निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
अभिषेक करते-करते आनंद आये बार बार, अभिषेक करने का मन हो, वह अभिषेक आत्मा की पर्याय बन गया
1.आत्मा की पर्याय धर्म-जब व्यक्ति को आनंद आता है इसको बार-बार करने का मन होता है आनंद आता है विराम नहीं लेता है,धर्म क्षेत्र की क्रिया आत्मा की पर्याय बन जाए,जिस धर्म क्रिया को बार-बार करने का मन होता वह आपकी आत्मा की पर्याय बन गयी उदाहरण आचार्य श्री विद्यासागर जी के साथ पूज्य मुनि श्री सुधासागर जी और सभी साधुओं ने पुज्नीय शिखरजी में प्रतिदिन जितने दिन रहे उतने दिन वंदना की और 1 दिन तो केंशलोंच के साथ दो वंदना कि यह वंदना आत्मा की पर्याय बन गई।
2.हम उन्नति करते हैं सारा संसार, रिश्तेदार परिवार स्वयं सब कहते है इसने विकास किया हैं।लेकिन जब संसार से विपरीत धर्मशास्त्र से पूछते हैं तो धर्म शास्त्र कहते हैं यह अब गिरेगा पतन होगा, इस संसार में और कहीं का नहीं रहेगा।
3.स्वार्थ- दुनिया से हमारा कितना अच्छा हो रहा है यह हम विचार करते हैं हमारा सहयोग कितना है दुनिया के लिए❓भगवान से हम मांगते हैं लेकिन भगवान को क्या देते हैं कुछ नहीं देते यही स्वार्थ हैं।
4.परिवार वालों को एक दूसरे से बहुत राग होता है जब परिवार मे किसी को कभी सिर दर्द भी होता है तो परिवार के सभी लोग रात भर बेचैन हो जाते हैं इसको हम लोग अच्छा मानते हैं, लेकिन जब धर्म शास्त्र के सामने जाते हैं।धर्म शास्त्र कहते है ये राग नहीं आग है।
शिक्षा-धर्म की क्रिया करते समय जिंदगी समर्पित कर दें, तब चमत्कार होगा,अतिशय होगा।
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