‘मेरी आंखों से अश्रुधारा निकलनी शुरु हुई, फिर वो रुकी नहीं, लगातार आखों से बहती रही धारा, इतना कभी रोना नहीं आया, जितना उस दुर्दशा को देखकर आया’ : गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी

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20 अप्रैल 2023/ बैसाख कृष्ण अमावस /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/EXCLUSIVE
अयोध्या जल रहा है, पर मैं तो अहिंसा के अवतार भगवान ऋषभदेव के पास जाना चाहती हूं, अत: ये संघर्ष मेरा क्या बिगाड़ेगें?
अभी तक अयोध्या केवल राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के नाम से जानी जा रही है, तो भगवान ऋषभदेव के नाम से क्यों नहीं जानी जाती?
आज से पूर्व कभी देखा नहीं, फिर ध्यान में कैसे भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा आ गई। यह बड़ा चमत्कार था।
आप यह नहीं जानते कि हजार साल पहले ऋषभदेव जन्मस्थली पर बने विशाल मन्दिर को तोड़कर पहले मस्जिद बनवा दी गई थी।
‘जब हम सब रायगंज अयोध्या में आये, तो यहां चार-चार फुट ऊंची जंगली घास थी, जिसमें सांप बिच्छू भारी तादाद में थे। न पानी, बाल्टी, न मग, बिजली सालों से कटी थी। कोई व्यवस्था नहीं। तीर्थंकरों की शाश्वत जन्म भूमि पर शायद कोई दर्शन करने भी नहीं आता था।’
तब 1993 तक यहां के हालात, पांचों तीर्थंकर जन्मभूमियों पर जगह-जगह कब्जे हो चुके थे। चरणों की दुर्दशा हो रही थी।
अनेक युवाओं ने आत्महत्या की धमकी तक दे डाली।

जिद थी कि अयोध्या जाऊंगी- 23 अक्टूबर 1992 का वह दिन था धनतेरस, दो दिन बाद दिवाली थी, महावीर मोक्षकल्याणक। सुबह के 4 बजे थे, सामायिक के बाद पिण्डस्थ ध्यान कर रही थी गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी। उसी में विशालकाय खड्गासन भगवान ऋषभदेव के दर्शन हुए, ऐसी अनुभूति हुई कि ये अयोध्या के भगवान हैं। उनकी छवि मन में बस गई कि इनका महामस्तकाभिषेक महोत्सव होना चाहिये। ध्यान पश्चात माता चन्दनामति को सारी बात बताई, उनसे क्षु. मोती सागर व ब्र. रवीन्द्र स्वामी जी तक बात पहुंची पर सबने एक सिरे से टाल दिया कि माता जी आपका स्वास्थ विहार के लिये ठीक नहीं है। कुछ दिन शांत रहने के बाद माता जी ने फिर श्रावकों से अयोध्या का मार्ग पूछकर डायरी में लिखना शुरु कर दिया। स्पष्ट हो गया अब वे अयोध्या अवश्य जायेंगी। उसके बाद 06 दिसम्बर 1992 की घटना घट गई, विवादास्पद बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहाया गया,

तब आ. श्री विद्यानन्द जी तक ने कह दिया ‘अयोध्या जल रहा है, आप उधर नहीं जाओ।’ पर इस बार, कहें पहली बार माता जी ने मानो जिद पकड़ ली। मन मजबूत होता जा रहा था कि मैं तो अहिंसा के अवतार भगवान ऋषभदेव के पास जाना चाहती हूं, अत: ये संघर्ष मेरा क्या बिगाड़ेगें?

दूसरी बात और मन में कौंध रही थी कि अभी तक अयोध्या केवल राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के नाम से जानी जा रही है, तो भगवान ऋषभदेव के नाम से क्यों नहीं जानी जाती? यही पीड़ा जिद का कारण बनी हुई थी।

