… गुरुवर न करें मोह, न करें राग, पर हम तो पहली नजर में ही सब कुछ दे बैठे, ताको हमारी नजर न लग जाए

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9 अक्टूबर 2023/ अश्विन कृष्ण दशमी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी / शरद जैन –
एदम्हि रदो णिच्चं, संतुट्ठो होहि णिच्चमेदक्हि।
एदेण होहि तित्तो, होहिदि तुह उत्तम सोक्खं।।

दीक्षा के दो वर्ष बाद पुकारा ‘अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी’ और फिर मूसलाधार वर्षा होने लगी – प्राकृताचार्य, अर्वाचीन नेमीचंद, सिद्धांत चक्रवर्ती, मौनप्रिय, उपसर्ग विजेता, राष्ट्रसंत, सूरी आदि सन्मति रत्न, चारित्र भूषण, श्रुताचार्य, अध्यात्म योगी, वात्सल्य शिरोमणि, सरस्वती शिरोमणि, सिद्धांत पारंगत, त्रिभाषा कवि, प्राकृत ज्ञान केसरी, प्राकृत शिरोमणि, संयम भूषण, अभिनव कुंदकुंदाचार्य, गुरु श्रेष्ठ वर्तमान के वर्द्धमान, चर्या चक्रवर्ती, राष्ट्र गौरव, धर्म साम्राज्य नायक ही नहीं, कुछ और भी, तो अब मैं क्या कहूं, निशब्द हूं, अ से ज्ञ तक सभी समर्पित।

नवम्बर, 2018 का वह दृश्य चित्त पटल पर आज भी अंकित है मंदिर के शिखर के नीचे पदमासन मुद्रा में विराजित और हम आधा घंटे में शायद 10 से ज्यादा बार कह चुके थे, गुरुवर कोई मुनि शिथिलाचारी, अनाचारी हो तो क्या करें? वे सुनकर अनसुना नहीं कर रहे थे, पर जवाब भी कुछ नहीं, तभी उठे और आहार के लिये बढ़े पर मुख से शब्द निकले – मुनि कभी शिथिलाचारी नहीं होता, और वो चले गये। लगभग डेढ़ घंटे बाद पूरा संघ वहीं मंदिर के आंगन में फर्श पर विराजमान, हम हाथ जोड़े उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहे थे।

तभी वहां के प्रधान जी ने कहा, जो पूछना है पूछ लो, वर्ना छुट्टी। बस यही सुनकर हम बोल गये – कोई शिथिलाचारी की सीमा भी लांघ कर, अनाचारी भी हो तो? अब जवाब के लिए इंतजार नहीं करना पड़ा – जो शिथिलाचारी, वो मुनि नहीं। दिल्ली से अहमदाबाद, दर्शन और यह सीमित, संतुलित कथन। पर वो चेहरा गंभीर, मासूम, भीनी मुस्कुराहट, आगंतुक की ओर आंख ना उठाना, दिल में छेद कर गया, उसके बाद दिल्ली तक पांच-छह बार ही दर्शन हुए 6 साल में। मुनि श्री सुधीर सागरजी के गिरनार यात्रा के बाद तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी बड़ी मूर्ति के नीचे कहे वो शब्द आज भी मस्तक पटल में संकलित हैं- ‘हमारे गुरुजी को दिल्ली ले चलने की तैयारी करो, पर शायद मैं तब बहुत दूर हूंगा। हां, वो चले गये सबसे दूर और गुरु जी दिल्ली आ गये।’

दिल्ली के जागृति एन्क्लेव में जिस दिन (07 मई 2023) पूरे संघ का जब प्रवेश होना था, उस रात अधूरी तैयारी के बाद नींद उड़ी हुई थी। चौपट तैयारी, हां, इससे पहले कोई संघ यहां नहीं ठहरा था, और अब एक साथ 56 पिच्छी। हां, जागृति एन्क्लेव में कोई तैयारी नहीं, कोई भी, कुछ भी नहीं। दिल कह रहा था गुरुवर का संघ यहां नहीं ठहरेगा, विहार कर जाएगा। आंखों में आंसू थे, तीन बज रहे थे, धवला का स्वाध्याय संघ में चल रहा था। मैं टकटकी लगाकर उनको पूरे समय देखता रहा, आंखें भीगी रही। सबके जाने के बाद, गुरुजी के सामने खड़ा हो गया हाथ जोड़कर – गुरुजी, हम कोई व्यवस्था नहीं कर पा रहे, कृपया कुछ दिन हमें झेल लीजिए।

पहली बार उन्होंने मेरी तरफ देखा – मेरी भीगी आंखों में उनकी मुस्कराहट की जो छवि कैद हुई, वह आज भी जस की तस बनी हुई है।
छिप-छिप कर उनके चेहरे की ओर देखना, चरणों की ओर से नजर नहीं हटना, कभी किसी सौभाग्यशाली की ओर कमण्डलु से छींटे डालना, हां, मैं भी पांच माह में दो बार सौभाग्यशाली बना। नहीं भूल सकता हमारे पिताजी के निवास पर आचार्य श्री का दो बार पड़गाहन हुआ, वो भी सीधे नहीं, किसी ओर से लौटकर, हां, वो दिन थे – एक जिस दिन इस धरा पर आया (जन्मदिवस 19 मई 2023 को) और दूसरा दिन जब मैं एक से दो हुआ था (विवाह वर्षगांठ 07 मई 2023 पर)। कैसे भूल जाऊं उन दो दिनों को, तब से आज तक शिखरजी यात्रा के अलावा उनके दर्शन के बगैर आज तक नहीं रह पाया। जी हां, नहीं रह पाया। क्या जादू है, जिस पर सर्वस्व समर्पित। हां, उनके हृदय में मैं तो जगह नहीं बना पाया हूं, पर मैं उनके बिना नहीं रह सकता। कुछ दिन पैरों ने चलने का दम छोड़ दिया, पर आपका नाम लिया, चल पड़ी।

मुझे नहीं मालूम, यह कैसा जुड़ाव है, इसके लिए शब्द भी नहीं है। यह श्रद्धा, भक्ति, समर्पण नहीं कुछ और भी है।
दूरी होती है तो टकटकी लगाकर देखता हूं, नजदीक जाता हूं, तो नजरें झुकी रहती हैं, कभी उठती नहीं। किसी सामाजिक कार्य के लिये उनके मुख से शब्द निकले कि हाथ-पैर-दिमाग उसको करने को बेताब हो जाता है। उनकी चर्या का कायल हूं, बस उसी ने ऐसा जादू कर दिया है कि उन्हें देखे बिना चैन नहीं, न बोले वे कुछ बस मैं उनके पास रहूं। कहते तो हैं, कि जब इधर धक-धक होती है, तो उधर भी मन आशीर्वाद तो उमड़ता ही होगा। आपकी सामाजिक उत्थान की बेबाक बातें, तीर्थों की सुरक्षा पर ओजस्वी गंभीरता, हर दिल को मोह लेती है।

गुरुवर न करें मोह, न करें राग, पर हम तो पहली नजर में ही सब कुछ दे बैठे, बस ये चरण, आचरण सदा अंदर के ‘रण’ को दूर करने में हर क्षण ऊर्जा स्रोत रहे। बस आपको कहीं हमारी नजर ना लगे, इसीलिये गुर के चरणों में अपने मस्तक का तिलक करने की हर पल आरजू रहे।