कनाट प्लेस में जैन त्रिवेणी ॰ आचार्य श्री सुनील सागरजी का 2024 वर्षायोग दिल्ली में?

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॰ आचार्य श्री के सान्निध्य में ही लालमंदिर, कनाट प्लेस में होंगे भव्य पंचकल्याणक!
16 फरवरी 2024/ माघ शुक्ल च अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/शरद जैन /
विश्वास कीजिए, कनाट प्लेस में 100 मीटर की दूरी में तीन दिगंबर जैन मंदिर – अग्रवाल दिगंबर जैन मंदिर, खंडेलवाल दि. जैन मंदिर और भरत स्थली पर शायद ही तीनों एक साथ कभी इकट्ठे बैठे हों। पर संतों की तपश्चर्या का क्या तेज होता है, यह अपनी आंखों से देखा, जब खण्डेलवाल दि. जैन मंदिर धर्मोदय तीर्थ बना, पांच फुट के पदमासन तीर्थंकर धर्मनाथ की, 21-21 फुट की तीर्थंकर वासुपूज्य स्वामी व तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ स्वामी प्रतिमा के साथ चौबीसी छत पर विराजमान हुई। उसके बाद चार दिन का आचार्य श्री सुनील सागरजी महामुनिराज संघ का प्रवास यहां हुआ, उसने तीनों को उस त्रिवेणी में गंगा-यमुना-सरस्वती की तरह एक कर दिया।

रविवार 11 फरवरी को आचार्य श्री सुनील सागरजी की अगुवाई में एक साथ तीनों जगह महामस्तकाभिषेक हुआ, इस अवसर पर आचार्य श्री की प्रेरणा, निर्देशन व मंगल सान्निध्य में 21 फीट की तीर्थंकर श्री महावीर स्वामी की पदमासन उतुंग प्रतिमा को विराजमान करने के लिये भूमि पूजन, संकल्प व भूमि शुद्धि कार्यक्रम हुआ।

आचार्य श्री सुनील सागरजी ने इस अवसर पर कहा कि आज सचमुच सोने का सूरज उगा है। कामा, फिर जयपुर और आगे कई पंचकल्याणकों का कार्यक्रम है, पर दिल्ली में समाज कुछ कार्यक्रम एक साल के भीतर कर लेता है, तो आचार्य श्री का दिल्ली समाज को इस 2550वें महावीर स्वामी निर्वाण वर्ष में उनका सान्निध्य मिल सकता है।

लाल मंदिर के मैनेजर पुनीत जैन के अनुसार दरियागंज में ‘प्राकृत सदन’ की शुरूआत प्राकृत केसरी आचार्य श्री सुनील सागरजी के सान्निध्य में ही कराने की योजना है। लाल मंदिर में तीन बार छोटे प्रवास में आचार्य श्री ने वहां की कमेटी को लाल मंदिर में ऊपर दो बड़ी खड्गासन पारस प्रभु व महावीर स्वामी की प्रतिमायें लगाने का सुझाव दिया, जैसे कनाट प्लेस के अग्रवाल दि. जैन मंदिर में महावीर स्वामी के। एक पंचकल्याणक कार्यक्रम तथा राष्ट्रपति के सान्निध्य में भी एक कार्यक्रम की योजना बन रही है।

आचार्य श्री ने इसका खुलासा करते हुए कहा कि जब-जब देश के प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से संबोधन करेंगे तो सबसे पहले उन्हें दर्शन लाल मंदिर के तीन शिखरों के साथ उन दो विशाल प्रतिमाओं के दर्शन होंगे और वे चित्र पूरी दुनिया में जाएंगे। पूरे विश्व में वीतराग धर्म का प्रभावना – प्रसार होगा।

इसी तरह दिल्ली से ही पर्यटकों का आना-जाना पूरे देश के लिये होता है। कनाट प्लेस में जैन त्रिवेणी और वहां की विशाल प्रतिमायें, तीनों मंदिरों का पूरे विश्व में जैन संस्कृति को एक नई पहचान देने में कारगर होगी। आचार्य श्री ने स्पष्ट संकेत दे दिये कि अगर दोनों कमेटियां इसके लिये गंभीर हो, और ये कार्य 2550वें निर्वाण वर्ष में ही करने की योजना हो, तो दिल्ली को उनके सान्निध्य पर निश्चित ही विचार करेंगे।
जिस दिन अयोध्या में श्री राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई, उसी दिन अनेकों जैन मंदिरों में उस कार्य के निर्विघ्न सम्पन्नता के लिये दीप अर्चना की गई। जैसे हम दूसरों को सहयोग करते हैं, उसी तरह हम भी दूसरों से कुछ चाहते हैं, कि हमारे तीर्थों के संरक्षण में सहयोग करें। यह कहते हुये उन्होंने कहा कि भरत स्थली पर भरतेश्वर भगवान के चरणों का ही यह चमत्कार है कि पुन: भारत को, इण्डिया से पुन: ‘भारत’ पुकारा गया। वहीं भारत जिसका नाम इन्हीं भरत चक्रवती के नाम पर पड़ा। वैदिक परम्परा के 18 में से 12 पुराणों में स्पष्ट उल्लेख है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर ही इस देश का नाम भारत पड़ा। ऋषभ भरत के इक्ष्वाकु वंश में ही भगवान राम का जन्म हुआ। जैसे उन्होंने, इस भारत को वैभव-समृद्धि का स्वरूप दिया, हम भी वह दे सकें और फिर वैराग्य धारण कर उन्होंने स्व का कल्याण किया, वैसे ही हम भी करें।

