22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथजी का ज्ञान कल्याणक, वही जगह, जहां पर पर तलवार, डंडे उठाये जाते हैं, उनका कार्यक्रम करने के लिए, जयकारा नहीं , अर्घ नहीं , णमोकार मंत्र नहीं जप सकता, चंद मिनट खड़ा नहीं हो सकता

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13 अक्टूबर 2023/ अश्विन कृष्ण चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी /
झूठे सब नाते रिश्ते हैं, नश्वर काया नश्वर माया ।
भव भव में इंद्रियां भोग किया पर योगानंद नहीं पाया ।।
अश्विन शुक्ला एकम निज रम , चउ कर्म घातीया ध्वस्त किए।
केवल मुक्ति के स्वामी बन, भवी समवशरण उपदेश दिए ।।

जूनागढ़ की राजकुमारी राजुल संग विवाह के लिये जाते हुए नेमिनाथ जी रास्ते में करोड़ों बंधे पशुओं का कन्द्रन सुन संसार की असलियत जान लेते हैं। उसी क्षण वैराग्य की भावना बलवती हो जाती है और वहीं जूनागढ़ के गिरनार पर्वत पर पंचमुष्टी केशलोंच कर एक हजार राजाओं के साथ दीक्षा धारण कर लेते हैं। एकमात्र तीर्थंककर जो विवाह का बंधन बांधते, उसमें चंद क्षण पूर्व कर्मों का बंधन नष्ट करने को तैयार हो गये।

चार वर्ष आठ माह के कठोर तप के बाद आश्विन शुक्ल एकम् को उर्जन्त पर्वत पर मेघश्रृंग वृक्ष के नीचे आपको केवलज्ञान की प्राप्ति होती है और फिर जगह – जगह समोशरण के माध्यम से 699 वर्ष 10 माह 4 दिन तक आपकी दिव्य ध्वनि खिरती है, जो आपके 11 गणधरों से ऋषियों-मुनिराजों तक पहुंचती है।

आपकी प्रमुख आर्यिका राजुलमती बनी, शासन देव सर्वाणहदेव रहे, पर शासनदेव से ज्यादा शासन देवी कुष्मांडनी देवी लोकप्रिय हो गई, जिन्हें अम्बिका देवी के नाम से भी जानते हैं।
इस वर्ष तीर्थंकर श्री नेमिनाथजी का ज्ञान कल्याणक 15 अक्टूबर को है।

जी हां, हमारे 22वें तीर्थंकर उसी गिरनार जी से 4 वर्ष 8 माह कठोर तप करने के बाद, उसी गिरनार जी से केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है। वही दिन, जो इस वर्ष, 15 अक्टूबर को आ रहा है, आश्विन शुक्ल की प्रतिपदा। हां, यह वही जगह है, जहां पर आज, जैन समाज का कोई व्यक्ति, जयकारा नहीं बोल पाता उनकी मोक्ष धरा पर, उस पर अर्घ नहीं चढ़ा पाता , णमोकार मंत्र नहीं जप सकता, चंद मिनट खड़ा नहीं हो सकता। सच कहा था , जैसा ऊपर लिखा है,

क्षण में क्या थे क्षण में क्या है ,कर्मों की कैसी बलिहारी ।
बस जब वे विवाह रचाने आते हैं तो,
सिरमौर तजा कंगन तोड़ा, गिरनारी चढ़ दीक्षा धारी।

केवल ज्ञान की प्राप्ति, चित्रा नक्षत्र में, पूर्वाह्न काल में, इसी उर्जयंत पर्वत पर होती है, जिसे गिरनार पर्वत और रेवतक पर्वत भी कहा जाता है। सौधर्मेंद्र की आज्ञा से, कुबेर तत्काल डेढ़ योजन विस्तार का समोशरण रचता है, और हमारे 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ भगवान जी 699 वर्ष 10 महीने 4 दिन तक जगह-जगह अपनी दिव्य ध्वनि खिराते रहते हैं, जिसको और लोगों को इस धर्म का ज्ञान अपनी ओंकारमय दिव्य ध्वनि से सुनाते रहते हैं , जिसको 11 गणधर गूंथते हैं और पूर्व आचार्य उसको रचते हैं । ऐसा केवलज्ञान कल्याणक आ रहा है, इस सोमवार 15 अक्टूबर को । चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी के साथ , आप सभी भी बोलिए, 22वें तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी के ज्ञान कल्याणक की , जय जय, जय ।

गिरनारी नेमी वंदन से, कर्मों के बंधन खुल जाते।
सन्मति समता सुख अनचाहे , भक्ति से मनोवांछित पाते।।


हजारों वर्षों से श्रमण व वैदिक संस्कृति साथ-साथ प्रेम-शांति सद्भाव से चल रही है। केवल कुछ अपने निजी स्वार्थ से दोनों को लड़वाते रहे हैं। अदालत के आदेशानुसार दोनों ही को अपने-अपने धर्म की मान्यता के अनुसार वहां दर्शन, पूजा, जयकारे आदि का समान अधिकार है। तथा दोनों ही समुदायों का वहां जस की तरस स्थिति बरकरार रखते हुए कोई अवैध निर्माण नहीं करना चाहिए तथा एक-दूसरे का पूरा आदर व सहयोग करना चाहिए, यही प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के ‘वसुधेव कुटुम्बकम्’ की पहचान है।