाई करवा दी और रथयात्रा पूरे आनंद से निकली।

इन्हीं सबके चलते सान्ध्य महालक्ष्मी के सम्पर्क में आयें मंदिर के साथ ही रहने वाले उमेश शर्मा, जो कई पीढ़ी से यहां पर हैं। उन्होंने जो खुलासा किया, वो जैनों के लिये दिल दहलाने वाला था। उन्होंने बताया कि ये जो लम्बी चौड़ी मुस्लिम बस्ती यहां आप देख रहे हैं, यह 15-20 साल में ही बसी है, यहां तो जैन बस्ती होनी चाहिये थी।

हम चौंक गये – क्या मतलब? जी हां, यह जैनों की जमीन थी, जिसे गडरिया कहते थे, हम यहां खेलने आते थे, पर जैन कमेटी ने इसे मुसलमानों को बेच दिया, इस मंदिरों के पास आकर बस गये। पावन जगह पर अपवित्रता आपके ही लोगों ने की है, क्या बोलने की हिम्मत कर पाएंगे। सान्ध्य महालक्ष्मी ने फिर सूत्रों से जानकारी खोजी, तो पता चला कि वह पॉश इलाका, दिल्ली के कनाट प्लेस की तरह है, जहां 5 बीघे की विशाल जमीन साहू शांति प्रसाद जैन जी ने खरीदकर मंदिर को दान दी थी कि भविष्य में इस कल्याणक भूमि का भव्य निर्माण हो सके। पर 20 साल पहले कमेटी ने बहुत कम दाम में इसे मुसलमानों को बेच दिया। क्या कोई जैन यह सोच भी सकता है? दान की जमीन भी बेच खाई। सारे ही प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं। तर्क आया कि तत्कालीन सरकार का दबाव था।

सान्ध्य महालक्ष्मी टिप्पणी : आज हमारे तीर्थों के लुटने, मिटने, नष्ट होने का सबसे बड़ा कारण यही है कि कमेटी में ऐसे लोग बैठे हैं, जो कुर्सी पर चिपके रहना तो चाहते हैं, पर तीर्थ के संरक्षण, सुरक्षा के लिये कुछ करना नहीं चाहते।

(इस बारे में जानकारी चैनल महालक्ष्मी के ऐपिसोड नं. 2671 में देख सकते हैं। )