46 दोष, 12 मल दोष, 32 अंतराय की दीवार : इनका परिहार, तब ही निर्दोष – निरन्तराय आहार

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09 मई 2024/ बैसाख शुक्ल दौज/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
डर के आगे जीत है, इसलिये इनको पढ़ते कभी घबराना नहीं, बल्कि जानकर आहार करायेंगे तो निरन्तराय आहार होगा।
90 कारण बन जाते हैं मुनि के आहार में अवरोधक और इन सबमें सबसे बड़ा अन्तराय का कारण बनता है, वो है भोजन में बाल आ जाना। 10 में से 8 बार यही मल दोष अंतराय का कारण बनता है। आज आपको सान्ध्य महालक्ष्मी इनकी जानकारी दे रहा है, जिनको जानकर, उनका परिहार कर आप साधु-संतों को निर्दोष व निरन्तराय आहार करा सकें:-
32 अंतराय: जिनको टालकर
मुनिराज आहार ग्रहण करते हैं :-

1. आहार के लिये जाते कौआ, बाज, चील आदि कोई मांसाहारी पक्षी बीट कर दे।
2. जाते हुए पैर विष्ठा, गीला गोबर, कीचड़ आदि में लिप्त हो जाये।
3. मुनिराज को उल्टी हो जाये
4. जाते हुए कोई टोक दे – ‘आहार को नहीं जा सकते’।
5. आहार के दौरान स्वयं या दाता के शरीर से बहता खून, पीव या खाल दिखाई दे।
6. अपने या दाता के आंसू बहने लगे।
7. आहार के दौरान मुनिराज घुटने के नीचे छू ले, खुजलाने लगे।
8. आहार के दौरान मुनिराज के हाथ से जंघा का स्थान स्पर्श हो जाए।
9. जाते समय नाभि से नीचे झुककर जाना पड़ जाये।
10. त्यागी हई वस्तु अंजुलि में आ जाये।
11. आहार के दौरान किसी (एकेन्द्रिय को छोड़कर)का वध हो जाये।
12. कोई पक्षी मुनिराज की अंजुलि से ग्रास ले उड़े।
13. मुनिराज के हाथों पूरा ग्रास नीचे गिर जाये
14. मुनिराज की अंजुलि में कोई जीव आकर मर जाये।
15. आहार को जाते या लेते हड्डी, मांस, ताजा चमड़ा, शराब, कुधातु दिख जाये।
16. आहार के दौरान कोई मुनिराज पर उपसर्ग कर दे।
17. आहार के दौरान कोई पंचेन्द्रिय जीव मुनिराज के दोनों पैरों के बीच से निकल जाये।
18. आहार देते समय वह पात्र नीचे गिर जाये।
19. आहार के दौरान मलच्युत हो जाये (पात्र/दाता)
20. पात्र या दाता से मूत्रादि हो जाये।
21. जाते हुए मांसाहारी, वेश्या, चाण्डाल के घर प्रवेश हो जाये।
22. आहार के दौरान मुनिराज गिर पड़े।
23. आहार करते बैठ जायें।
24. आहार करते कोईजीव काट जाये।
25. सिद्धभक्ति करने के बाद आहार हेतु खड़े होते समय हाथ से भूमि स्पर्श हो जाये।
26. आहार के दौरान खांसी या छींकने से मुख से थूक, कफ, पानी, भोजन आदि निकल जाये।
27. उदर से कृमि निर्गमन हो जाये।
28. आहार के दौरान बिना दिये वस्तु ग्रहण कर ली जाये।
29. मुनि या दाता पर कोई अस्त्र-शस्त्र का प्रहार कर दे।
30. आहार के समय वहां आग लग जाये, भूकम्प आ जाये, जान-माल की हानि दिखे।
31. आहार के दौरान पैर से कुछ ग्रहण कर लिया जाये।
32. आहार के दौरान हाथ से कोई वस्तु ग्रहण कर ली जाये।
उपरोक्त 32 अंतराय को टालकर ही मुनिराज भोजन ग्रहण करते हैं।

अब जानते हैं उदगम दोष
(46 दोषों में 16 उद्गम, 16 उत्पादन, 10 एषणा व एक-एक संयोजन, अप्रभाव, धूम, अंगार होते हैं)
1. साधु को उद्देश्य करके भोजन बनाना।
2. साधु को देख, उनके निमित्त बनाना, सुधारना या ज्यादा मिलाकर पुन: बनाना।
3. प्रासुक वस्तु में सचित वस्तु को मिला देना।
4. मुनिराज के साथ गृहस्थ को भी भोजन देना।
5. भोजन को एक घर से दूसरे स्थान / घर पर ले जाना।
6. पूजन से बची सामग्री आहार में देना।
7. आहार के लिये प्रमाद करना।
8. मुनिराज के आने के बाद दीपक जलाना, सफाई करना, किवाड़ खोलना, बर्तन मांजना।
9. सामग्री को खरीदना।
10. दूसरे चौके से उधार में सामग्री लाना।
11. आहार के लिये खराब सामग्री देकर अच्छी लेना।
12. सीधी पंक्ति में 7 घर आगे की सामग्री लाना।
13. डिब्बा-पैकेट बंद वस्तु, उसी समय खोलकर देना।
14. ऊंचे स्थान से सीढ़ी चढ़कर आहार की वस्तु लाना।
15. राजा-चोर, किसी के दबाव से आहार देना।
16. किसी भोजन-द्रव्य का स्वयं स्वामी नहीं और उसके स्वामी का पता न हो।
उपरोक्त सभी दोष दाता की अज्ञानता, प्रमाद, भूल के कारण होते हैं।

अब जानते हैं 14 मल दोष,जिनका भी परिहार जरूरी है –
1. हाथ या पैर की अंगुली का नाखून
2. बाल 3. मरा जीव
4. हड्डी 5. अन्न का अंश/ छिलका
6. शालि आदि के बाहरी भाग का सूक्ष्म अव्यव
7. खून-पीव-मांस दिखे 8. शरीर की त्वचा
9. खून 10. मांस
11. उगने योग्य धान या फल का बीज 12. साबुत फल
13. कंद-आलू, प्याज, लहसुन आदि जमीकंद
14. पिपली आदि की जड़

विशेष ध्यान रखें – आहार के लिये सामग्री में बाल आदि मल दिख जाये, तो उसे बिना कुछ कहे अलग रख दें।
कह सकते हैं, जहां मनुष्य का तन अन्न का कीड़ा बना हुआ है और मन इतना चंचल है, ऐसे में जिनरूप धारण करने वाले दिगंबर साधुओं का इन सबको टाल कर शुद्ध आहार ग्रहण करना उनकी अलौकिक महिमा-गरिमा है।
(स्रोत सहयोग: आर्यिका सुदृढ़मति माताजी द्वारा रचित ‘अहो दानम’)