आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं बल्कि उनके द्वारा दिए गए आदर्श जीवन की पुनर्जन्म की अपेक्षा है- प्राकृताचार्य सुनीलसागर जी

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19 अप्रैल 2024 / चैत्र शुक्ल एकादशी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
भगवान महावीर का जन्म कल्याणक महोत्सव प्रत्येक वर्ष हम मानते है। भगवान महावीर केवल जैनो के नहीं जन-जन के है । इसलिए केवल जैनी ही नहीं भगवान महावीर और उनके संदेशों को मानने वाले महावीर जयंती मनाते हैं हर कोई इस दिन को अपने-अपने तरीके से धूमधाम के साथ हर्षोल्लास के साथ मनाता है ।

भगवान महावीर की शिक्षाओं का हमारे जीवन पर किस प्रकार समावेश हो और कैसे हम अपने जीवन को उनके संदेशों के अनुरूप ढाल सके यह अधिक आवश्यक है। लेकिन आज हम उनके संदेशों को भूलते जा रहे हैं इस कारण आज अपने जीवन में अशांति दुख और समस्या दिखाई देती है।

दुख तो इस बात का है कि कुछ लोग महावीर को अप्रसांगिक बना रहे हैं ,महावीर ने जिन-जिन बुराइयों पर प्रहार किया वह उन्हें ही अधिक अपना रहे उसे महान क्रांतिकारी वीर महापुरुष की जयंती भी आज आयोजनात्मक होती है,प्रयोजनात्मक नहीं कर पाते हैं जरूरी है कि आज भगवान महावीर ने जो संदेश दिए हम उन्हें जीवन और आचरण में उतारे । हर व्यक्ति महावीर बनने की तैयारी करे। तभी अपने जीवन में सुख शांति आ सकती है ।

भगवान महावीर भी साधारण मनुष्य ही थे वर्षों पहले वह जन्मे उन्होंने भी अपने जीवन में अनगिनत समस्याओं को देखा परंतु सच्चे सुख को पाने के लिए तपस्या और साधना का मार्ग अपनाया। सत्य की खोज कर सत्य को पा लिया ।और आज वे हमारे बीच पूज्यता को प्राप्त हुए हैं ।

भगवान महावीर की मूल शिक्षा अहिंसा प्रथमतः भगवान महावीर ने इन संदेशों को जन-जन तक पहुंचायां “अहिंसा परमो धर्म ” महाभारत में भी आता है लेकिन इसको अंतरराष्ट्रीय स्तर तक भगवान महावीर ने पहुंचाया ।

स्वयं के जीवन से भगवान महावीर ने जन-जन को उपदेश दिया । आज जहां कहीं अहिंसा का नाम आता है तो साथ ही महावीर का नाम आता है । “आत्मानः प्रति कुलानि परेषाम् समाचरेत् ” इस भावना के अनुसार दूसरे व्यक्तियों से ऐसा व्यवहार करें जैसा कि हम अपने लिए अपेक्षा करते हैं । सभी जीव जंतुओं के प्रति प्राणीमात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या ना तो करें और ना ही करवाए और हत्या से उत्पन्न वस्तुओ का भी उपभोग नहीं करें ।

भगवान महावीर ने क्षमता को भी अपनाया उन्होंने “खम्मामि सव्व जीवनाम् सव्वे जीवा खमंतु मे , मित्ती मे सव्व भूदेसू , वेरं मज्झं न केनइ “अर्थात में सभी से क्षमा याचना करता हूं मुझे सभी क्षमा करें मेरे लिए सभी प्राणी मित्रवत है । मेरा किसी से भी वैर नहीं है ।

आज महावीर के पुनर्जन्म की नहीं बल्कि उनके द्वारा दिए गए आदर्श जीवन की पुनर्जन्म की अपेक्षा है। हम अपने जीवन में भगवान महावीर के संदेशों को स्वीकारे ।
महापुरुष सदैव प्रासंगिक रहते हैं । फिर भगवान महावीर की प्रासंगिकता के विषय में जिज्ञासा ही अयुक्त है कौन बता सकता है? सूर्य और चंद्रमा कब प्रसांगिक बना , सूर्य केवल दिन को और चंद्रमा केवल रात्रि को प्रकाशित करता है।परंतु भगवान महावीर का दिव्य दर्शन मानव मन को आलोकित करता है ।