21 अप्रैल दिन एक, श्री कुंथूनाथ तीर्थंकर एक, और जन्म, तप, मोक्ष कल्याणक तीन: ऐसा पावन दिन वैशाख कृष्ण चतुर्दशी

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19 अप्रैल 2023/ बैसाख कृष्ण चतुर्दशी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
चैत्र शुक्ल एकादशी 5वे तीर्थंकर श्री सुमतिनाथ जी का जन्म, ज्ञान ,मोक्ष कल्याणक और जयेष्ठ कृष्ण चतुर्दशी 16वे तीर्थंकर श्री शांतिनाथ जी का जन्म, तप, मोक्ष कल्याणक के बीच आती है वैशाख कृष्ण चतुर्दशी, जिस दिन 17वे तीर्थंकर श्री कुंथूनाथ जी के जन्म, तप और मोक्ष कल्याणक आता है । यानी साल में 3 दिन ऐसे हैं जब तीर्थंकर के तीन-तीन कल्याणक एक ही दिन में आते हैं।

और ऐसे में हुंडा अवसर्पिणी काल के कारण, हस्तीनापुर की धरा भी अति पावन हो गई, जब वहां पर 16वे, 17वें, 18वें तीर्थंकरों का गर्भ, जन्म, तप और ज्ञान कल्याणक हुए। जी हां, ऐसी ही पावन धरा पर 17 तीर्थंकर श्री कुंथूनाथ जी, जिनका , शुक्रवार, 21 अप्रैल को आ रहा है, जन्म, तप और मोक्ष कल्याणक। वे 17वे तीर्थंकर के साथ, छठे चक्रवर्ती और 13वें कामदेव भी थे

सवार्थ सिद्धि विमान में अपनी आयु पूर्ण कर हस्तिनापुर नगरी के महाराजा शूरसैन की महारानी श्रीकांता जी के गर्भ से वैशाख शुक्ल एकम, जो इस वर्ष 21 अप्रैल को है, उस दिन जन्म होता है 17वे तीर्थंकर श्री कुंथूनाथ जी का, जिनका कद 35 धनुष यानि 210 फुट ऊंचा होता है। तपाए हुए स्वर्ण के समान काया का रंग और आपकी आयु 95,000 वर्ष की थी। आपने 23,750 वर्ष कुमार काल में व्यतीत किए ,फिर संतालीस हजार पांच सौ वर्ष आपने राजपाट संभाला ।

आप छठे चक्रवर्ती भी थे, 13वे कामदेव भी थे और फिर एक दिन जाति स्मरण से, आपको वैराग्य हो गया और फिर वैशाख शुक्ल एकम को ही आप कृतिका नक्षत्र में, अपराहन काल में , विजया नाम की पालकी से, हस्तिनापुर नगर के सहेतुक वन में पंचमुष्टि केशलोंच कर, तिलक वृक्ष के नीचे दीक्षा के तीन उपवास के साथ कायोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान में लीन हो गए । आपके साथ 1000 राजाओं ने और दीक्षा ली थी। 16 वर्ष के कठोर तप के बाद आपको केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है और जब आयु कर्म मात्र एक माह शेष रह जाता है, तो आप पहुंच जाते हैं अनादि निधन तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी की ज्ञानधर कूट पर।

जी हां, यह वही कूट है, जब आप वंदना शुरू करते हुए गौतम गणधर टोक के बाद सबसे पहले तीर्थंकर की मोक्ष कूट पर पहुंचते हैं। इसी ज्ञानधर कूट से 1000 मुनिराजों के साथ, प्रदोष काल के, अपरान्ह काल में , वैशाख शुक्ल एकम को ही आप खड़गासन मुद्रा से सिद्धालय पहुंच जाते हैं। आपका तीर्थ प्रवर्तन काल 999 करोड़ 99 लाख 97 हजार 250 वर्ष का पल्य के चौथे भाग तक रहा। इसी ज्ञानधर कूट से 96 कोडाकोड़ी 96 करोड़ 32 लाख 742 मुनिराज भी सिद्ध भए हैं ।

इस कूट की निर्मल भावों से वंदना करने से एक करोड़ उपवास का फल मिलता है ।

चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी के साथ, बोलिए 17वे तीर्थंकर श्रीकुंथूनाथजी के जन्म, तप और मोक्ष कल्याणक की जय, जय जय