फिर 11 फरवरी 1993 को फागुन कृष्ण पंचमी को हस्तिनापुर से अयोध्या के लिये पूरे संघ के साथ विहार हुआ। 16 जून 1993 को अयोध्या में प्रवेश कर जैसे ही ऋषभदेव प्रतिमा के दर्शन किये तो बहुत सुखद अनुभूति हुई। हां ये वही थे, जो ध्यान में आये थे। आज से पूर्व कभी देखा नहीं, फिर ध्यान में कैसे भगवान ऋषभदेव की प्रतिमा आ गई। यह बड़ा चमत्कार था। यहां रायगंज में तब 4-5 फुट जंगली घास जिसमें बिच्छु-सांप, प्रवेश करते ही एक महिला को बिच्छू ने काट खाया। बिजली नहीं, पानी नहीं, लोटा मग्गा नहीं, 100 वर्ष पुराने कमरे, जीर्ण शीर्ण हो चुके थे, इस बारे में तब अपनी आखों से देखने वाले स्वस्ति श्री रवीन्द्र स्वामी ने चैनल/सान्ध्य महालक्ष्मी को बताया कि –

‘जब माता जी के साथ हम सब रायगंज अयोध्या में आये, तो यहां चार-चार फुट ऊंची जंगली घास थी, जिसमें सांप बिच्छू भारी तादाद में थे। अब चप्पल उतार कर जाओं, तो वापस आने पर चप्पलों पर बिच्छू ही मिलेगें। प्रवेश करते ही एक महिला को बिच्छू काट खाय था। सब डरे हुए थे। दो चार जर्जर कमरे टूटे पड़े थे। न पानी, बाल्टी, न मग, बिजली सालों से कटी थी। कोई व्यवस्था नहीं। तीर्थंकरों की शाश्वत जन्म भूमि पर शायद कोई दर्शन करने भी नहीं आता था।’
माताजी फिर वहां से प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी की जन्म भूमि देखने गई, वहां की दुर्दशा देखकर उनके आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी, अब तक के जीवन में आज तक माता जी के इस तरह आंसू बहना किसी ने नहीं देखा था। हमारे प्रथम तीर्थंकर की जन्म भूमि की ऐसी दुर्दशा। माताजी ने चर्चा में सान्ध्य महालक्ष्मी को बताया कि –

‘जब मैंने रायगंज के बाद प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव भगवान की टोंक पर गई तो वह ऊपर थी, साइड से टूटी फूटी थी, चरणों पर टूटी छतरी थी, जिस पर बंदर गंदगी करते थे, सड़ रही थी टोंक। मेरी आंखों से अश्रुधारा निकलनी शुरु हुई, फिर वो रुकी नहीं, लगातार आखों से बहती रही धारा। इतना कभी रोना नहीं आया, जितना उस दुर्दशा को देखकर आया।’
विश्वास आप को नहीं होगा, तब 1993 तक यहां के हालात, पांचों तीर्थंकर जन्मभूमियों पर जगह-जगह कब्जे हो चुके थे। चरणों की दुर्दशा हो रही थी। और इधर अयोध्या जल रही थी।

अभी तक तो यही जानते हैं कि रामजन्मभूमि पर मन्दिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी, जिस पर सर्वोच्च अदालत ने न्याय किया, पर आप यह नहीं जानते कि हजार साल पहले ऋषभदेव जन्मस्थली पर बने विशाल मन्दिर को तोड़कर पहले मस्जिद बनवा दी गई थी।

यह तो आप जानते हैं कि जिसे अभी तक केवल रामजन्मभूमि या बाबरी मस्जिद के नाम से अयोध्या की पहचान थी, उसमें एक तीसरी पहचान भी है, और वह है, और भी प्राचीन प्रथम तीर्थकर की जन्मभूमि, उस चक्रवर्ती की जन्मभूमि जिसके नाम पर भारत का नाम पड़ा। वह राम जन्मभूमि जिस पर उनसे लाखों करोड़ों वर्ष पहले 5 तीर्थंकर आदिनाथ, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ जी व अंनतनाथ जी की जन्मभूमि है। इन तीर्थकरों की जन्मस्थली पर माता जी उनकी दुर्दशा देखकर फफक -फफक कर रो पड़ी थी। प्रण कर लिया कि अब यह जीवन इस तीर्थस्थली के लिये समर्पित होगा। वैसे इस बात पर हैरानगी होती है कि 44 लाख से ज्यादा का सरकारी गिनती में गिने जाने वाले जैन समाज और 1600 से ज्यादा दिगंबर संतों ने अनेक तीर्थ बनाये, जीर्णोद्धार किये, पर शाश्वत अनादि निधन तीर्थ को क्यों छोड़ दिया? हां जब देश कई जगह जल रहा था, तब माता जी अयोध्या की ओर बढ़ रही थी, वो जहां बढ़ती वहां शांति हो जाती, चाहे आगे-पीछे आग लग रही थी। विश्वास नहीं होगा, पर यह सच है।

