दुनिया के सबसे बड़े अष्टधातु के मंदिरों में एक, जैन समाज का अबतक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट, अमरकंटक का सर्वोदय जैन मंदिर, बंसी पहाड़ के गुलाबी पत्थरों से ओडिशी शैली में निर्मित

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11 मार्च 2023/ चैत्र कृष्ण चतुर्थी/चैनल महालक्ष्मी और सांध्य महालक्ष्मी
अमरकंटक नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी का उदगम स्थान है। यह मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में स्थित है। मैकाल की पहाडि़यों में स्थित अमरकंटक मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले का लोकप्रिय पवित्र तीर्थस्थल है। समुद्र तल से 1065 मीटर ऊंचे इस स्थान पर ही मध्य भारत के विंध्य और सतपुड़ा की पहाडि़यों का मेल होता है। चारों ओर से टीक और महुआ के पेड़ो से घिरे अमरकंटक से ही नर्मदा और सोन नदी की उत्पत्ति होती है। नर्मदा नदी यहां से पश्चिम की तरफ और सोन नदी पूर्व दिशा में बहती है। यहां के खूबसूरत झरने, पवित्र तालाब, ऊंची पहाडि़यों और शांत वातावरण सैलानियों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। प्रकृति प्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को यह स्थान काफी पसंद आता है।

गौरेला-पेंड्रा-मरवाही (GPM) जिले से लगे अमरकंटक में भव्य जैन मंदिर में भगवान आदिनाथ की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा आचार्य विद्यासागर के सानिध्य में 25 मार्च को होगी। समुद्र सतह से लगभग साढ़े 3 हजार फीट की ऊंचाई पर मैकल पर्वत माला के शिखर अमरकंटक में राजस्थान के बंसी पहाड़ के गुलाबी पत्थरों से ओडिशी शैली में निर्मित मंदिर को देखने भारत के कोने-कोने से दर्शनार्थी यहां आ रहे हैं।

शताब्दी के महान जैन साधक दिगम्बराचार्य संत शिरोमणि विद्यासागर महाराज के सानिध्य में अमरकंटक की पावन धरा पर सर्वोदय जैन तीर्थ में नवनिर्मित भव्य और विशाल जैन मंदिर में विश्व की सबसे बड़ी भगवान् श्री आदिनाथ की अष्टधातु की 24 टन की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा होगी। जिस कमल पर प्रतिमा है, उसका वजन 17 टन है। गर्भगृह में भगवान आदिनाथ विराजित हैं के साथ परम्परानुसार अष्टमंगल चिह्न भी उत्कीर्ण किए गए हैं। प्रतिमा का आभामंडल विशाल है। दांए-बांए चंवरधारिणी तथा इनके ऊपर मंगल कलश स्थापित है। द्वार शाखाओं एवं सिरदल पर कमल पुष्पांकन है। प्रतिमा के वक्ष स्थल पर जैन प्रतिमा लांछन श्री वत्स बना हुआ है। मंदिर के शिखर की ऊँचाई 151 फ़ीट, लम्बाई 424 फ़ीट और चौड़ाई 11 फ़ीट हैं।
बहुप्रतीक्षित श्रीमज्जिनेन्द्र प्राणप्रतिष्ठा पंचकल्याणक गजरथ महामहोत्सव 25 मार्च से दो अप्रैल 2023 तक संपन्न होगा।

ओडिशी स्थापत्य शैली से निर्मित भव्य जैन मंदिर
आचार्य विद्यासगर महाराज की प्रेरणा भावना और आशीर्वाद का यह अनुपम रूप है। भारत की प्रचीन पद्धति से बने जिनालय के मूलभवन में लोहे और सीमेंट का उपयोग नहीं किया गया है। पत्थरों को तराश कर गुड़ के मिश्रण से आदिकालीन निर्माण की तकनीक का प्रयोग कर चिपकाया गया है। जिनालय में राजस्थानी शिल्पकारों की शिल्पकला अत्यंत मनमोहक है। दीवारों मंडप, स्तंभों पर बनी मूर्तियां देख दर्शक मोहित हो जाते हैं।

मंदिर की आधारशिला 6 नवंबर 2003 को रखी गई थी। श्री सर्वोदय दिगंबर मंदिर का निर्माण 2006 में आचार्य विद्यासागर के मार्गदर्शन में शुरू हुआ था। यह मंदिर देश और दुनिया में स्वर्णिम है। इस प्रतिमा की स्थापना ज्ञानवारिधि आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महामुनिराज एवं संघांग द्वारा गुरुवार, 6 नवम्बर, 2006 के शुभ मुहूर्त में 44 मुनिराजों की उपस्थिति में की गई थी।

अक्षरधाम, नई दिल्ली के समान मंदिर संरचना, 4 एकड़ (16,000 वर्ग मीटर) के क्षेत्र को कवर करती है। निर्माण में राजस्थान के गुलाबी रंग के बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है,. मंदिर के निर्माण जैसी भव्य कलाकृतियां चूने और संरक्षित पत्थरों का उपयोग करके बनाई जा रही हैं। इस मंदिर की आधारशिला 6 नवंबर 2003 को भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत, छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी, मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने आचार्य विद्यासागर के ससंघ सानिध्य में रखी थी।लगभग 20 वर्षों के अनथक और अनवरत परिश्रम से भूतल से लगभग एक सौ सत्तर फुट ऊंचा ये विशाल और भव्य जिनमंदिर निर्मित हुआ है। भूकंप के प्रभाव से पूर्ण सुरक्षित आचार्य श्री की कल्पना का ये साकार रूप हजारों वर्ष के काल का साक्षी रहेगा।

अमरकंटक में 22 साल से बन रहे सर्वोदय जैन मंदिर ने अब आकार ले लिया है। साढ़े 4 एकड़ के परिसर में बन रहे इस परिसर के निर्माण में सीमेंट और लोहे का उपयोग ही नहीं किया गया है। शिखर की ऊंचाई 151 फीट है। आचार्य विद्यासागर की प्रेरणा से नर्मदा के उद्गम से 500 मीटर दूर जिनालय व मान स्तंभ का शिलान्यास जून 2000 में हुआ था। बताया जाता है कि दूर से देखने पर अमरकंटक का सर्वोदय जैन मंदिर गुजरात के अक्षरधाम मंदिर की स्वरूप में मिलता जुलता है, जो चार एकड़ भूमि में फैला है। यह मंदिर जैन समाज का अबतक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है,

निर्माण के लिए गुलाबी पत्थर राजस्थान के धौलपुर बंशी पहाड़ से ट्रकों में लाए गए। पत्थर पर 300 कारीगरों ने डिजाइन उकेरे हैं। शिलान्यास के समय लागत का आंकलन 60 करोड़ रुपए का था, जो बढ़कर 100 करोड़ से अधिक हो गया है। जिनालय और मान स्तंभ के निर्माण का ड्राइंग-डिजाइन अहमदाबाद के आर्किटेक्ट सीबी सोमपुरा ने बनाया है।