संतों के नाम का, संप्रदाय और पंथो के नाम का डंडा केवल लड़ने लड़ाने और किसी का सिर फोड़ने के काम आ रहा है: अन्तर्मना आचार्य श्री प्रसन्न सागरजी

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20 अक्टूबर 2023/ अश्विन शुक्ल षष्ठी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /औरंगाबाद उदगाव नरेंद्र /पियूष जैन
भारत गौरव साधना महोदधि सिंहनिष्कड़ित व्रत कर्ता अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज एवं सौम्यमूर्ति उपाध्याय 108 श्री पीयूष सागर जी महाराज ससंघ का महाराष्ट्र के ऊदगाव मे 2023 का ऐतिहासिक चौमासा चल रहा है इस दौरान भक्त को प्रवचन कहाँ की उनके लिये 347 दिनों के लिए चला गया, जो सिर्फ भाद्रपद में धर्म करते हैं और पाप में लिप्त रहते हैं।बल्कि होना ये चाहिए था कि जो आपने 18 दिनो में धर्म को समझा था, जीया था,, उसे 347 दिन जीने का अभ्यास करना चाहिए था। पर्युषण के बाद लोग घरों से, बाजार, होटल, रेस्टोरेंट में ऐसे जाते हैं जैसे जेल से छूटे कैदी।

धर्म प्रदर्शन, प्रलोभन और धर्म दिखावा भी नहीं है। धर्म तो मनुष्य का कर्म है, धर्म जीवन है, जीवन शैली है, धर्म आचरण है, आवरण नहीं। धर्म और सत्संग में एक क्षण को भी जाओ, मगर अंतर्मन, अन्तरंग से जाओ, सरल होकर जाओ। आज हमने अपने हाथों में जो धर्म की मसाले थाम रखी है, उनकी ज्योति बुझ गई है, और अब केवल हाथ में डंडा रह गया, संतों के नाम का, संप्रदाय और पंथो के नाम का। और वह डंडा भी अब लोगों को रास्ता नहीं दिखा रहा है। केवल लड़ने लड़ाने और किसी का सिर फोड़ने के काम आ रहा है।

इसलिए जो लोग चालाक बनकर, धर्म और धर्मात्माओं का, व्रत नियम संकल्प, संयम का मजाक बनाते हैं,, यकीन मानिये वो खुद एक दिन सबका मजाक बन जाते हैं। आप दूसरों से धर्म का रास्ता पूछोगे तो भटक जाओगे। क्योंकि धर्म की अहमियत को जितना आप जानते हो, उतना समझाने वाला नहीं। समझाने वाला तो ऐसे ही है जैसे कढ़ाई में चम्मच। जबरन की नजदीकियोंं से तो, सुकून की दूरियां ही बेहतर है।

रोकर धर्म करना नहीं और धर्म करो तो रोना नहीं..
रोकर दान देना नहीं और दान देने के बाद रोना नहीं…!!!