निर्यापक श्रमण मुनिपुंगव श्रीसुधासागर जी महाराज ने प्रवचन मे कहा
माता-पिता मेरे साथ रहते हैं ये पतन हैं,मां-बाप के साथ मैं रहता हूं ये उत्थान है
माता-पिता बनो, लेकिन गुरु बनो, शिक्षक मत बनना
1.माता पिता गुरु बने, शिक्षक नहीं, मां बेटे की शिक्षा देती है, वह मां बेटे को खो देगी शिक्षा जिसको लेने वाले के अनुसार दिया जाता है और संसार को बढ़ाने वाले हो माता पिता को बेटे का शिक्षक नहीं बनना है, गुरु बनना है, बेटे को धर्माचार सिखाऊंगा, जो सत्य है बेटे को अपने अनुसार चलाऊंगा, बेटे की इच्छा पूरी नहीं करुंगा।
2.शिक्षा व नीतिया लक्ष्य की तरफ ले जाती है, शास्वत सत्य की तरफ कोई शिक्षा नहीं ले जाती है जीवन के लिए क्या जरूरी है, ये शिक्षा नहीं देती हैं।वो रोजगार देती है।
3.मंजिल मिले ना मिले, साध्य को प्राप्त करे या नहीं करें,साधन को प्राप्त करना चाहिए,मंजिल मिले या ना मिले लेकिन मंजिल तो है ना,साध्य प्राप्त हो या नहीं हो साधन तो है, ना ये सम्यकदर्शन हैं।
4.प्रवचन मिथ्यादृष्टी को दिया जा सकता है लेकिन शास्त्र सम्यकदृष्टि को दिया जाता है हम शिक्षा दे सकते हैं ज्ञान स्वयं को ही लेना पड़ता है शिक्षा में आजीविका होती है ज्ञान में आजीविका नहीं,शिक्षा में सब रास्ते है चोरी करना पीटने ये 72कलाए होती हैं
5.दशरथ के पुत्रों ने घड़ा बनाना, लकड़ी चुनना सभी कलाएं सीखे जो राजपूत्र होते हैं तो भी उन्होंने सभी कला का शिक्षण के साथ ज्ञान भी सीखा,अपनी इच्छा गौण कर देना गुरु जो देगा वह मे लूंगा।ज्ञान गुरु के अनुसार लिया जाता है शिक्षा शिष्य के अनुसार दी जाती हैं।
6.माता-पिता जब बच्चों के जेब में 20 रुपये होता हैं तब सुधारना चाहते हैं माता-पिता को बेटे को तब सुधारना चाहिए जब बेटे की जेब में पैसा ना हो, जब बच्चा छोटा हो उसके अनुसार भोजन नहीं होना चाहिए दूसरे दिन बना सकते हो उस दिन नहीं बनाना चाहिए।
आज की शिक्षा-गुरु शत्रुवत, शिक्षक मित्रवत होता हैं।