यही नहीं 1993 जब जगह-जगह कफ्यू ,144 धारा, आगजनी, तोड़फोड़, अयोध्या में अगले पल क्या हो जाये, हर कोई तनाव में था, पर एकाएक अयोध्या शांत हो गया, क्यों? यह कोई नहीं जानता। कोई प्रशासन को शबाशी देगा, कोई पुलिस को, पर इसमें एक बहुत बड़ा और सच था, कि जब से श्वेत वस्त्र वाली देवी अयोध्या के रॉयगंज बड़ी मूर्ति में आई थीं, तब से पुलिस वाले बंदूक उठाना बूल गये थे। ऊंचे-ऊंचे टावरों से हो रही निगरानी की अब जरूरत नहीं पड़ रही थी। हनुमानगढ़ी के महल तो माताजी से यह कहने लगे कि माताजी आप यहां से कही नहीं जाना। आपके जाते ही फिर यहां दंगे शुरू हो जाएंगे। इस पर माताजी मुस्करा कर कहती – यह ऋषभदेव और रामजी की जन्मभूमि है। अब यहां कुछ नहीं होगा। और सच साबित हुआ, फिर कुछ नहीं हुआ। सचमुच सफेद वस्त्र वाली देवी पूरे अयोध्या में लोकप्रिय हो गई थी।

यही नहीं माताजी ने सान्ध्य महालक्ष्मी को यह भी बताया कि तत्कालीन विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल जी भी एक बार पूछने लगे कि माताजी इतने समय से विवाद चल रहा है, तनाव बढ़ा हुआ है, कोई ऐसा पूजा विधान है क्या, जिससे हमारी राम जन्मभूमि पर विवाद हटे और राम मंदिर बने। तब उन्हें बताया कि आप उस भूमि पर कल्पद्रुम विधान करगें तो उससे अच्छा परिणाम मिलेगा। उस समय के कई महंत भी इस बात को जानते हैं, और शायद आप यह नहीं जानते होंगे कि उस भूमि पर कल्पद्रुम विधान विधिवत कराया गया, और धीर-धीरे परिणाम सामने आने लगे। अब इस चमत्कार को कोई माने या ना माने।

ये तो सब जानते है कि रामजन्मभूमि के मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बना दी गई। बाद में खुदाई की गई तो कई प्रमाण मिले। हां, उसमें एक सच यह भी है कि कई जैन प्रमाण, तीर्थंकर प्रतिमायें भी मिली थी, पर उन्हें कहां रखा गया, कहां गई, किसी को नहीं मालूम, किसी भी जैन कमेटी ने प्रयास तक नहीं किया कि जैन प्रमाण उन्हें दे दिये जाये। नहीं, शायद मांगने और बोलने की भी किसी ने जरूरत समझी।

जब कि देश सबसे बड़े अखबार टाइम्स आॅफ इंडिया ने बाकायदा इसकी खबर छापी थी।
पर हां बात कर रहे थे कि राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी, जिसे बाद में राम भक्तों ने ढहा दिया। यह पूरी दुनिया जानती है कि एक मन्दिर तोड़कर अयोध्या में ऐसा हुआ। पर कोई इसके अलावा एक और सच को नहीं जानता कि उससे सैकड़ों वर्ष पहले भी एक मंदिर गिरकर मस्जिद बनी थी। आज इतिहास के उस पन्ने को नहीं खोला जाता, आज बताते हैं इसका खुलासा महातीर्थ अयोध्या में किया गया है।

पृष्ठ 18 पर प्रथम तीर्थकर भगवान ऋषभदेव जन्मस्थल टोंक के विवरण में स्पष्ट लिखा है कि इतिहासकारों के अनुसार ही सन् 1194 के लगभग दिल्ली को लूटने वाले मोहम्मद गौरी के भाई मखदूम शाह जूटन गौरी ने अयोध्या पर आक्रमण करके भगवान ऋषभदेव के जन्मस्थान पर बने विशाल जिन मंदिर को ध्वस्त करके उसके स्थान पर मस्जिद बनवा दी। जैनो ने जब आग्रह किया कि यह हमारा प्राचीन पवित्र स्थल भगवान ऋषभदेव का जन्मस्थान है तब इसके प्रमाण मांगे गये। तब जैनों ने कहा कि इस स्थान की खुदाई करिये, वहां आपको एक स्वास्तिक, नारियल और जलता दीपक मिलेगा। खुदाई की गई और विश्वास कीजिये और तीनों चीजें मिली। बात माननी पड़ी और जानते हैं आप आज जहां चरण चिन्ह बने हैं। वह वही स्थान है। शायद आपमें से कोई इस राज को नहीं जानता।

