जब विज्ञान भी हो गया फेल , जैन संत ने दिखाया अद्भुत चमत्कार ॰ साढ़े नौ घंटे में हजार सवालों का एक साथ उसी क्रम में जवाब, गणित का अजूबा

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॰ सुपर पावर, महासुपर मेमोरी
॰ 8 साल मौन साधना
॰ विनय, स्वाध्याय, मंत्र जाप, कायोत्सर्ग से पाई वो पावर कि सुपर कम्प्यूटर भी हो गया स्तब्ध

॰ 23 ग्रंथों की 22 हजार गाथायें कंठस्थ
18 मई 2024/ बैसाख शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
देश की औद्योगिक राजधानी मुम्बई में जैन धर्म की पराकाष्ठा के साथ-साथ साधना, मौन व्रत, आत्म ऊर्जा, अध्यात्म, मंत्र जाप के साथ सुपर मेमोरी पावर का 600 साल पुराना इतिहास पंचम काल के 2550वें वर्ष में तो दोहराकर विज्ञान को भी दरकिनार कर दिया। आचार्य श्री नयचंद सागर सूरिजी म.सा. के शिष्य रत्नमणि श्री अजीत चंद्र म.सा. ने हजारों श्रेष्ठी, प्रशासनिक अधिकारियों, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री, अनेक संतों के समक्ष साढ़े नौ घंटे के सहस्त्रावधान का सफल उपयोग कर, मानो जैन ध्वजा को आकाश में फहरा दिया।

12 वर्ष की उम्र में दीक्षा, 8 वर्ष की मौन सरस्वती साधना, 23 ग्रंथों की 22 हजार गाथायें कंठस्थ और सिद्धि की इस साधना ने विज्ञान, सृष्टि के लिये दिमागी कम्प्यूटर की एक बड़ी चुनौती पेश कर दी।
कार्यक्रम में मौजूद पदम श्री विजेता गणितज्ञ सुधीर भाई शाह ने बताया कि आप 10 नम्बर के कुछ ही मोबाइल नम्बर याद कर पाते हो, जबकि दिमाग में एक हजार पेज की 9 करोड़ पुस्तकें स्टोरेज करने की क्षमता है। वर्किंग मेमोरी का कैसे उपयोग कर, कल्याण किया जा सकता है, आज के दृश्य वैज्ञानिकों के लिये अनबूझ पहेली हैं।

श्तावधान से पंचशतावधान अब तक हुए, पर इस बार सहस्त्रावधान ने तो एक ऐसी ऊंचाई खड़ी कर दी, जिसको देखकर आज का आधुनिक विज्ञान भी स्तब्ध है।

इस कार्यक्रम में 45 अवधानों में हजार सवाल पूछे गये। जो संस्कृत श्लोक, ग्रंथों, स्मारकों, महापुरुषों, पर्वत, एक शब्द से पूरा सूत्र, चित्र आदि अनेक तरह के अवधान हुए और इनमें और विस्मयकारी थे गणित के अवधान। जैसे एक साथ 25 गणितज्ञ खड़े 12 और 13 के दो ग्रुप में, सब अलग-अलग दो अंकों की संख्या सोच लो, फिर एक ग्रुप 196 से दूसरा 156 से गुणा करें, फिर 31 व 25 जोड़े, जो आये उसे 18 और 14 से भाग करे। शेष में 5, 10,15 क्रम से जोड़े, फिर 7 से गुणा करे, जो अंक आये नोट कर ले और उन सब 25 का क्या जोड़ आया, वो तक बता दिया। यह सुपर अजूबा इसलिये था कि ये सब प्रश्नों का सिलिसला क्रम से एक से हजार का सात घंटे तक होता रहा। फिर जब हजार प्रश्न हो गये, तब महाराज साहेब ने उसी क्रम में उनके जवाब देने शुरू कर दिये। यह दुनिया का सबसे बड़ा अजूबा था।
उन आवाजों को याद रखना, कही एक्शन, कहीं फोटो, कहीं सवाल, कहीं गणित के कठिन फार्मूलों से हल और फिर 7 घंटे के बाद उसी क्रम में सभी के समक्ष बिना देखे- पूछे – सभी को सुनाना, कितनी एकाग्रता, कितनी मेमोरी, कितना तेज कि सुपर कम्पयूटर। सबकुछ अद्भुत।

चैनल महालक्ष्मी के एपिसोड नं. 2584 ‘विज्ञान भी फेल, जैन संत का चमत्कार’ में आप यह सजीव देख सकते हैं।
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