भव वन में जी भर धुम चुका, कण-कण को जी भर-भर देखा , मृग सम मृगतृष्णा के पीछे, मुझको न मिली सुख की रेखा। झूठे जग के सपने सारे झूठी मन की आशायें, तन जीवन यौवन अस्थिर है, क्षणभंगुर पल में मुरझाये।

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21 मई 2023 / जयेष्ठ शुक्ल दौज /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/

पूज्य गुरुदेव आचार्यश्री सुनीलसागरजी गुरुदेव ने अपने उपदेश में कहा-

कवि अमोघवर्ष ने प्रश्नोत्तर रत्नमालिका के 12 नं. के श्लोक में जीवन के अनुभव का निचोड बताया है। वे पुछते है – कमलिनी के पत्रों पर पडी जल की बूंद कब तक रहती है? हवा का झोका आयेगा और वह मिट जायेगा। उस बूंद के समान क्या है! यौवन – कभी कोई युवा अस्थिर हो जाये, या डिस्टर्ब हो जायेगा तो उसे समझाओ जवानी कब तक है? वह भी घट जायेगी।

अनित्य भावना का चिंतन करो। जिसे जिन तत्व को नही अभ्यास नही उसे कुछ समझ में नही आता वह जिस किसी के पिछे दौड़ता है। जिस प्रकार कुत्ता हर गाड़ी के पिछे दौडता है कब तक दौड़ता है? जब तक उसके शरीर में ताकत है, शक्ति है, युवा भी जब तक शरीर में दम है तब तक दौडेगा| यौवन घट जायेगा तो क्या होगा? सौभाग्यशालीयो ।

सचमुच यौवन अस्थिर है। आप अपने हीं फोटो एल्बम उठाकर देख लिजिए, पुराने फोटो और आज की फोटो में कितना परिवर्तन हो गया। सोचो एक समय था जब बालों में कंघी नही जाती थी और अब कंघी की जरूरत ही नही। कितना परिवर्तन हो गया