श्री चन्द्रप्रभजी तीर्थंकरके प्रसिध्द 7 भव, तीर्थंकर के माता के आंगनमे गर्भ से 6 माह पहले से तीर्थंकर के जन्मतक 15 माह प्रतिदिन 4 बार कुबेरद्वारा रत्नवृष्टि

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12 मार्च 2023/ चैत्र कृष्ण पंचमी /चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी/ आनंद जैन कासलीवाल

1. राजा श्रीवर्मा- मध्यलोक के पुष्कर द्वीप में पूर्व मेरु के पश्चिम की ओर विदेह क्षेत्र में सितोदा नदीके उत्तर तट पर
सुगंधि देश के मध्य में श्रीपुर नगरके राजा श्रीषेण और रानी श्रीकांताके यहां पंच वर्ण के अमूल्य रत्नोंकी जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा और आष्टाह्नींकी महापूजा के फलस्वरुप श्रीवर्मा का जन्म हुआ। आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन आकस्मिक उल्कापात देख विरक्त हो राजा श्रीवर्मा ने श्रीप्रभ जिनेन्द्र के समीप दीक्षा लेकर श्रीप्रभ पर्वत पर सन्यास मरण किया।

2.श्रीधर देव-प्रथम स्वर्ग में श्रीप्रभ विमान में देव हुए।

3. चक्रवर्ती अजितसेन-धातकीखंड द्वीप की पूर्व दिशा में
इष्वाकार पर्वत के दक्षिण की ओर भरत क्षेत्र में अलका देश के अयोध्या नगर के राजा अजितंजय और रानी अजितसेना के यहा श्रीधर देव का जन्म हुआ और वे थे चक्रवर्ती अजितसेन जिन्होंने एक मास उपवास करनेवाले साधु अरिन्दम को आहार दान दिया, गुप्तप्रभ जिनेन्द्र से जैनेश्वरी दीक्षा लेकर नभस्तिलक पर्वत के अग्रभाग पर शरीर छोड़ा।

4.बादमे वे सोलहवे स्वर्ग में अच्युतेंद्र हुये।

5.राजा पद्मनाभ- पूर्व धातकीखंड द्वीप में सीता नदी के दाहिने तट पर मंगलावती देश के रत्नसंचय नगर के राजा
कनकप्रभ और रानी कनकमाला के यहा वे राजा पद्मनाभ
हुए, श्रीधर मुनि के समीप दीक्षित हो कर सोलह कारण भावनाओं का चिन्तवन किया, ग्यारह अंगों में पारंगत हो कर सिंहनि:क्रिडित आदि कठिन-कठिन तप किये और तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया।

6.वे बादमें वैजयंत विमान में अहमिन्द्र हुये।

7.तीर्थंकर चन्द्रप्रभ-जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में चंद्रपुर नगर के राजा महासेन और लक्ष्मणा महादेवी के यहां चैत्र कृष्ण पंचमी के दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में रात के पिछले भाग में उनका गर्भावतरण हुआ।

तीर्थंकर के गर्भकल्याणक महोत्सव में
1.तीर्थंकर के माता के आंगनमे गर्भ से 6 माह पहले से तीर्थंकर के जन्मतक 15 माह प्रतिदिन 4 बार कुबेरद्वारा रत्नवृष्टि हुई।

2.गर्भ से पूर्व जिनमाता को सूचक 16 स्वप्न दिखाई दिये।

3.गर्भस्थ तीर्थंकर शिशु की इंद्रादि देवों द्वारा स्तुति,
तीर्थंकर के माता-पिता को प्रणाम और जन्मनगरीकी परिक्रमा किये गये।

4.दीक्कुमारी देवियो द्वारा जिनमाता की सेवा,मनोरंजन आदि उत्सव,आराधना हुई।

श्री चन्द्रप्रभ तीर्थंकर के गर्भ कल्याणक की जय हो