अरहंत- सिद्ध स्वरूप का अवर्णवाद करता तिरंगा जिनाभिषेक

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1938

कुछ वर्षों से जैन समाज में अति उत्साही साधुओं की प्रेरणा एवं संबल पाकर अरहंत भगवान की मूर्तियों पर स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर तीन रंगों से अभिषेक कर मूर्तियों को तीन रंगों में रंगी बताने का नया चलन प्रारम्भ हुआ है. जिनाभिषेक की यह पद्धति पूरी तरह से जिन धर्म, जिन परम्परा एवं आगम विरुद्ध है.इस का जलाभिषेक अथवा पंचामृत अभिषेक से भी कोई मेल नहीं है.धर्म सत्ता को मलिन करने का यह उपक्रम उचित नहीं है.
जब हम रंग बिरंगी प्रतिमाओं की स्थापना भी नहीं करते हैं तो उनका रंग बिरंगा अभिषेक कैसे कर सकते हैं?
अरहंत – सिद्ध को रंग रहितोहं, निर्विकारोहं, शुद्ध आत्मरस स्वरूपोहं कहा जाता है.
ऐसे में उन्हें किन्हीं रंग विशेषों से रंगना और प्रदर्शित करना जैन धर्म का, जिन मूर्ति का अवर्णवाद है. यह हमारी पूजन पद्धति को बदलने का प्रयास है.
हमारे महान आचार्यों, मुनियों को चाहिए कि वह स्पष्ट आदेश देकर इस नयी पद्धति पर तत्काल रोक लगाना चाहिए.
– डा. सुरेन्द्र कुमार जैन भारती
महामन्त्री- अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्, रजि. बुरहानपुर, मध्यप्रदेश