10 जून 2022/ आषाढ़ कृष्ण अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
परम पूज्य चतुर्थ पट्टाधीश आचार्य श्री सुनील सागर जी गुरुदेव ससंघ दिल्ली के जागृती एन्कलेव से विहार कर अब 14 तक सूर्य नगर, उत्तर प्रदेश में विराजमान है। आचार्य भगवन द्वारा जन-जन का कल्याण हो रहा है। अपने मंगल उद्बोधन मे धर्म के मार्मिक ज्ञान को बताकर कर जन-जन का विकास कर रहे है ।
मैत्री भाव की भावना अपने हृदय के अंदर हमेशा बनी रहनी चाहिए। प्रतिक्रमण सूत्र का बहुत मंगलकारी सूत्र है। खम्मानि सव्व जिवाण, सवे जिवा खमतु मे मेत्ति में सव्व भुदेनु, वैरं मज्झण केण वि
प्रतिक्रमण सूत्र के इस छोटे से सूत्र में विश्व भर के लिए शांति की भावना भायी गइ है। खम्मानि सव्व जिवाण में सब जीवों को क्षमा करता हूँ। पर जिसको’ क्रोध करने की आदत पड़ गई, वह क्रोध करे बिना रह नही सकता। हर चिज में हर बात में क्रोध करेगा, उसे यह पता ही नहीं होता सव्वे जीवा खमंतु में सब जीव मुझे क्षमा करे। ऐचा कौन कहता है। मुनिराज तो हमेशा क्षमा भाव को धारण करते है। यह भावना वह व्यक्ति धारण कर सकता है, जो स्वभाव से मृदु हो। यह भावना अगर किसी ने मन में धारण कर ली तो समझो उसने अपने अंदर क्षमा ‘धर्म को अपना लिया है।
मेत्ति मे सव्व भुदेनु मेरा सभी के प्रति मैत्री का भाव है। सच्चे मित्र कौन है, मायाचारी, छल् कपट करने वाला कभी सच्चा मित्र नही होता है। सच्चा मित्र साधर्मी श्रावक सच्चा मित्र होता है। वैरं मज्झ ण केण वि मेरा किसी के प्रति वैर भाव नही है। ‘लोभ के कारण वैर भाव निर्माण होता है। सभी कषायों का विवेचन इस छोटेसे सुत्र’ में आ गया। सब जीवों के प्रति मैत्री भाव हमारे भीतर हो सभी जीवों के प्रति दया प्रेम करुणा रखने वाला जीव ही सच्चा मित्र हो सकता है सभी जीवो को रक्षा करने का भाव (अभय दान) रहे ऐसी मंगल भावना सबका मंगल हो सबका कल्याण हो