29अक्टूबर 2023/ कार्तिक कृष्ण एकम /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन/
शरद पूर्णिमा (आश्विन) वह रात जब चांद की चांदनी भी उतना ही आनंद देती है, जितना दिन में सूरज की मीठी तपन, जो दमन करती है कोने-कोने में छिपे अज्ञानमयी अंधकार का। 1934 की शरद पूर्णिमा 22 अक्टूबर को आई जब टिकैत नगर (बाराबंकी) में श्रेष्ठी श्री छोटेलाल जी के आंगन में जैसे ही किलकारियां गूंजी, समझ गये श्रीमती मोहिनी देवी ने उस कन्या को जन्म देकर अपना मातृत्व धन्य कर लिया है, जो आगे चलकर इस घर को छोड़कर, लाखों घरों में प्रवेश कर जाएगी।
ऐसे ही 12 बरस बाद बेलगांव के सदलगा गांव में श्री मलप्पा अष्टगे के आंगन में जैसे ही किलकारियां गूंजी तब शायद गगन भी यह कहते हुए गुंजायमान हो गया कि श्रीमती श्रीमन्ती अष्टगे का यह पुत्र स्वयं घर छोड़कर, लाखों-करोड़ों के दिलों में बस जाएगा, साथ ही पूरे परिवार को संयम पथ पर मोड़ देगा।
दोनों ही सौम्य, सदी के महानतम संत – करोड़पति से रोडपति, मंत्री से संतरी, वृद्ध हो या बालक, सभी के लिये समान, आगम के उत्कृष्ट ज्ञानवान, अनेकों को संयम मार्ग पर बढ़ाने वाले – दोनों के लिये सान्ध्य महालक्ष्मी व चैनल महालक्ष्मी, बारम्बार नमोस्तु, नमन करती है।
संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी मुनिराज : हां, महानतम मनीषी, प्रज्ञा सम्पन्न निरीह, निर्लिप्त, निरपेक्ष अनियत विहारी, संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महामुनिराज, जिन्होंने त्याग और तपस्या से स्वयं को श्रृंगारित किया, संयम के ढांचे में स्वयं को डाला। जहां आपने चार सौ से अधिक को आलौकिक मार्ग पर बढ़ाया, वहीं अनुशासन को ढाल बनाकर हजारों संयमी युवाओं को जीवन को सही दिशा देकर, लाखों दिलों में चतुर्थ काल की चर्या को तीर्थंकर महावीर स्वामी के 2550वें निर्वाणकाल में, 53 सालों से सजीव कर रखा है।
बचपन में गौ माता के दूध ने गंभीर बीमारी से बचाया और उसका ऋण मानो वे 75 साल बाद भी चुका रहे हैं। सवा लाख पशुधन का संरक्षण 140 से अधिक गौशालाओं में रहा है। दादाजी के निर्देश पर पिताजी ने एक चन्द्रप्रभ चैत्यालय घर में बनाया था, तो आपने दर्जन भर विशाल तीर्थ-जिनालय लाखों लोगों के लिए बना दिये। हां, स्वयं मात्र नौवी कक्षा तक पढ़े, पर आज उनसे अनेक प्रोफेसर, इंजीनियर, सीए, वकील, दीक्षित हैं और देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, अनेकों राज्यपाल, मुख्यमंत्री, मंत्री भी आपके ज्ञान के कायल हैं। डीलिट, पीएचडी, शोध पत्रों की तो एक लंबी कतार आपकी लेखनी पर लगी है। भारत को भारत कहो, इंडिया नहीं, हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में सर्वव्यापी बनायें, हथकरघा से हर हाथ को रोजगार दें, पश्चिमी शिक्षा नीति को बदलें- ये वो राष्ट्रीय मुद्दे थे, जिनसे पूरे देश में क्रांति मचा दी।
बचपन में खूब चटपटा, मसालेदार खाने वाले ने जब संयम के पद पर कदम बढ़ाए, तो चटकारे लेने वाले ने नमक, मीठा, हरी, तेल, ड्राईफ्रूट, सभी का अजीवन त्याग कर स्पष्ट कर दिया कि रसना इन्द्रिय के वो नहीं, वह उनकी गुलाम है।
Ep.2203 संतशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी के उद्बोधनों से 13 जो बदल दें जीवन
चटाई का कभी उपयोग न करने वाले, गरमी में पंखा, सर्दी में हीटर आदि दिगम्बरत्व पर कोई आवरण नहीं, दिन में न लेटने वाले, इस 78वें सावन के पार भी कभी सहारा नहीं लेने वाले, कब-कहां विहार कर जायें, यह तो शायद उनके कदमों को भी, उनके दिमाग का मालूम नहीं होगा।
गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी : इधर उनके 90वें जन्मदिवस के साथ संयम के 72वें वर्ष से वर्तमान में सबसे वयोवृद्ध दिगंबर संतों में अग्रणी गणिनी शिरोमणि श्री ज्ञानमती माताजी इस सदी की महान गौरव हैं। आपकी जन्म एवं वैराग्य तिथि (ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण) का एक होना सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व का साक्षात उदाहरण है। आपके कदमों में न जाने कैसा चमत्कार है कि जहां कदम रखती हैं, वहां की मिट्टी सोना बन जाती है, वहां जिनालय बनने लगते हैं, विधानों की तो झड़िया लग जाती हैं, तीर्थों का जीर्णोद्धार होने लगता है। बहुत ही गजब की बात है कि आपके इन श्रेष्ठतम कार्यों, निर्माण के लिये सदा दिगंबर समाज की चंचला लक्ष्मी का ही सदुपयोग किया गया है।
जम्बूद्वीप की रचना, ज्ञानज्योति प्रवर्तन, भगवान महावीर जयंति रथ के प्रवर्तन के साथ, कल्याणक भूमियों का विकास, जीर्णोद्धार जैसे कार्य धर्म की विकास यात्रा में मील के पत्थर बन गये। अल्पकाल में 250 से ज्यादा ग्रंथों का सृजन संसार के साहित्य जगत में हिमालय पर्वत-सा बन गया।
जिनके उर में कल-कल बहती, गंगा की निर्मल धारा
त्याग और शुभ ज्ञानमणी से, जिसने निज को श्रृंगारा।
वचनों के मोती बिखराती, युग की पहली बालसती,
हम सबका वंदन स्वीकारो, गणिनी माता ज्ञानमती।।