भारतीय पुरातन संस्कृति, जैन तीर्थों से छेड़छाड़, हाईकार्टो आदेश की अवमानना के विरोध में जैन संतों-श्रावकों का 47 घंटे का अनशन!

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21 दिसंबर 2023 / मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
बार-बार भारतीय प्राचीन संस्कृति, पुरातन से छेड़छाड़, जैन तीर्थों के बदलाव, तोड़फोड़ के साथ तीन-तीन हाईकोर्टों के आदेशों की अवमानना के विरोध में एक बार फिर हजारों जैन संत-श्रावक अब 47 घंटों का अनशन करेंगे।

17 दिसंबर को बड़ौत से अपने लाइव प्रसारण में रामलीला मैदान, दिल्ली की सभा को संबोधित करते हुए आचार्य श्री सुनील सागरजी ने इसकी घोषणा की। ध्यान रहे पहले हिंदू पर्व दिवाली पर 13 नवंबर और अब ईसाइयों के पर्व क्रिसमस ईव पर अन्न जल का पूर्णत्याग कर 24 दिसम्बर को अब फिर हजारों जैन साधु-श्रावक अनशन करेंगे।

क्या संविधान की सुरक्षा, कानून के पालन के लिए, अपने तीर्थों पर हमले रोकने के लिये, हाईकोर्ट के आदेशों के पालन के लिए क्या जैन साधु संतों को अनशन के लिये बार-बार मजबूर होना पड़ेगा? सान्ध्य महालक्ष्मी के इस सवाल पर आचार्य श्री सुनील सागरजी ने कहा कि हमारे अनशन का उद्देश्य विद्रोह आंदोलन, ऐसा नहीं है बल्कि शांति के साथ, मौन के साथ 47-48 घंटे का निर्जल उपवास रहेगा, जिसमें जाप होंगे, भगवान का ध्यान होगा और सबके लिए सद्बुद्धि की कामना होगी, क्योंकि वचनों का जितना प्रभाव होता है, उससे ज्यादा भावनाओं का प्रभाव होता है, ऐसा समझते हैं, इसलिये इसे अनशन आंदोलन कहें या सद्बुद्धि यज्ञ कहें, वो हम सब करने जा रहे हैं।

उन्होंने आगे कहा कि समाज अपनी जिम्मेदारी निभाये और चाहें बहुसंख्यक वैदिक संस्कृति के हो या अल्पसंख्यक श्रमण संस्कृति के लोग हों, मिल बैठकर विचार करें, रास्ते निकाले और पुरातत्व और तीर्थों को प्राचीन रूप में ही रहने दिया जाये। कोर्ट के जो आदेश हैं, उनकी परिपालना होनी चाहिए।

सान्ध्य महालक्ष्मी इस बारे में जोर देकर कहना चाहता है कि क्या अल्पसंख्यकों में भी अल्पसंख्यक जैन समाज को अपनी बात के लिये साधु-संतों के अन्न-जल को छीनकर ही सत्ता व शासन में सुनवाई होगी। गिरनार पर जैनों को अपनी परम्परा के अनुसार दर्शन पूजा का (Prayer) का पूरा अधिकार गुजरात हाईकोर्ट ने अपने 17 फरवरी 2005 के आदेश में दिया। साथ ही शासन को उनकी पूर्ण सुरक्षा के लिये भी कहा। पर 18 साल बाद आज भी स्थिति जस की तस है। न जयकारा बोल सकते हैं, न मंत्र, न पूजा कर सकते हैं, न अर्घ्य चढ़ा सकते हैं। ऐसा अन्याय और सत्ता – प्रशासन सब चुप। यही नहीं जैनों के साथ वहां खुल्लम-खुल्ला अमानवीय व्यवहार हो रहा है, मारपीट, गुण्डागर्दी के साथ डंडे उठाते हैं, तलवार लहराते हैं, पर सत्ता-शासन – प्रशासन चुप। अनशन तो करना ही पड़ेगा।