भगवान गुरु के यहां मांगने आते हैं,कभी आया करो, कुछ देने के लिए : मुनिपुंगव श्री सुधासागर

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निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
व्यसनी है वो सोचे, मेरे पाप की सजा कोई दूसरा नहीं भोगेगा
1.डाक्टर-जब व्यक्ति बीमार होता है, तब डॉक्टर उसको लौट आना मत गरीब व्यक्ति को दवाई के कारण मरीज बच जायेगा,मरीज गरीब हो फिर भी डा पैसे की कमी तो डॉ.यदि मरीज को बचा लेता है, तो डॉक्टर की सद्गति होगी नहीं बचाता तो दुर्गति,लंका के वैद्य सुषेण ने मरणासन्न हालत में औषधि से लक्ष्मण को बचा लिया ओर अपनी सद्गति करा ली।
2.ब्याज- ब्याज का जो व्यापार करते हैं, वह मुसक होता है, दुखी लोग ब्याज का पैसा लेते हैं, ब्याज लेने वाला आफत का मारा होता है ,वो दिनभर क्लेश में ही रहता है, यदि ब्याज खुशी के कार्य में लिया जाता है तो कोई बात नहीं ब्याज ले सकते हैं और ब्याज भी दे सकते हैं, ब्याज वाला कोई धर्म आदि में दान देने का भाव नहीं होता,ब्याज लेने वालों की सद्गति नहीं होती है उनकी मुसक प्रवृत्ति होती है।
3.व्यक्ति अपने जीवन में वो सब कार्य करुंगा ,जिससे मुझे लाम मिले ये वणिक वृति है व्यापार में व्यापारी को घाटा होता उठाता है व्यापारी के प्रति कोई दया भाव नहीं रखता,व्यसनी जुआरी के प्रति कोई करुणा नहीं रखी गई क्योंकि उसका स्वार्थ है उसमें।
4.जब जब तकलीफ हुई हो हम तब तब भगवान गुरु के यहां मांगने आते हैं।कभी आया करो, भगवान गुरुजी के पास कुछ देने के लिए।
शिक्षा-जिसको जितने लोग मानते हैं वह खुद भ्रष्ट हो जाए लेकिन अपना भ्रष्टपना अपने भक्तों को सजा नहीं मिले।
-ब्र अपूर्व