बाबा संघ की चर्या देख अजैन चौकीदार ने दिया आहार दान, लगाया चौका ॰ जैनेत्तर समाज ने छोड़ा मांसाहार

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5 जून 2023 / आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
आनंद विहार। चतुर्थ कालीन चर्या वाले, वर्तमान में एक साथ विहार करने वाले बड़े संघ को देखकर कितनी धन्य हो गई दिल्ली, इसके दृश्य देश की राजधानी में रोज देखने को मिल रहे हैं, यह कैसा चमत्कार है, इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते। दिल्ली वाले अभी तक सुनते थे कि अमुक क्षेत्र में दिगंबर संतों को देखकर जैनेत्तर समाज के बंधुओं की जीवन चर्या में परिवर्तन हो गया। पर अब दिल्ली भी देख रही है अपनी ही आंखों से अपने बीच में।

07 मई 2023 से आचार्य श्री सुनील सागरजी महामुनिराज के साथ 55 पिच्छियों की दिल्ली के कड़कड़डुमा के पास जागृति एन्क्लेव दिगंबर जैन मंदिर में ग्रीष्मकालीन वाचना चल रही है। एक साथ इतने दिगंबर संतों की कल्पना दिल्ली के जैनेत्तर समाज ने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी, इसीलिये वो शुरुआत में असहज दिखे और जहां 4-5 खड़े होते फुसफुसाहट शुरू हो जाती। कृष्णानगर में 6 दिन के प्रवास में संतों की आहार चर्या के लिये आधा किमी लम्बा पड़गाहन होता, तो रास्ता अवरुद्ध हो जाता, तब वहां वाहन चालक हैरानगी से कहते कि दिल्ली में ट्रैफिक के कारण जाम तो बहुत देखे, पर संतों की आहार चर्या के लिये जाम, जिंदगी में पहली बार देख रहे हैं।

हां, तो बात कर रहे थे जागृति एन्क्लेव में चल रहे प्रवास की। शुरूआती दिनों में जैनेत्तर समाज में असहजता रही। पर फिर हर सुबह साधु संघ शुद्धि के लिये, पार्क में ध्यान, फिर आहार चर्या, हर समय स्वाध्याय भक्ति में देखकर गदगद हो गये। एसोसिएशनों के पदाधिकारियों ने प्रवचनों में बैठना शुरू कर दिया। और फिर अनेक ने स्वयं मन बना लिया कि इस क्षेत्र में जब तक यह दिगंबर संतों का संघ रहेगा, वे कभी न मांसाहार पदार्थ घर में लाएंगे, न खाएंगे।

17 सालों से मंदिर में चौकीदारी कर रहे पहाड़ी हाराजु (खजुराहो म.प्र.) के निवासी गोकुल प्रसाद शुक्ला ने जब ऐसे बाबा की चर्या देखी तो इतने दिन मानों दांतों तले अंगुली दबाकर रह गया। उसने सान्ध्य / चैनल महालक्ष्मी को पिछले मंगलवार 30 मई को बताया कि मैं कल शाम आचार्य श्री के चरणों में निवेदन करने गया था। वह आचार्य श्री सुनील सागरजी मुनिराज को बाबा कहकर ही पुकारता है। उसने कहा कि मैं अजैन हूं, पर मन के भाव हैं कि मैं भी बाबा का चौका लगाऊं। जब बाबा से निवेदन किया तो वे मुस्कराये और हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। तब आगे बोले चौकीदार भाई – बाऊजी (हमें इसी रूप में पुकारते हैं) अब मेरे भाव को पूरा करने के लिये किसी जैन परिवार का यहां जगह दिलवा दीजिये। और एक दिन के दूध – दही का भी मैं आहार दान में देना चाहता हूं। 60 पिच्छी वाले संघ के लिये एक दिन दूध-दही का आहार दान, जबकि पूरे माह का वेतन चंद हजार ही होगा। और फिर पड़गाहन व चौका, यह सुनकर ही मन अचंभित हो गया।

हाथ जोड़कर निवेदन कर चौकीदार गोकुल को नीचे से ऊपर देखा तो नेत्र स्वत: जल से भर आये। उसे देखकर मन गदगद हो रहा था। फिर भी उसकी बेटी पुष्पा से कहा – आचार्य श्री को आहार देने की भावना अच्छी बात है, पर आहार देने के लिये अभक्ष्य का त्याग करना होता है। कम से कम एक वर्ष के लिये रात्रि भोजन त्याग करना होगा। बेटी पुष्पा बोली – बाऊजी हम लहसुन-प्याज भी नहीं खाते। और महाराज जी आलू छुड़वाये, जब तक का रात्रि भोजन छुड़वायें, हम स्वीकार करेंगे।

सान्ध्य / चैनल महालक्ष्मी ने उसकी टोह लेते हुये पूछ लिया – अगर जीवन भर का हो तो, वह बोली – यह भी स्वीकार्य होगा। फिर उन्होंने दो दिन चौका लगाया, अन्य संतों का आहार हुआ। फिर दो दिन और लगाया, सौभाग्य बरस गया, आचार्य श्री की विधि मिल गई और उनका निरंतराय आहार हो गया। धन्य हो गये।

जब उनसे सान्ध्य / चैनल महालक्ष्मी बात कर ही रहा था, तभी वहां अतिथियों के लिये भोजन परोसने वाले आ गये। उनमें से एक मैनपुरी के सुभाष ने आगे बढ़कर कहा – बाऊजी, हम भी यहां केवल भोजन परोसने के लिये आये हैं, पर ऐसे संतों के दर्शन कर हम हर कार्य करने को तैयार हैं, चाहे वो सामन उठाना हो या सफाई-झाड़ू। हमें भी सौभाग्य दिलवा दीजिए उनके प्रवास क्षेत्र में झाड़ू-पौंछा लगाने का।

सबको देखते हुये सान्ध्य / चैनल महालक्ष्मी इनमें ही खो गया कि चतुर्थकालीन चर्या आज भी चमत्कारी होती है। जैनेत्तर को भी बदलने में देर नहीं लगती।