अयोध्या में खुदाई श्रीरामजी प्रमाण के लिये शुरु हुई, पर मिली तीर्थंकर प्रतिमायें, खुदाई बंद करवा दी गई , तो क्या ज्ञानवापी में भी अयोध्या की तरह जैन सबूत?

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॰ कहां हैं वो जैन प्रतिमायें, जैन प्रमाण, जो खुदाई में निकले, मिटा दिये गये या गायब किये गये?
॰ जैन कमेटियों ने नहीं की कोई कार्रवाई, यह डरपोकपना या कायरता
॰ अयोध्या में 5 एकड़ जमीन जैन समाज को, खूब छपी खबरें, मिला ठेंगा
॰ अब ज्ञानवापी पर स्तूप होने का दावा ठोका बौद्ध लोगों ने ॰ 2000 वर्ष प्राचीन प्रमाण मिल रहे,
पर तीर्थंकर सुपार्श्व व पारस प्रभु की जन्मस्थली वाले जैनों को कोई फिक्र नहीं !

10 अगस्त 2023/ श्रावण कृष्ण दशमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन / EXCLUSIVE

अफसोस होता है, दुख होता है जब पता चलता है कि जैन समाज में तेजी से कार्य करने वाले कुशल नेतृत्व की कमी है, तुरंत एक्शन लेने वाली हजारों संस्थाओं में से चंद भी नहीं दिखती। आचार्य श्री सुनील सागरजी के शब्दों में बोले तो – आज मंच, माला माइक के बाद श्रेय लेने की भूख तो बहुत है, पर पुरुषार्थ करने के लिए कोई आगे नहीं आना चाहता।
आचार्य श्री ने ऋषभ विहार में अपने प्रवचनों में सुप्त पड़े जैन समाज को खड़े होने के लिए कई बार कड़े शब्दों का भी प्रयोग किया, कभी पुचकारा भी।
उन्होंने दुष्यंत कुमार के शब्दों को भी दोहराया-

हो गई है पीर पत्थर सी पिघलनी चाहिए,
अब हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

चैनल महालक्ष्मी ने 09 अगस्त को प्रात: 8 बजे एपिसोड नं. 2038 अयोध्या की तरह ज्ञान व्यापी में भी क्या जैन सबूत? जारी किया और 9 बजे उसी दिन ऋषभ विहार धर्मसभा में आचार्य श्री सुनील सागरजी ने इसी पर कमेटियों का आह्वान किया।

अयोध्या की खुदाई में जो प्रमाण मिले उनको वर्तमान सत्ता ने उजागर नहीं किया, चुप्पी डाल दी। वर्तमान में तो मीडिया भी सिर्फ वही बोलता है, जो सत्ता चाहती है। दुनिया के सबसे बड़े अखबार ‘द टाइम्स आॅफ इंडिया’ ने अयोध्या खुदाई पर रिपोर्ट छापी । प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया गुप्तकाल के प्रमाण जरूर मिले, पर किसी राम या दशरथ को प्रदर्शित नहीं करते।

एक बहुत आवश्यक बात जो उजागर की, कि हनुमान गढ़ी और अयोध्या की तत्कालीन विवादित जगह की खुदाई को प्रमाण माना जाये तो अयोध्या पर पहला अधिकार जैनों का होना चाहिए? ये वो शब्द थे, जिसने सत्ता को झकझोर कर रख दिया और जब ऐसे प्रमाण मिले तो एएसआई द्वारा 1975 से समय-समय पर चली आ रही खुदाई को ही रुकवा दिया। आज ये ऐतिहासिक बातें कोई सामने नहीं लाता।

प्रमाणों की बात नहीं करता। इस बारे में सत्ता या प्रशासन से उम्मीद करना तब तक निरर्थक है जब तक जैनों का वोट बैंक मजबूत ना बन जाये। आज तो जैनों की कथित बड़ी-बड़ी कमेटियों तक ने कोई दावा नहीं किया, कोई पत्र नहीं लिखे और खुदाई के इस बड़े इतिहास को कहां दबा दिया गया, इसका भी पता करना मुश्किल होता जाएगा।

इसी तरह अब ज्ञानवापी विवादित मस्जिद परिसर पर अदालती आदेश से एएसआई द्वारा सर्वे किया जा रहा है। (हैरानगी है कि इसी तरह गिरनार (गुजरात), महालक्ष्मी (कोल्हापुर) आदि का सर्वे क्यों नहीं किया जाता? न्याय की देवी तो आंखों पर पट्टी बांधकर सबके लिए समान न्याय करती है, बचपन से यही किताबों में पढ़ते आये हैं। )

हां, बौद्ध के श्रमण संस्कृति रक्षा मंच ने दावा कर दिया है कि यह मस्जिद 2500 वर्ष प्राचीन बुद्ध स्तूप को तोड़कर बनाई गई। (वहीं 7वें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ व 23वें तीर्थंकर श्री पारस प्रभु की जन्मस्थली को मानने वाले जैन समाज की कोई कमेटी आगे नहीं आई, अपनी बात को कहने के लिए।) अपुष्ट सूत्र कहते हैं कि वहां 2000 वर्ष प्राचीन प्रमाण मिल रहे हैं। तो क्या वे जैन धरोहर तो नहीं या कहीं वे भी अयोध्या की तरह मिटा दिये जाएंगे। आज जैन समाज की इन बड़ी कर्तव्यनिष्ठ कहीं जाने वाली बड़ी संस्थाओं को क्या हो गया है, यह समझ से बाहर है।

अयोध्या में 5 एकड़ जमीन जैन समाज को, खूब छपी खबरें, मिला ठेंगा

अब भी अपनी विरासतों, तीर्थों के प्रति नहीं जागेंगे, तो इन्हें मिटते देर नहीं लगेगी। हमारी कमजोरी, असहाय, डरपोकपने, कायरता के ये संकेत समाज के विकास और संस्कृति के संरक्षण में ऐसी खाई / दीवार बन गये हैं, जिससे समाज अपाहिज, लाचार-सा बन गया है।