इधर माता जी अयोध्या की स्थिति देखकर बहुत अधीर व्याकुल हो गई थी।
लखनऊ अयोध्या के बीच वे अपनी जन्मस्थली यहां से 65 कि. मी. दूर टिकैत नगर के लिये 1993 के चातुर्मास की 99%स्वीकृति दी। उन्होंने सान्ध्य महालक्ष्मी को बताया कि हमारे आचार्य गुरुवर ने स्पष्ट बताया कि कभी 100% नहीं कहना, जब चातुर्मास स्थापना तब ही 100 फीसदी समझना। इधर अयोध्या में तीर्थंकर जन्मभूमियों की दुर्दशा ने उनका हृदय विद्दल कर दिया था। बस उन्होंने अयोध्या मेें चातुर्मास की घोषणा कर दी, बस फिर क्या था? टिकैत नगर में दुख का वातावरण छा गया। अनेक युवाओं ने आत्महत्या की धमकी तक दे डाली। स्थिति गंभीर होते देख, उनको माताजी के पास बुलाया गया। माताजी ने बड़े शांत रुप से सब को समझाया कि नीतिकारों ने लिखा है कि ‘जननी जन्मभूमिश्च, स्वर्गादपि गरयिसी’। जहां अपनी जननी मां और जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ होती है, वही तीर्थंकरों की जन्मभूमि तो सर्वश्रेष्ठ होती है। यहां के हालातों को देखते हुये मैं अयोध्या पर चातुर्मास कर रही हूं यहां की दुर्दशा बदलने के लिये, कुछ टिकैत नगर के लोगों का साथ चाहिये। दोगे ना साथ? जो सैकड़ो रोते-रोते, आत्महत्या की धमकी देते माता जी के पास आये थे, वो सब खुशी-खुशी वापस चले गये।

अब उसी अयोध्या के रॉयगंज में बड़ी मूर्ति स्थल पर 30 अप्रैल से 07 मई 2023 में तीस चौबीसी तीर्थंकर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा, महामस्तकाभिषेक एवं विश्वशांति महायज्ञ हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मंच, पात्रों और आमजन के आवास – आहार की सुदृढ़ व्यवस्था स्वामी जी के कुशल निर्देशन में हो रही है।

आचार्य श्री 108 विपुल सागरजी ससंघ, पूज्य गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी एवं आर्यिका श्री चंदनामती माताजी ससंघ के पावन सान्निध्य एवं पीठाधीश स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय स्तर पर तीस चौबीसी की 720 रत्न प्रतिमाएं एवं भगवान भरत, बाहुबली, ऋषभसेन आदि 101 भगवान तथा 31 फुट उत्तुंग भगवान भरत के पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के आयोजन में आप सभी आमंत्रित हैं। प्रमुख प्रतिष्ठाचार्य संहितासूरि पं. विजय कुमार जैन (जम्बूद्वीप), प्रतिष्ठाचार्य पं. वृषभसेन उपाध्ये (मालगांव, महा.), पं. अकलंक जैन (लखनऊ), पं. सतेन्द्र कुमार जैन (म.प्र.) तथा मंच संचालन डॉ. जीवन प्रकाश जैन (जम्बूद्वीप) करेंगे। उल्लेखनीय है 29 अप्रैल से 07 मई तक आगंतुक समस्त बंधुओं के लिए साधर्मी वात्सल्य भोजन की व्यवस्था श्री जम्बू प्रसाद जैन परिवार (गाजियाबाद) की ओर से रहेगी।

01 मई को जन्म कल्याणक के उपलक्ष्य में जन्मकल्याणक जुलूस एवं 04 मई को चक्रवर्ती भरत की दिग्विजय यात्रा निकाली जाएगी। महामस्तकाभिषेक 05 से 7 जुलाई तक होगा।