अचानक आचार्य श्री के अंगूठे में तीव्र वेदना, कई चिकित्सक फेल, तब एक ने किया चमत्कार, जिसके सीने पर कुछ खास लिखा था, जिसकी कृपा से इलाज होता था

0
3895

13 अप्रैल 2023/ बैसाख कृष्ण अष्टमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/
आचार्य भगवन ससंघ #गिरनार की ओर विहार कर रहे थे। गुरुदेव के दाएं पैर के अंगूठे में अचानक से भयंकर पीड़ा होने लगी, इतनी पीड़ा की धरती पर पैर छू जाए तो असह्य वेदना होने लगे, फिर भी गुरुदेव समता भाव धारण कर कर कर्मोदय का चिंतन कर आगे बढ़ते जा रहे थे।

जब संघ के महाराजों को पता चला तो उन्होंने अनेक चिकित्सकों को बुलवाकर गुरुदेव के अंगूठे का उपचार कराया। लेकिन बिल्कुल भी आराम नहीं मिल रहा था। #चिकित्सकों का सारा परिश्रम व्यर्थ जा रहा था, तभी एक भक्त वहां दर्शन के लिए आया और उसने कहा- आप मुझे एक बार सेवा का अवसर दें,मैं इस दर्द को ठीक कर सकता हूं। इन्हें किंचित मात्र भी तकलीफ नहीं होगी आप मुझ पर विश्वास रखें।

उस व्यक्ति के भावों की दृढ़ता को और उसकी भाषा की विनम्रता को देखकर महाराज लोग उससे आचार्य श्री जी का उपचार कराने के लिए तैयार हो गए। सर्वप्रथम उस व्यक्ति ने परोक्ष रूप से जिसे वह अपना गुरु मानता था उन्हें प्रणाम कर आज्ञा ली और आचार्य श्री जी के चरणों को सीने से लगा लिया, दोनों आंखों को मूंद (बंद कर) लिया।

सभी महाराज सोचने लगे- यह व्यक्ति आचार्य श्री के अंगूठे को खींचेगा, इससे कहीं दर्द तो नहीं बढ़ जाएगा… लेकिन उस व्यक्ति ने कुछ नहीं किया श्रद्धा से उसने गुरुदेव के पैर को सहलाया और फिर आंखें खोलकर बोला- अब दर्द रह गया है क्या ?

सभी लोग आश्चर्य में थे, तभी गुरुदेव ने चलकर देखा तो दर्द पूरा जड़ से गायब हो चुका था। चलने में किंचित मात्र भी वेदना नहीं हो रही थी। इस चमत्कार को देख सभी लोगों ने उस व्यक्ति को घेर लिया और पूछा- तुमने यह चमत्कार किससे सीखा?

उस व्यक्ति ने कुछ नहीं कहा और अपने शरीर के ऊपर के वस्त्र उतार दिए और उसके सीने पर लिखा था- “आचार्यविद्यासागरजीमहाराजकीजय” उस व्यक्ति ने बताया- मैं इन्ही की कृपा से इलाज करता हूं यही मेरी चिकित्सा का राज है।

यह देखकर सभी मुनिराज आश्चर्य में आ गए सभी ने एक साथ कहा कि- तुम जिनका नाम अपने सीने पर लिखवाएं हुए हो वह तुम्हारे सामने ही बैठे हैं… जैसे ही उस व्यक्ति ने यह बात सुनी वह आचार्य श्री जी के चरणों से लिपट गया। वह जिन्हे कई वर्षों से खोज रहा था, उसे वह चरण… आज मिल गए ।
आचार्य श्री के संस्मरण से साभार