आचार्य श्री ने कहा कि वस्त्राभूषण सहित प्रतिमायें हमें संसार में रहना सिखाती हैं और वीतरागी प्रतिमायें हमें निज स्वरूप का कल्याण करने की प्रेरणा देती हैं। गिरनार पर्वत पर जगह-जगह वीतरागी प्रतिमायें उकेरी हुई हैं, जिन्हें रंग करके, बदला गया है, इससे जैन संस्कृति का ही नहीं, हमारे पुरातन का भी विनाश हो रहा है। देश में हर व्यक्ति के साथ शासन-प्रशासन का भी प्रथम कर्तव्य है कि वह अनधिकृत कब्जे ना करे। श्रीराम ने मर्यादा का पाठ बताया, किसी पर अन्याय नहीं करना, किसी पर जबरन अधिकार नहीं करना, वहीं राम पुनर्स्थापित हों।

दुनिया के सारे धर्म कल्याण की बात करते हैं, पर जितना जिनवाणी में कहा गया है, उतना कहीं और नहीं कहा गया। मोक्ष मार्ग की जब इच्छा हो, सम्पूर्ण त्याग के बाद उत्तम उपलब्धि होती है।
आज आप सबको संकल्प लेना चाहिए कि तीर्थंकरों के इस अहिंसा के मार्ग को कभी नहीं छोड़ेंगे और हमारे जीवन का लक्ष्य परम तत्व निजस्वरूप की उपलब्धि है।

सरकार भले ध्यान ना दे पाई। कहीं 50वीं, 100वीं जयंती होती हैं, तो बहुत जोर-शोर से सत्ता-प्रशासन मनाता है, कई जगह तो प्रधानमंत्री जी भी जाते हैं, पर यहां पारस प्रभु का 2900वां जन्म कल्याणक वर्ष और महावीर स्वामी का 2550वां निर्वाण वर्ष चल रहा है, उसकी कोई गूंज सरकार की ओर से ना होना, हैरानगी उत्पन्न कर देता है।
महावीर – पारस के उपदेशों का जन-जन में प्रचार हो। सब मिलकर भावना भाते हैं, तो सफलता तो अवश्य मिलेगी ही।

धर्मोदय तीर्थ – सबसे बड़ा संघ, सबसे ज्यादा
केशलोंच, और 230 दिन व्रत के बाद पारणा

आदिनाथ मोक्ष कल्याणक के पावन दिन ही दिल्ली के धर्मोदय तीर्थ पर चार आचार्य संघों के सान्निध्य में पंचकल्याणक का निर्वाण कल्याणक मनाने का अद्भुत संयोग रहा और अगले ही दिन आचार्य श्री सुनील सागरजी का, शेष संघ भी कृष्णानगर से यहां पहुंचा और फिर हुआ एक साथ पांच का केशलोंच।
आर्यिका अनघमति माताजी, आर्यिका संबलमति माताजी, क्षुल्लिका सद्दृष्टि माताजी, क्षुल्लिका सत्व्रतमति माताजी और क्षुल्लिका सत्तपमति माताजी के केशलुंचन के दृश्य मंत्रमुग्ध करने वाले थे। आचार्य श्री सुनील सागरजी ने इस अवसर पर कहा कि आज कल अपने को सुंदर दिखाने के लिये नकली बाल लगाने का फैशन चल निकला है और यहां मातायें अपने सुंदर बालों को कैसे निकाल-उखाड़ देती हैं। कहां मोह का दलदल, और यहां मोक्ष की राह। आप भी इतने रागी मत बनो, और ना ही चेहरे पर इतना रंग रोगन करो।
मुनि संतृप्त सागर की महापारणा

दिल्ली को अनेक वर्षों बाद उपवासों का एक बड़ा क्रम-मध्यम सिंह निष्क्रीडित व्रत के रूप में देखने को मिला। आचार्य श्री सुनील सागरजी के परम शिष्य मुनि श्री संतृप्त सागरजी का 10 फरवरी 2024 को 230 उपवासों की लम्बी श्रृंखला के बाद महापारणा का सौभाग्य भी धर्मोदय तीर्थ को मिला। इन 230 दिनों में, 187 उपवास, 30 दिन अन्न व 13 दिन मात्र जल लिया। कई बार स्वास्थ्य में बेहद गिरावट भी आई, पर गुरु की कृपा जिस पर हो, उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता, वही आपके साथ हुआ।