पहली बार :एक प्रवचन में 10 भाषाएं : प्राकृत में किसी संत को डि लिट -सम्मान पत्र भी मानो आज धन्य हो गया

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23 नवंबर 2023 / कार्तिक शुक्ल एकादशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन/
ऋषभ विहार में 02 जुलाई 2023 को जब आचार्य श्री सुनील सागरजी महामुनिराज का संघ पहुंचा तब से 16 नवंबर प्रात: 6.30 बजे वहां से सब्जीमंडी की ओर जाने तक, ऐसे अनेक अभूतपूर्व, अद्भुत कार्यक्रम व प्रभावना हुई जो वर्षों तक लोगों के मन मस्तिष्क में चिर अंकित रहेगी। धर्मसभा के आखिरी दिन बुधवार 15 नवंबर को भी ऐसे ही नयनाभिरामी, आनंदित करने वाले दृश्य देखने को मिले, जिन्हें देखकर हर किसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली। हां, यह तो सुना है कि आज कल ऐसे यंत्र इंसान ने ईजाद कर लिये हैं, जो शब्दों को अलग-अलग भाषा में परिवर्तित कर सकता है, पर इंसान ऐसा न यंत्र बना पाया, न कोई ऐसा इंसान दिखा जो, धारा प्रवाह अलग-अलग भाषाओं में अपने विषय पर निर्बाध बोलना चाहे। हां, सुना था कि आचार्य श्री आदिसागर अंकलीकर जी के प्रथम शिष्य आचार्य श्री महावीर कीर्तिजी 18 भाषाओं के ज्ञाता थे, पशु-पक्षी की भाषा भी समझ लेते थे। तब उनके परिवार में तो ऐसेसंस्कार होना संभव है।

हां, उन्हीं के पड़पोते कहूं, तो कुछ अतिश्योक्ति तो कह सकते हैं, पर अगर गृहस्थ परम्परा में ऐसा है तो, श्रमण परम्परा में गुरु-शिष्य भी पिता-पुत्र एक प्रकार से कहें ही जा सकते हैं, जरूर वहां रिश्ते खून से नहीं, पर शिष्य परम्परा से ही बनते हैं।

आचार्य श्री सुनील सागरजी महामुनिराज ने अपने 27वें चातुर्मास के अपने अंतिम संबोधन में प्राकृत की प्रकृति से संस्कृत की संस्कृति को आत्मा से परमात्मा की ऊंचाई तक पहुंचाते हुए भाषा, लिपि, संस्कृति की धरा को नहीं छोड़ा। हर एक कोस पर पानी और चार कोस पर वाणी बदलती है, पर यहां तो हर चार लाइन में भाषा बदल जाये, ऐसा दुनिया के इतिहास में पहली बार हुआ। समयसार की गहराई से जिंदगी की मुस्कुराहट तक सबकुछ था। प्राकृत, अप्रभंश, संस्कृत, मराठी, हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, बुंदेलखंडी, बागड़ी, कन्नड़ में धारा प्रवाह प्रवचन कर देश का ही दिल नहीं जीता, सात समुद्र पार की केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश नेशनल यूनिवर्सिटी को भी वहां बैठने, सोचने को मजबूर होना पड़ा होगा कि अगली उपाधि / डिग्री की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। उन्हें क्या डिग्री, सम्मान, प्रमाण पत्र दिये, वे आप संलग्न तालिका में देख सकते हैं। हां, प्राकृत के लिये डी. लिट किसी संत को मिली तो वह भी आचार्य श्री सुनील सागरजी को। ये सम्मान पाकर दिगंबर संत धन्य नहीं होते, बल्कि वे विश्वविद्यालय व संस्थान धन्य हो गये कि एक श्रेष्ठ संत का नाम उनके द्वारा दी जाने वाली डिग्री, सम्मान पर लिखा गया। वह सम्मान पत्र भी मानो आज धन्य हो गया।

आर्यिका श्री सुदृढ़मति माताजी ने आचार्य श्री सुनील सागरजी के बारे में सही कहा कि दुनिया में सुनील तो बहुत मिलेंगे, पर सुनील सागर एक ही है। यह नाम आकाश से ज्यादा ऊंचा और सागर से ज्यादा गहराई को जैसे सार्थक करता है। इस अवसर पर आर्यिका श्री सुदृढ़मति माताजी केलिफोर्निया पब्लिक यूनिवर्सिटी, यूएसए ने उनकी कृति ‘बायोग्राफी आॅफ सुनील सागरजी महाराज’ पर ‘डॉक्टर आॅफ फिलासिफी’ सम्मान दिया।