ज्ञान कल्याणक पखवाड़ा- 6 दिन में 4 कल्याणक

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पौष शुक्ल पखवाड़ा, यानि वर्ष के 24 पखवाड़ों में से एकमात्र पखवाड़ा है जो ज्ञानकल्याणक पखवाड़ा है, इसके छह दिनों में चार तीर्थंकरों के चार ज्ञान कल्याणक आये हैं और शुरूआत हुई है
दशमी (23 जनवरी) से जिस दिन 12वें कामदेव ने 16वें तीर्थंकर बनने के लिए, 50 हजार वर्ष राज करने के पांचवें चक्रवर्ती श्री शांतिनाथ जी ने दर्पण में अपने दो प्रतिबिम्ब देखकर वैराग्य हो गया। 16 वर्ष तक तप करके हस्तिनापुर के आमों के वन में, नंदी पेड़ के नीचे अपराह्नकाल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुए, आपका केवलीकाल 84,984 वर्ष रहा।
पौष शुक्ल एकादशी (24 जनवरी) को हमने दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ जी का केवलज्ञान कल्याणक मनाया। तीर्थंकर श्री अजितनाथ जी को 12 वर्ष तप के बाद, अयोध्या नगरी के सहेतुक वन में सप्तवर्ण वृक्ष के नीचे सायंकाल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। आपके 90 गणधर थे तथा केवलिकाल एक लाख वर्ष पूर्व, एक पूर्वांग, 12 वर्ष का रहा।
चतुर्दशी (26 जनवरी), जो इस बार भारत का 72वां गणतंत्र दिवस भी है, इस दिन चौथे तीर्थंकर श्री अभिनंदननाथ जी को 18 वर्ष तप के बाद अयोध्या नगरी के ही, उग्रवन में सरल वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। आपका केवलीकाल एक लाख पूर्व, 8 पूर्वांग, 18 वर्ष का रहा यानि अजितनाथ जी के केवलीकाल से थोड़ा ज्यादा और गणधर भी ज्यादा यानि 103 थे।
इस पखवाड़े का अंतिम ज्ञान कल्याणक, पखवाड़े के अंतिम दिन यानि
27 जनवरी को,
15वें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी को रत्नपुरी नगरी के सहेतुक वन में दधिपर्ण वृक्ष के नीचे अपराह्न काल में केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। आका केवलीकाल एक वर्ष कम 25 हजार वर्ष यानि 24,999 वर्ष रहा, आपके 43 गणधर थे।

बोलिये चारों तीर्थंकरों के ज्ञानकल्याणक की
जय, जय, जय।