#गिरनार – डेढ़ सौ वर्ष का इतिहास लिखने के लिये मिटाया जा रहा हजारों वर्ष का इतिहास #save_girnar

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॰ दूसरी टोंक श्री अनिरुद्ध कुमार जी बना दी अम्बे टोंक
॰ तीसरी टोंक श्री शंभु कुमार जी बना दी गोरखनाथ टोंक
॰ चौथी टोंक श्री प्रद्युम्न कुमारजी को बना दी औघड़नाथ
॰ 5वीं टोंक श्री नेमिनाथ जी की हो गई दत्तात्रेय टोंक
पहले प्रधानमंत्री ने, अब जैन मुख्यमंत्री ने ही दिखाया जैनों को ठेंगा
अब लगेंगे पूरे पहाड़ पर अन्य संप्रदाय के साइन बोर्ड और मिटा दी जाएगी जैनों की पहचान
जैन कमेटियां मौन धारण रखे हुए, आंदोलन-ज्ञापन-रैली सब तालों में बंद है
पूजा अधिनियम के अंतर्गत 15 अगस्त 1947 की स्थिति बनाये रखने की बजाय तेजी से मिटाया जा रहा तीर्थ से ‘जैन’ नाम

26 जुलाई 2023/ श्रावण अधिमास शुक्ल अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ शरद जैन/ दिल्ली/EXCLUSIVE

रोपवे सहित 130 करोड़ के प्रोजेक्ट शुरू करते प्रधानमंत्री ने मात्र 13 सेकेंड में जैनों के दूसरे बड़े तीर्थ को मिटाने की इबारत लिखनी शुरू कर दी थी। उनके कहे शब्द आज भी दिमाग में झनझनाते रहते हैं – इस गिरनार पर मां अम्बे भी विराजती है, गोरखनाथ टोंक है, दत्तात्रेय टोंक है और नीचे जैन मंदिर भी है और फि रोपवे की शुरूआत कर दी नीचे से मां अम्बे तक।

अभी वो घाव भरे ही नहीं थे कि अब जैन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल जी ने भी प्रधानमंत्री की पटकथा, पर एक नई फिल्म की मानो शुरूआत कर दी। डेढ़ सौ वर्ष के नये इतिहास को रचने के लिये, दत्तात्रेय – गौरखनाथ का इतिहास बनाने के लिये, हजारों वर्ष के गढ़े हुए इतिहास को उखाड़ना, उधेड़ना शुरु कर दिया। तीर्थंकर श्री नेमिनाथ जी के साथ 72 करोड़ 600 महामुनिराजों की मोक्षस्थली का नाम मिटाना शुरू हो गया। वैसे यह सोच तो 21वीं सदी की शुरूआत से ही सरकार ने कर दी थी।

इस नई इबारत को लिखने का काम करेगा, गुजरात पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड, जिसके लिए 114 करोड़ रुपये मंजूर किये गये। अभी बात है यात्रियों के लिये सुविधायें शुरू होंगी। सीढ़ियां दोनों तरफ 3-3 फुट चौड़ी होगी, हर 250 मीटर पर बैठने की व्यवस्था, हर 500 मीटर पर पानी की व्यवस्था, सोलर लाइट की व्यवस्था आदि। कितनी खुशी हो रही है जैनियों को। पर यह खुशी काल्पनिक है, उसी जैन इतिहास को भी मिटाया जाएगा, जगह-जगह साइन बोर्ड लगाकर स्पष्ट कर दिया जाएगा कि सरकारी रिकॉर्ड में गिरनार से जैनों का नाम उसी तरह मिटा दिया गया है, जैसे इतिहास की स्लेट पर पहले कुछ लिखा ही नहीं था।

और यह अपवित्र काम करेगा, गुजरात का पवित्र बोर्ड, जिसकी मंजूरी दी एक जैन मुख्यमंत्री ने। सच में केन्द्र की सत्ता को जैनों के गाल पर थप्पड़ मारने के लिये उससे बढ़िया मोहरा नहीं सकता। राजनीतिक अखाड़े में खोपड़ियां गिनी जाती है और खोपड़ियों में क्या है, यह नहीं देखा जाता। सही कहते हैं आचार्य श्री सुनील सागरजी मुनिराज अपने उद्बोधन में, कि अपनी जनसंख्या बढ़ाओ और नेता किसी के सगे नहीं हो सकते। एक तरफ राजस्थान सरकार श्रमण बोर्ड गठन के जैन तीर्थों के संरक्षण कर रही है, वहीं गुजरात की सरकार वहां के जैन तीर्थ को मिटाने का कुचक्र कर रही है।

किसी जैन कमेटी -संस्था की विरोध में आवाज नहीं आई, सब ने मानो परमानेंट मौन धारण कर लिया है। कहीं किसी कोने से आंदोलन, रैली, ज्ञापन, प्रदर्शन, रोष, विरोध की आवाज नहीं।

जैन अभी यह नहीं समझा कि उसके वोट की ताकत चंद लाख नहीं, कई करोड़ में है। सन् 1991 में धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिये पूजा अधिनियम बनाया गया, जिसके अनुसार धार्मिक स्थलों की 15 अगस्त 1947 की स्थिति कायम रखा जाये, पर यहां गुजरात सरकार उसको बरकरार रखने की बजाय जड़ से उखाड़ने को तुली बैठी है। कहावत भी है कि बड़ी मछली सदा छोटी मछली को निगल जाती है, कुछ वैसा ही हो रहा है जैन समाज के साथ।

वक्त की मांग है, एक हो जाओ। अंगुलियां नहीं, मुट्टी बना लो, हाथों को फौलाद बनाओ, पैरों को तूफान बनाओ, जैन धर्म को मिटाने वाली हर ताकत का जवाब पूरी ताकत से दो। जंगल को जब अपनी ताकत दिखानी हो, तो शेर को दहाड़ना ही पड़ता है। हाथी को चिंघाडना ही पड़ता है। आज जैनों के लिये कुछ ऐसा ही वक्त है, जागो, जैनों जागो, वर्ना बहुत देर हो जाएगी।

दूसरी व चौथी टोंक की दशा बहुत बुरी है। सान्ध्य महालक्ष्मी का निवेदन है कि संबंधित कमेटियों को तत्काल उनका जीर्णोद्धार करना चाहिये। तीसरी टोंक के पास चट्टान पर तीर्थंकर प्रतिमा उकेरी हुई है, उसको भी कन्ट्रोल में लें, निर्माण करें।

पांचवीं टोंक के सामने भी तीर्थंकर प्रतिमा है, जिसको रंग कर, कपड़ा ओढ़ाकर बदलने की हो रही कोशिशों को भी देखना होगा। हाथ पर हाथ धरकर बैठने का अब वक्त नहीं। सातवीं-आठवीं सदी के जुल्म वाले दिन क्या फिर वापस लैट रहे हैं, थोड़ा चिंतन कीजिए।